बाबा गुरबचन सिंह जी के महान बलिदान की याद में संत निरंकारी मिशन 24 अप्रैल, 2017 को ‘मानव एकता दिवस’ के रूप में मनाएगा। बाबा जी ने 1980 में इसी दिन सत्य, प्रेेम तथा एकता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इस संदर्भ में आशा है कि प्रस्तुत लेख पाठकों के लिए रुचिकर सिद्ध होगा।
आज जो संत निरंकारी मिशन का यह विश्वव्यापी आध्यात्मिक विचारधारा के रूप में विस्तृत रूप दिखाई देता है, यह पहले दिन से ही चलते आ रहे महान अभियान का परिणाम है। यह परिचय है एक के बाद एक दिव्य विभूतियों – बाबा बूटा सिंह जी, शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी, बाबा गुरबचन सिंह जी, बाबा हरदेव सिंह जी तथा वर्तमान सद्गुरु माता सविन्दर हरदेव जी महाराज के अमूल्य योगदानों का।
मिशन के 88 वर्षों के लंबे इतिहास में इन्होंने इसे न केवल एक सशक्त आध्यात्मिक विचारधारा प्रदान की बल्कि इससे सांसारिक जीवन में लाभ लेने की कला भी सिखाई। साथ ही साथ इस अभियान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए आवश्यक प्रबन्ध व्यवस्था का भी निर्माण किया। यह भी मिशन के प्रत्येक मार्गदर्शक की दूरदर्शिता का प्रमाण प्रस्तुत करती है। इसके अलावा मिशन के इस विस्तृत स्वरूप में संतों-भक्तों-गुरसिखों के महान तप-त्याग और श्रद्धा भक्ति का भी उललेखनीय योगदान रहा है।
मिशन के इस निरंतर विकास में बाबा गुरबचन सिंह जी द्वारा दिये गए शानदार योगदानों को एक विशेष स्थान प्राप्त है- अद्वितीय, व्यवहारिक तथा स्थाई। उन्होंने मिशन को एक सुदृढ़ प्रबन्ध व्यवस्था का आधार प्रदान किया और आध्यात्मिक ज्ञान को भक्तों के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन में उतारने के लिए ऐसे कदम उठाए, सुधार किए जो आज भी उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण प्रस्तुत कर रहे हैं और हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
बाबा गुरबचन सिंह जी ने मिशन के आध्यात्मिक दर्शन को जिस रूप में शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी से प्राप्त किया वह हर प्रकार से पूर्ण था। अत: उन्होंने उसमें किसी प्रकार के संशोधन का प्रयास नहीं किया, न कुछ उसमें जोड़ा और न ही उसमें से कुछ कम किया। उन्होंने उसे उसी रूप में आगे बढ़ाया। उन्होंने 17-18 जुलाई, 1965 को प्रथम मसूरी कान्फ्रेंस में इसकी पुष्टि की और उसी रूप में इसे जन-जन तक पहुँचाने के लिए कुछ ऐतिहासिक निर्णय लिए। देश को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया और ग्रामीण क्षेत्रों की ओर विशेष ध्यान देने का निर्णय लिया गया। यह मिशन की प्रबन्ध व्यवस्था के विकेन्द्रीयकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके अलावा यह भी निर्णय लिया गया कि जिन शाखाओं में संतो-भक्तों की संख्या बढ़ रही है, वहाँ मिशन की ओर से एक योजनाबद्ध कार्यक्रम के अन्तर्गत सत्संग भवनों का निर्माण किया जाए।
जब 17 सितम्बर, 1969 को शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया तो साध संगत ने उनका अंतिम संस्कार चन्दन की लकड़ी के साथ करना चाहा। भक्त अपने सद्गुरु के प्रति सम्मान तथा मिशन में उनके महान योगदान के लिए अपनी कृतज्ञता के भाव व्यक्त करना चाहते थे। परन्तु बाबा गुरबचन सिंह जी ने शहंशाह जी का अन्तिम संस्कार साधारण रीति से निगम बोध घाट के विद्युत शवदाह गृह में ही करने का निर्णय लिया। उनका कहना था कि मृतिक शरीर चाहे महान गुरु का हो अथवा
किसी साधारण व्यक्ति का परन्तु है तो मृतिक शरीर ही। उसके बाद तो यह परम्परा ही बन गई और अप्रैल 1980 में उनका अपना तथा मई 2016 में बाबा हरदेव सिंह जी का अन्तिम संस्कार भी वहीं किया गया।
इसके उपरान्त बाबा गुरबचन सिंह जी ने मिशन को भक्तों के प्रतिदिन के जीवन, उनकी दिनचर्या के समीप लाने के लिए कुछ विशेष कदम उठाए। लेकिन उन्होंने दो बातेां का ध्यान रखा। एक तो उन्होंने बाबा बूटा सिंह जी तथा शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी के समय में अपनाए गए मिशन के किसी भी सिद्धांत को बदलने का प्रयास नहीं किया और दूसरे, जो भी नए कदम उठाए उन्हें मिशन के अपने अनुयायियों के सामाजिक तथा पारम्परागत जीवन तक ही सीमित रखा। संसार के किसी भी वर्ग के साथ किसी प्रकार के मतभेद अथवा टकराव की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं आने दी। उनका कहना था कि यदि मिशन से बाहर के किसी व्यक्ति अथवा समूह को हमारे सिद्धांत पसंद आ जाते हैं और वह उन्हें अपनाना चाहें तो मिशन उनका स्वागत करेगा।
बाबा जी ने अपनी कार्यनीति प्रस्तुत करने तथा उसके लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए 14-15-16 मई को मसूरी की दूसरी कान्फ्रेंस बुलाई जिसमें संत निरंकारी मण्डल की कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्यों तथा देशभर में मिशन के प्रचारकों एवं प्रबंधकों ने भाग लिया। बाबा जी ने कहा मिशन के सभी संतों भक्तों ने विशेषतया: जो सत्संग कार्यक्रमों की अध्यक्षता करते हैं और ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं, सभी ने हर प्रकार के नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहना है।
जब बाबा जी ने इस आदेश का उल्लेख किया तो उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मिशन का मूल सिद्धांत (प्रण) जिसके अनुसार ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् हमने किसी के खाने-पीने और पहनने को लेकर उसकी आलाोचना नहीं करनी और उससे नफऱत नहीं करनी उसमें कोई संशोधन नहीं किया जा रहा। इससे हम किसी से टकराव में नहीं आयेंगे और हमें भी अपने घर में इस आधार पर हर प्रकार से स्वतंत्रता प्राप्त हो जायेगी। इसी के साथ नशीले पदार्थों को लेकर भी हम आलोचना से बचे रहेंगे और हमारा समाज में आदर-सत्कार बना रहेगा।
बाबा जी के इस प्रस्ताव को कान्फ्रेंस में भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ और यह सिद्धांत आज भी हमारा मार्गदर्शन करता है। यद्यपि यह सिद्धांत किसी को मिशन में प्रवेश करने से नहीं रोकता पर ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् उसे भी इसका पालन करना होगा।
बाबा गुरबचन सिंह जी का दूसरा सुझाव था कि मिशन के अनुयायी विवाह तथा अन्य सामाजिक कार्यो के अवसर पर दिखावे अथवा फिजूलखर्ची से संकोच करें। सादगी अपनाकर अपनी पहचान दूसरों से अलग बनाने का प्रयास करें। शादी विवाह तय करते समय धर्म और जाति का तो कोई उल्लेख ही न हो। और दहेज केवल वही दें जो देने की क्षमता रखते हों और वह भी उसका प्रदर्शन न करें ताकि जो दहेज नहीं दे सकते उनके लिए किसी प्रकार के हीन भाव का कारण न बनें।
तब से लेकर आज तक यह दृष्टिकोण मिशन के भक्तों का मार्गदर्शन कर रहा है। आज भी सामाजिक कार्यों में सादगी तथा मितव्ययता झलकती है। मिशन अपने अनुयायियों को जन्मदिन, विवाह की सालगिराह इत्यादि मनाने से मना नहीं करता और न ही उन्हें अपने पारम्परिक रीति-रिवाज में शामिल होने से रोकता है जो कि उन्हें ब्रह्मज्ञान प्राप्त करते अथवा मिशन में प्रवेश करते समय छोडऩे को नहीं कहा गया था, केवल और केवल सादगी की अपेक्षा की जाती है। भक्त भी इसका लाभ उठाते हैं और ऐसे अवसरों पर सत्संग कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिससे मिशन को भी सत्य-ज्ञान संदेश उनके सगे-सम्बन्धियों, मित्रों तथा पड़ोसियों तक पहुँचाने का अवसर मिल जाता है।
संत निरंकारी मिशन को भारत की सीमाओं से बाहर ले जाने का श्रेय भी बाबा गुरबचन सिंह जी को जाता है। यह उन्हीं की दूरदर्शिता थी कि यह मिशन एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक विचारधारा बने जिसके अन्तर्गत उन्होंने 1967 में इंगलैण्ड में मिशन की नींव रखी। बाबा जी ने जो नीति अपनाई उसके अनुसार पहले जो भारतीय और एशिया के अन्य देशों के लोग बाहर बसे थे उन्हें मिशन से परिचित कराना अथवा जोडऩा चाहेंगे और फिर धीरे-धीरे इसे उन देशों के मूल नागरिकों तक पहुँचाने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार बाबा गुरबचन सिंह जी के समय में भारत के बाहर यह मिशन 17 देशों में पहुँचा और आज 60 देशों में इसकी शाखायें स्थापित हो चुकी हैं जो मिशन को आगे से आगे बढ़ाने में योगदान दे रही हैं।
समाज कल्याण के क्षेत्र में भी बाबा गुरबचन सिंह जी ने जो मार्ग प्रशस्थ किया, आज भी मिशन उसे अपनाए हुए है। यद्यपि मिशन की ओर से दिल्ली में एक विद्यालय शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी के समय ही स्थापित हो गया था मगर इसे एक योजनाबद्ध अभियान का रूप बाबा गुरबचन सिंह जी के मार्गदर्शन में ही प्राप्त हुआ। इसके लिए 1972 में दिल्ली में मिशन का रजत जयन्ति समागम एक ऐतिहासिक अवसर सिद्ध हुआ। इस समागम में साध संगत ने बाबा जी तथा निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी को मुद्रा के नोटों से तोला। बाबा जी ने उसी समय कहा कि यह राशि मिशन की उन्नति तथा समाज कल्याण के कार्यों में ही खर्च की जाएगी।
तब से मिशन के समाज कल्याण कार्यों में योगदान का कई दिशाओं में विस्तार होता आ रहा है। आज मिशन एक कालेज तथा कई स्कूल चला रहा है। इसके अलावा देशभर में कई अस्पताल व डिस्पेंसरियां धर्मार्थ कार्य कर रही हैं। आज मिशन का एक ब्लड बैंक भी है। कई स्थानों पर सिलाई-कढ़ाई प्रशिक्षण केन्द्र हैं। रक्त दान शिविर, वृक्षारोपण तथा सफाई अभियान समाज सेवा के अलावा मिशन की विचारधारा के प्रचार-प्रसार में भी सहायक सिद्ध हो रहे हैं। इनके माध्यम से मिशन की सत्य की आवाज़ समाज के प्रतिष्ठित वर्गों तक भी पहुँच रही है। अप्रैल 2010 से समाज कल्याण की गतिविधियाँ संत निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेशन के तत्वावधान में चलाई जा रही हैं।
युवाओं के प्रति मिशन की नीति की आधारशिला भी बाबा गुरबचन सिंह जी के समय में रखी गई। इंग्लैण्ड में मिशन के कई महापुरुषों ने बाबा जी से विनती की कि उनके बच्चे उनकी सुनते ही नहीं। इंग्लैण्ड में ही उनका जन्म हुआ, पढ़ाई लिखाई हुई और अब वे न भारतीय भाषाओं में और न ही संस्कृति एवं परम्पराओं में कोई रुचि रखते हैं। वे इंग्लैण्ड की संस्कृति के प्रभाव में भटके जा रहे हैं। बाबा जी ने कहा- यदि वे आपकी नहीं सुनते तो आप उनकी सुनना शुरू कर दो। स्वाभाविक था कि युवाओं को यह बात अच्छी लगी और उन्होंने सत्संग में आना और विचार व्यक्त करना आरम्भ कर दिया। आज हम मिशन के शिक्षित युवाओं को दूर देशों में ही नहीं बल्कि भारत में भी सबसे आगे देख रहे हैं।
अत: आज जब हम मिशन के इस विशाल रूप को देखते हैं तो बाबा गुरबचन सिंह जी ने इसके विभिन्न पहलुओं में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते। उन्होंने ऐसी परम्पराओं का निर्माण किया जो आज भी मिशन की आध्यात्मिक विचारधारा को आगे से आगे ले जाने तथा समाज सेवा के लिए एक सांझा मंच प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई है। हम आसानी से कह सकते हैं कि यह बाबा गुरबचन सिंह जी की परिकल्पना का ही मिशन है जिसे बाबा हरदेव ंिसंह जी ने आगे बढ़ाया और जिसे आज सद्गुरु माता सविन्दर हरदेव जी महाराज शिखरों तक ले जाना चाहते हैं।