चंडीगढ़ 8 मार्च 2025 आरके विक्रमा शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति —-🌹🚩*सच्चा मित्र**“आदित्य, बेटा ज़रा सुनो, तुम और माही कब विवाह करने वाले हो?”**“ममा, माही से तो मेरा कब का ब्रेकअप हो गया और अगले सप्ताह उसका विवाह है…” आदित्य ने निःसंकोच स्वर में कहा और वहाँ से चला गया। मैं आश्चर्य में पड़ गई। आज के बच्चे इतने बिंदास… इन्हें प्यार खेल लगता है। प्यार को यूँ भूला देना जैसे क्रिकेट के मैदान में छक्का लगाते समय बॉल खो गई हो… मैं चुपचाप खड़ी अपने अतीत में झांकने लगी।**पापा का लखनऊ से दिल्ली स्थानांतरण हो गया था। मैंने वहाँ एक नए स्कूल में प्रवेश लिया। बीच सत्र में प्रवेश लेने के कारण मेरे लिए पूरी कक्षा अपरिचित थी। स्थानांतरण के कारण मैं बहुत दिन स्कूल नहीं जा पाई, इसलिए मेरा सिलेबस भी छूट गया था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरी अध्यापिका ने उसी कक्षा में पढ़ने वाले आर्यन से मेरा परिचय करवाया और उसे समझा दिया, “आर्यन, तुम काव्या की पढ़ाई में सहायता करना।” आर्यन ने मुझे अपने नोट्स दिए, जिससे मुझे पढ़ाई में बहुत सहायता मिली।**यह संयोग ही था कि मैं और आर्यन एक ही कॉलोनी में रहते थे, फिर हम स्कूल भी साथ आने-जाने लगे। एक-दूसरे के घर जाकर पढ़ाई भी करते और पढ़ाई के साथ अन्य विषयों पर भी चर्चा करते थे। कभी-कभी साथ मूवी देखने जाते, तो कभी छत पर यूँ ही टहलते। धीरे-धीरे हमारे मम्मी-पापा भी जान गए कि हम अच्छे दोस्त हैं।**हम दोनों ने स्कूल में टॉप किया। इसके बाद हम महाविद्यालय में आ गए। आर्यन इंजीनियरिंग करने रुड़की चला गया और मैं दिल्ली में पास कोर्स करने लगी। कॉलेज पूरा होते-होते पापा ने मेरे विवाह के लिए लड़का ढूँढना आरम्भ कर दिया। छुट्टियों में आर्यन के घर आने पर मैंने उसे अपने विवाह की चर्चा के बारे में बताया। वह एकाएक गंभीर हो गया। मेरा हाथ पकड़कर बोला, “काव्या, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। आज से नहीं, जब से पहली बार देखा था, तब से ही। मैंने रात-दिन तुम्हारे सपने देखे हैं। कृपया मेरी नौकरी लगने तक प्रतीक्षा कर लो। मेरे अलावा किसी से विवाह की सोचना मत।” मुझे भी आर्यन पसंद था। मैंने उसे हाँ कह दिया।**दो महीने बाद पापा ने अभिनव को पसंद कर लिया। उनके मान-सम्मान के आगे मैं अपनी पसंद नहीं बता पाई। एक बार माँ से चर्चा किया था, “मां, मैं आर्यन को पसंद करती हूं और उससे ही विवाह…” बात पूरी होती उससे पहले ही माँ ने एक थप्पड़ मार दिया। “बड़ों के सामने यूँ मुँह खोलते हुए लज्जा नहीं आती? चुपचाप पापा के बताए हुए संबंध के बंधन में बंध जाओ वरना अच्छा नहीं होगा।”**माँ की धमकी के आगे मैं विवश थी। मैं चुपचाप विवाह करने के लिए तैयार हो गई। उस समय मोबाइल नहीं होते थे। मैं आर्यन को अपनी विवाह के बारे में नहीं बता पाई। विवाह के बाद मैं आगरा आ गई।**करीब दो साल बाद मेरी भेंट आर्यन से हुई। हम दोनों के बीच सुनने-सुनाने को कुछ शेष नहीं था। आर्यन ने ही अपनी बात कही, “अवश्य तुम्हारी कोई विवशता रही होगी, वरना कोई यूँ छलने वाला नहीं होता। तुम्हारा विवाह हो गई तो इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं तुमसे प्यार करना छोड़ दूँ। तुम अपना विवाह निभाओ और मुझे अपने प्यार से निष्ठा करने दो…” हम दोनों की आँखें नम हो गईं।**तब से लेकर आज तक आर्यन ने मेरी हर दिक़्क़त, हर दुख और हर खुशी में साथ दिया। मैं आर्यन जैसा सच्चा दोस्त पाकर निहाल हो गई। अभिनव और आर्यन की भी अच्छी बनती है। उसने विवाह नहीं किया। एक बार मेरे आग्रह देने पर कहा, “मेरे मन में बसी मुखड़े जैसी कोई मिली तो इन यादों को एक पल में ही विदा कह दूँगा…”**वह कई बार कहता है…**“तुझे पा लेते तो यह कहानी ही समाप्त हो जाती,**तुझे खोकर बैठे हैं अवश्य कहानी लंबी होगी।”* 🌹🚩 यह प्रेरणादाई कहानी अल्फा न्यूज़ इडिया के माध्यम से समाजसेवी नितिन जैन ने सबके लिए प्रेषित की है।
