लॉक डाउन में घर बैठने का हुनर बड़ों को सीखना चाहिए बच्चों से

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चंडीगढ़:- अप्रैल 26 :- आर के विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा:– सीखने की कोई उम्र नहीं होती है! और सीखने में ना ही कुछ शर्म होती है!! छोटे बच्चे बड़ों से सीखते हैं! और यह और भी शानदार पल होते हैं जब हम छोटे बच्चों से बहुत ही गहरी बातें सीखते व समझते हैं। बहुत ही गहरे सबक सीखते हैं।

कोरोनावायरस वैश्विक महामारी के चलते दुनिया की भांति भारत में भी लोक डाउन है। और भारत में 3 मई तक दूसरे चरण का लॉक डाउन जारी है। गाड़ियों के पहिए थम चुके हैं।  शॉपिंग मॉल्स, कॉर्पोरेट ऑफिस, सरकारी व गैर सरकारी विभाग, स्कूल, इंस्टीट्यूट सब पर ताला लगा हुआ है। सड़कें वीरान हैं। पार्कों में सन्नाटा पसरा हुआ है। ऐसे में आदमी जाए तो जाए कहां और जाए भी क्यों?।। जब मालूम है, बाहर जाएंगे, तो फिर लौट कर नहीं आएंगे। और जब घर आ ही गए, तो ना जाने आप के कारण कितने लौट कर नहीं आएंगे। घर में रहना मजबूरी नहीं है। जिंदगी जीने की एक लियाकत है। अवसर है। आज एकांत में रहोगे तभी कल सभी में रहोगे। लेकिन अफसोस कि हमारे डॉक्टर्स नर्स, पुलिस, सफाई कर्मचारी, सब्जी, फल व  दूध विक्रेता हमारे लिए जान हथेली पर रखकर हमें डोर स्टेप सर्विस दे रहे हैं। फिर भी कुछ नासमझ और  गंवार लोग गली मोहल्लों में, सड़कों पर कानून की धज्जियां उड़ाते हुए, जानवरों की तरह विचरते देखे जा रहे हैं। यह लोग यह नहीं जानते कि अपनी मौत से ही नहीं, बल्कि अनगिनत लोगों की जिंदगियों से खेल रहे हैं। इन लापरवाह व गैरजिम्मेदाराना लोगों को कब समझ आएगी। इनसे सौ  गुना समझदार स्कूली बच्चे हैं। जो घर के अंदर कैद हैं। उनमें कोई मायूसी, कोई निराशा और किसी तरह की बोरियत दिखाई नहीं देती। लाक डाउन में उन्होंने खुद को कैसे अच्छी आदतों के साथ बिजी रखा हुआ है। यहां इन  से सीखने की बड़ी अहम और जरूरी बात है। सीएचसी में कार्यरत ललित कुमार और  ज्योति की बिटिया परिधि घर पर रहकर अपने आपको बोरियत, आलस्य से दूर रखने के लिए छोटी मोटी प्यारी हाबीज में खुद को बिजी रख रही है। हम बड़ों को भी इन बच्चों से बहुत कुछ सीखना चाहिए। मासूमियत लिए ये  चेहरे हंसी ठिठोली में ही बड़ों को नेक और निर्मल नसीहत दे जाते हैं। परिधि लॉक डॉउन के चलते घर में नकारा पड़ी चीजों को इकट्ठा करके अपनी सूझबूझ से  बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट की सोच लेकर खुद को व्यस्त रख रही है। और अपनी क्लास की दूसरी स्टूडेंट्स की भी रोल मॉडल बनी हुई है। सेक्टर 38 स्टेपिंग स्टोन स्कूल की दूसरी क्लास की स्टूडेंट परिधि को सांता क्लाउज बहुत ही अच्छा लगता है। जो घर-घर जाकर लोगों को खुशियां देता है। इसीलिए उसने वेस्ट मटेरियल से एक प्लास्टिक की बोतल को रंगों से आकर्षक क्रिएटिव आर्टिकल बना रही। बच्चों की बोरियत दूर करने के लिए अनेकों समाचार-पत्रों ने बच्चों के लिए निशुल्क पेंटिंग कंपटीशन ऑनलाइन शुरू किए हुए हैं। इनमें भी परिधि निरंतर भाग लेती है। और अलग-अलग थीम पर अपने आर्ट  क्रिएटिविटी  बना कर भेजती रहती है। भले ही उसे अभी तक कहीं से भी इनाम नहीं मिल पाया है और ना ही किसी समाचार पत्र ने इस नन्ही परिधि की   पेंटिंग्स और आर्ट वर्क को 20 पेजों के अखबार में  थोड़ी सी भी जगह नहीं दी है।लेकिन वह मायूस न हो कर  अपने आर्टिकल को पूरा करना ही अपना इनाम समझती है। आर्ट क्रिएटिविटी को समर्पित परिधि की कलर कॉन्बिनेशन बेहद रुचिकर और चुनिंदा रहती है।। सॉफ्ट ड्रिंक की बोतल पर सांता  क्लाउज की पेंटिंग के बारे परिधि का कहना है कि हर साल 25 दिसंबर को सांता  आकर घर-घर खुशियां और मिठाइयां बांटकर खुद भी खुश होता  है। चारों तरफ जिंगल बेल जिंगल बेल सांग गूंजता दिल को अच्छा लगता है।

अदिति कलाकृति,हब आफ हॉबीज की प्रिंसिपल आर्टिस्ट मोनिका शर्मा आभा ने परिधि की क्रिएटिविटी की सराहना करते हुए कहा कि उसके अभिभावकों को इस शौक को पूरी तरह फलने फूलने का मौका देना चाहिए। और उसका सही मार्गदर्शन करने का भी यही समय है। एक न एक दिन आगे चलकर परिधि भी एक नामी कलाकार बनेगी। और यह गुण उस नन्हीं आर्टिस्ट में साफ दिखाई दे रहे हैं।। अभी ही जरूरत है, उसके हुनर को समझकर  बखूबी तराशा जाए। कारवां द इंडिया फाउंडेशन की संस्थापिका प्रिंसिपल बिक्रमजीत कौर ने भी परिधि की लगन भरी एकाग्रता  का काम देखा और कहा कि बच्ची  में प्रतिभा है। बस उसको तराशने वाले जौहरी की ही देर है। परिधि का मानना है कि जिस दिन इस धरती पर से कोरोनावायरस महामारी पूरी दुनिया से खत्म होगा उसी दिन से असली लॉक डाउन या कर्फ्यू खत्म समझाा जाएगा।।

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