चंडीगढ़:-29 अक्टूबर: लड़के विक्रमा शर्मा हरीश शर्मा करण शर्मा /राजेश पठानिया +अनिल शारदा* प्रस्तुति:——हम तो बच जायें लेकिन हमारे मित्र के रूप में विदेशी दुश्मन नहीं बचने देते और हम अपने बच्चों के सामने और अपने पैसे के घमंड में अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर डालते हैं।*
जानिये हम भारतीयों का सेहत से भरा एक अद्भुत उत्पाद…
*”कुछ मीठा हो जाये” के खिलाफ..*
*विशुद्ध भारतीय*
*सोन पापड़ी…*
*अद्भुत गुणवत्ता लेकिन हम काले अंग्रेजों के आगे कराह रही है…*
*भारतीय संस्कृति के खिलाफ चल रहे विदेशियों के अभियान को रोकने के लिए इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा भारतीयों तक पहुंचायें।*
नेचुरोपैथ कौशल
9896076323
*एक कहावत है..*
*जिसे हरा न सको, उसे यशहीन कर दो।*
*उसका उपहास करो।*
*उसकी छवि मलिन कर दो।*
*बस ऐसा ही कुछ हुआ है इस सुंदर मिठाई के संग में भी।*
आपने इधर सोनपापड़ी जोक्स और मीम्स भारी संख्या में देखे होंगे। निर्दोष भाव से उन पर हँस भी दिए होंगे।
पर अगली बार उस बाज़ार को समझिए जो मिठाई से लेकर दवाई तक और कपड़ों से लेकर संस्कृति तक में अपने नाखून गड़ाये बैठा है।
*एक ऐसी मिठाई जिसे एक स्थानीय कारीगर न्यूनतम संसाधनों में बना बेच लेता हो।*
*जिसमें सिंथेटिक मावे की मिलावट न हो।*
*जो अपनी शानदार पैकेजिंग और लंबी शेल्फ लाइफ के चलते आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपलब्ध होने पर बिना दूषित हुए किसी और को दी जा सके, खोये की मिठाई की तरह सड़कर कूड़ेदान में न जा गिरे।*
*आश्चर्य, बिल्कुल एक सुंदर, भरोसेमंद मनुष्य की तरह जिस सहजता के लिए इसका सम्मान होना चाहिए, इसे हेय दृष्टि हमारे सामने दिखाया जा रहा है।*
एक काम कीजिये, अगर आप डायबिटिक न हों तो घर में रखे सोनपापड़ी के डिब्बों में से एक को खोलिए।
नायाब कारीगरी का नमूना गुदगुदी परतों वाला सोनपापड़ी का एक सुनहरा, सुगंधित टुकड़ा मुँह में रखिये।
*भीतर जाने से पहले होंठों पर ही न घुल जाये तो बनाने वाले का नाम बदल दीजियेगा।*
*सोन पापड़ी कई लोगों की पसंदीदा मिठाई यूँ ही नहीं है.!*
बात बाज़ार से शुरू हुई थी,
सोनपापड़ी तो तिरस्कार का विषय हुई।
अब लंबी शेल्फ लाइफ और बढ़िया पैकेजिंग का दूसरा किफ़ायती उपहार और क्या हो सकता है?
*चॉकलेट्स..!!!*
*और क्या…?*
*समझ तो रहे ही होंगे..!!*
एक छोटे से उपहास के चलते, इधर के दो चार महीनों में ही कैडबरी का ही टर्नओवर क्या से क्या हो चुका होगा, मेरी कल्पना से बाहर की बात है।
पिछले दो दशकों से वे बड़े बड़े फ़िल्म स्टार्स को करोड़ों रुपये सिर्फ़ इस बात के दिये जा रहे हैं कि हमारी जड़ बुद्धि में ‘कुछ मीठा हो जाये’ यानी चॉकलेट ठूँस सकें।
*और हम हैं कि अब भी मीठा यानी मिठाई ही सूँघते, ढूँढ़ते फिर रहे हैं।*
तो क्या करना चाहिए.?
मिठाई क्या यह तो प्रोटीन बार है, और चीनी तो हर मिठाई में है।
और लोकप्रियता का आधार देखिये वो 35 रुपये में एक टुकड़ा देते हैं ये डिब्बाभर थमा देते हैं।
सो, याद रखिये, मीठा यानी, गुलाब जामुन, रसगुल्ला, सोनपापड़ी और सूजी का हलवा।
*चॉकलेट यानी चॉकलेट।*
आपने तो कैडबरी वालो को कहां से कहां पहुंचा दिया और हमारी प्यारी सोनपापड़ी सिसक रही है।
*अगर अपनी भारतीयता बचाये रखना चाहते हैं तो देसी चीजों को बढ़ावा दीजिये, आप और आपके बच्चे स्वस्थ रहेंगे।*
बस सोनपापड़ी को भी मिठाई के तौर पर ही खायें क्योंकि मीठा तो मीठा ही होता है।
जय हिंद वंदे मातरम नेचुरोपैथ कौशल।।