निरंकार को जानकर जीवन को सरल व सहज रूप में जिएं :- सत्गुरु माता सुदीक्षा

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चंडीगढ़ /कालका:- 19 मईः आर के विक्रमा शर्मा/ हरीश शर्मा/ अनिल शारदा +राजेश पठानिया/ करण शर्मा प्रस्तुति:- ‘‘ब्रह्मज्ञान की रोशनी द्वारा जीवन में व्याप्त समस्त भ्रमों की समाप्ति कर इसे सहज एवं सरल रूप में जिये और समस्त संसार के लिए खुशी का कारण बने।‘‘ यह दिव्य भाव निरंकारी सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने देर शाम को रेलवे ग्राउंड, कालका में आयोजित विशाल निरंकारी संत समागम में व्यक्त किए।

 

सत्गुरू माता जी ने मन की अवस्था को समझाते हुए कहा कि अधिकतर व्यक्ति क्रोध में दूसरों को भला बुरा कहते है वहीं कुछ, इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते और अंतर्मन में ही उलझे रहते हैं। वह दूसरों को हानि नहीं पहुंचाने की सोचते हुए स्वयं को ही कष्ट देते हैं। परन्तु यह अवस्था भी ठीक नहीं है। हमें सकारात्मकता को अपने विचारों में ही नहीं अपितु अपने कर्मों में भी अपनाना है। संसार में रहते हुए जीवन में बहुत सी घटनाएं घटित होती हैं किन्तु उन पर मंथन नहीं करना अपितु उन्हें त्यागकर आगे बढ़ना है।

 

स्ंातमति के महत्व को समझाते हुए सत्गुरू माता जी ने अपने दिव्य प्रवचनों में कहा कि जब हम निरंकार से इकमिक हो जाते है तब हम पर भक्ति का ऐसा रंग चढ़ता है कि हमारे मन एवं मस्तिष्क में यदि किसी प्रकार के नकारात्मक भाव आ भी रहे होते हैं तब वह भी समाप्त हो जाते हैं और हमारा जीवन

भक्तिर्माग पर चलते हुए संतमति को धारण कर लेता है।

 

सत्गुरू माता जी ने फरमाया कि आकाश में जब काले बादल छटने लगतें हैं तब उनकी बाहरी परत में से एक छोटी सी रोशनी नज़र आती है। रोशनी की यह छोटी सी लौ अर्थात् कमियों को नकारकर अच्छाईयों को अपनाते हुए जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। आज जरूरत है अपने नज़रिए को बदलकर प्रेम रूपी पुलोे को निर्मित करने की।

 

माता जी ने अपने प्रतिपादन में कहा कि हमारा शरीर जब नशीली पदार्थो का आदि हो जाता है तब वह हमें खुद ही काबू करने लगता है। फिर मन एवं मस्तिष्क में दोहरी अवस्था रहती है कभी नकारात्मक भाव आते है तो कभी सकारात्मक भाव। ठीक इसी भांति जब हमारे मन में अहंकार हावी हो जाता है तब वह हमारे विचार, व्यवहार, आचरण में साफ दिखाई देने लगता है और हमारे मानवीय गुणों को समाप्त करता चला जाता है। कहने का भाव यही कि हमें केवल बाहरी सुंदरता वाला जीवन नहीं अपितु अंदर एवं बाहर से एकरूपता एवं सहजता वाला जीवन ही जीना है। अंत में समस्त संतों को सेवा, सुमिरन, सत्संग के माध्यम से स्थिर निरंकार परमात्मा से जुड़े रहने का पावन आशीष सत्गुरू माता जी ने प्रदान किया।

 

कालका के संयोजक श्री तारा सिंह ने सत्गुरु माता जी के प्रति हृदय से आभार प्रगट किया और साथ ही प्रशासन एवं स्थानिक सज्जनो के सहयोग के लिए धन्यवाद भी किया। इस सत्संग कार्यक्रम में कालका एवं उसके आसपास के क्षेत्रों से सभी संतों ने हिस्सा लेकर सत्गुरु माता जी के पावन प्रवचनों द्वारा स्वयं को निहाल किया तथा उनके दिव्य दर्शनों के उपरांत सभी के हृदय में अपने सत्गुरू के प्रति कृतज्ञता का भाव था।

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आपके सम्मानित समाचार पत्र में प्रकाशनार्थ।

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