बिकाऊ और भड़काऊ मीडिया है, पर कुछ तो हकीकत है, बिल्ली सामने है कैसे आंखें मूंदे

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चंडीगढ़:- 7 जून:- अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क:देश आज एक बुरे संकट से गुजर रहा है और अगर देश के संचालकों ने प्रजा पालकों ने दूरदर्शिता से काम नहीं लिया यह जुमले सुनने वाली जनता ही जुमले बाजों को कभी माफ नहीं कर पाएगी और आने वाली पीढ़ियां भी इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार और जवाब दें सरकारों को हमेशा सवालों के कटघरे में खड़ा करती रहेंगी।। मान भी लो कि देश में कुछ बिकाऊ और भड़काऊ मीडिया है। लेकिन पहली बात तो यह है कि सरकार मीडिया की नहीं है तो फिर यह मीडिया टीका क्यों हुआ है ? अपने आप में यह एक यक्ष प्रश्न है दूसरी बात कि अगर यह मीडिया भड़काऊ है तो फिर जो यह सवाल उठाते हैं उनका तो जवाब पारदर्शिता से सटीक तथ्यों से और कुंदन तर्क संगत आंकड़ों से दिया जा सकता है। फिर यहां भी सरकार, प्रजातंत्र, प्रशासन व पुलिस सब क्यों नाकामयाब रहते हैं। पब्लिक इस प्रश्न का भी जवाब सीधे-सीधे सरल भाषा में चाहती है। और पब्लिक अपने मन की बात किस से कहें इसका भी जवाब चाहती है!!

कोरोना से लड़ने के लिए भारत की सरकार ने बहुत ही सूक्ष्म दर्शी होकर इससे पार पाने का भरसक और कुछ हद तक कामयाब प्रयास भी किया है। भले ही हमें आध्यात्मिक स्तर पर बहुत कुछ करने के बाद बहुत कुछ हासिल हुआ है लेकिन आज के प्रसंग में हम यह सब भूल चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने हमें हमारे हजारों साल पुराने पौराणिक धार्मिक वैज्ञानिक तथ्य परक संदर्भ से जुड़ा है। और देश ने उनके 1-1 इशारे को समझने का भरसक प्रयास भी किया है।

भड़काऊ और बिकाऊ मीडिया के नाम से जाने जाते कथित इस रवीश कुमार की लिखी उक्त रिपोर्ट अपने आप में कई सवाल खड़े करती है। अगर वाकई यह रिपोर्ट गलत है। तो करोड़ों देशवासियों के सामने इस रिपोर्ट के विरोध में असली सच सामने लाना भी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी सरकार की ही है। क्या कहा है रवीश कुमार ने, देश और सरकार और  मौजूदा हालात को लेकर देशवासियों की दयनीय अंतर्दशा को दर्शाती इस रिपोर्ट में।।

कई देश अरबों डॉलर के आर्थिक पैकेज का एलान कर चुके हैं, भारत थाली बजाने की तैयारी कर रहा है।।

कोरोना वायरस के कारण आर्थिक संकट गहराने लगा है। कुछ ही दिनों में कंपनियां डूबने के कगार पर पहुंच जाएंगी। लाखों करोड़ों लोगों की नौकरियां जा सकती हैं। इसे देखते हुए दुनिया की कई सरकारों ने अपने पैकेज के एलान कर दिए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने एलान किया है कि वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई है जो एक्शन प्लान बनाएगी। भारत कितना पीछे चल रहा है, आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। 30 जनवरी को भारत में कोरोना वायरस का पहला केस आया था। हम न तो अभी तक 10,000 सैंपल प्रति दिन टेस्ट करने की स्थिति में पहुंचे हैं और न ही आर्थिक पैकेज का कुछ पता है।

श्रीलंका में कर्फ्यू लग गया है। पूरे मुल्क में शुक्रवार शाम 6 बजे से लेकर सोमवार सुबह 6 बजे तक के लिए कर्फ्यू लगा है। 15 अप्रैल को होने वाले संसदीय चुनाव को टाल दिया गया है।

ब्रिटेन ने घोषणा की है कि जितने भी ब्रिटिश वर्कर हैं उनकी अस्सी फीसदी सैलरी सरकार देगी। यानि 2500 पाउन्ड प्रति माह। यह नौकरियों को बचाने के लिए किया गया है।

ब्रिटेन में अगली तिमाही के लिए वैट के भुगतान को टाल दिया गया है। कहा जा रहा है कि यह 30 अरब पाउन्ड के बराबर है। इससे कंपनियों को बाज़ार में बने रहने में मदद मिलेगी। ब्रिटेन में कई कंपनियां बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं। कंपनियों को बचाने के लिए 350 अरब पाउन्ड का पैकेज बनाया गया है। जिसे अनुदान और कर्ज़ के रूप में दिया जाएगा। ब्रिटेन की सात लाख छोटी कंपनियों को 10,000 पाउन्ड की नगद मदद दी जाएगी। हाउस लोन के भुगतान पर तीन महीने की रोक लगा दी गई है।

अमरीका ने अपने नागरिकों के हाथ में 1000 डॉलर देने का प्लान बनाया है। ब्रिटेन में इसे अपनाने की बात चल रही है। अमरीका में 104 बिलियन डॉलर के पैकेज की घोषणा हुई है। नागरिकों को मुफ्त में सैंपल टेस्ट करने की सुविधा दी जाएगी। बग़ैर बीमा के भी टेस्ट हो सकेगा। बच्चों को खाना मिलेगा। बीमार होने पर दस दिनों के लिए छुट्टी मिलेगी और कुछ वर्करों को 12 हफ्ते की सैलरी के साथ छुट्टी दी जाएगी।

जर्मनी ने अपने यहां की कंपनियों को बचाने के लिए एक अरब यूरो के पैकेज का एलान किया है। ये पैसा कंपनियों को कर्ज़ के रूप में दिया जाएगा। कंपनियों के हाथ में पैसा रहे इसके लिए करों में भी छूट दी जा रही है। बावेरिया प्रांत ने 10 बिलियन यूरो का एलान किया है। इस पैसे से चरमारी कंपनियों के शेयर खरीदे जाएंगे ताकि उन्हें डूबने से बचाया जा सके। दुनिया भर में फंसे हुए जर्मन यात्रियों को लाने के लिए 50 मिलियन यूरो के पैकेज का एलान किया गया है। जर्मनी ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए टीका पर काम शुरू कर दिया है। इसके लिए 145 मिलियन यूरो की घोषणा की गई है। यह पैसा शिक्षा व शोध मंत्रालय को दिया जाएगा।

स्पेन के प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि कंपनियों और उनके कर्मचारियों को बचाने के लिए 200 अरब यूरो का पैकेज दिया जा रहा है। सामाजिक सेवाओं में 600 मिलियन यूरो डाले जाएंगे।

पुर्तगाल ने भी 15 दिनो के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी है। 18 मार्च से ही वहां आपातकाल है। वहां की सरकार जीडीपी के चार प्रतिशत के बराबर यानि 10 बिलियन यूरो का पैकेज लेकर आई है। कंपनियों को बचाने के लिए।

कनाडा में कैलिफोर्निया स्टेट को पूरी तरह लॉकडाउन कर दिया गया है। ब्रिटिश कोलंबिया में भी लॉक डाउन की मांग चल रही है क्योंकि यहां के वैंकूवर में कोरोना से सबसे अधिक मौतें हुई हैं। कनाडा में 83 बिलियन डालर के पैकेज का एलान किया गया है। इसमें से 55 बिलियन डॉलर टैक्स छूट के रूप में दिए जाएंगे। टैक्स भुगतान की समय सीमा में छूट देकर यह राहत दी गई है। इसके अलावा नागरिकों की मदद के लिए 27 बिलियन डालर का पैकेज बनाया गया है। अप्रैल महीने से लोगों को हर दो हफ्ते के बाद 900 डॉलर दिए जाएंगे। यही नहीं कनाडा के सभी दस प्रांतों ने भी अपने स्तर पर कई घोषणाएं की हैं। कई शहर के मेयर भी अपने स्तर पर एलान कर रहे हैं। कनाडा के राष्ट्रीय बैंकों ने कहा है कि कुछ लोग अपनी किश्त छह महीने के लिए टाल सकेंगे।

भारत में तब तक मीडिया इसी में लगा रहेगा कि भाषण कैसा था। यह समय वाह वाह करने का नहीं है। सख्त सवाल करने का है जिससे व्यवस्था सतर्क हो सके। याद रखिएगा। हम सभी एक ही नाव पर सवार है। अभी तक सरकार इसी सवाल का जवाब नहीं दे रही है कि भारत एक दिन में कितने सैंपल टेस्ट करने की क्षमता रखता है। क्यों अभी तक भारत ने 15000 के करीब ही सैंपल टेस्ट किए हैं। जहां दक्षिण कोरिया एक दिन में 15 से 20 हज़ार सैंपल टेस्ट करने की क्षमता पर पहुंच गया है भारत 30 जनवरी से लेकर 20 मार्च तक 15000 से कुछ अधिक सैंपल ही टेस्ट कर पाया है। यह सवाल उठ रहा है कि इतने कम सैंपल क्यों टेस्ट हुए हैं? भारत की क्षमता कितनी है, दिल्ली में कितनी है, पटना और बंगाल के बर्धमान में कितनी है, आगरा में कितनी है? यही नहीं अभी तक एयरपोर्ट की स्क्रीनिंगं से यात्रियों के बच निकलने की खबरें आ रही हैं। स्क्रीनिंग में वीआईपी कल्चर की आहट सुनाई दे रही है। लखनऊ में कनिका कैसे बच कर निकल गईं और भीलवाड़ा में यात्री की वजह से डॉक्टर को संक्रमण कैसे हुआ? ज़रूरत है कि इन सब सिस्टम को पहले सख्त किया जाए। उसे विश्वसनीय बनाया जाए।

थाली तो कभी भी बजा सकते हैं।
-रविश कुमार- 21 मार्च ।।

साभार व्हाट्सएप यूजर।।।।

समाचार के साथ संलग्न फोटो देश की मौजूदा हकीकत को बयान करने में सक्षम है काली शाह बादलों की मौजूदगी और एक चमकता दमकता चांद बादलों की मोटी परतों के नीचे भी छुपा नहीं रहा उनको बंद कर बाहर आया चांदनी भी खेरी और सब और अलौकिक प्रकाश किया। भारत और उसकी सियासत, सियासत की सच्चाई और सच्चे नेता, भड़काऊ मीडिया, तथ्यपरक जानकारियां सब कुछ इस दृश्य की माकिफ है। बस जरूरत है तो काले बादलों के प्रयासों को धत्ता दिखाते हुए सच्चाई रूपी चांद को बाहर आकर प्रकाशमय होता देखने की काबिलियत की है।।

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