चंडीगढ़ मुंबई 02.02.2025 आरके विक्रमा हरीश शर्मा अरुण कौशिक प्रस्तुति—- इतिहास के पन्नों में सब दर्ज है. सच कभी भी दफन नहीं रहता है. महाभारत में भगवान श्री कृष्ण जी ने कहा कि हमारे कर्म हमारा पीछा करते हैं. बिल्कुल भारत धरती मां अपने देशभक्तों को अपनी पवित्र गोद में स्थान देती हैं. स्वामी श्रद्धा नन्द जी को एक लंगोटी पहने लाठी टेक संत ने जेहादी काफ़िर अब्दुल राशिद के हाथों तीन गोलियों मरवा करके क़त्ल करवाया था. यह क़त्ल 23 दिसंबर 1926 को करवाया गया था. और अब्दुल राशिद को संत की मौजूदगी में ही 25 दिसम्बर 1926 को गाजी की उपाधि देकर शुद्धि आंदोलन के कर्णधार स्वामी श्रद्धा नन्द की बेरहमी से हत्या करवा दी गई थी. जवाहरलाल नेहरु ने इस क़त्ल पर कभी कोई शब्द नहीं बोला. आगे कर्मों ने हिसाब-किताब बराबरी में निपटाया. देशभक्त नाथू राम गोडसे ने मोहनदास करमचंद गांधी को ईश्वर अल्लाह तेरो नाम गाते हुए को गोलियों से क़त्ल कर दिया था. ये इतिहास के पन्नों में दर्ज है पर आजाद भारत के हिंदूओं को कभी इस सच से रूबरू होने ही नहीं दिया गया. पर गोडसे को कोई उपाधि नहीं मिली. बल्कि कांग्रेस आजतक उसको बलिदानी नहीं मानी. पर हिंदूओं को अब्दुल राशिद गाजी की शान में पाठ याद कंठस्थ करवा दिया गया. पुष्टि करके अवगत करा दें कि झूठ क्या था जो आज भी झूठ ही है..