प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) ग्वालियर की “हृदय परिवर्तन” लघु कथा

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चंडीगढ़/ ग्वालियर:- 16 मई:- आरके विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा प्रस्तुति:— जिनकी जिभा पर और मन मस्तिष्क में मां शारदे का आशीर्वाद बसता है। वहां शब्दों की निम्नगा का बहना अविरल रहता है। अल्फा न्यूज इंडिया के माध्यम से मध्य प्रदेश के ग्वालियर की स्वतंत्र लेखिका प्रतिभा दुबे की लघुकथा हृदय परिवर्तन लाखों सुधि पाठकों हेतु प्रस्तुत की गई है। अल्फा न्यूज़ इंडिया का प्रयास रहेगा कि प्रतिभा दुबे की अन्य रचनाओं को भी यथासभव यथोचित स्थान प्रदान किया जाए।।

 

बाहर जोर जोर से आवाज लग रही थी! जैसे कोई भूकंप आया हो, जब ध्यान से सुनाई दिया तब जाकर पता चला की रमा की माताजी उससे गुस्से से पुकार रही थी।

सहज ” कारण ” था कि आज फिर रमा ने अपने लिए बनाया हुआ खाना किसी और की सहायता में दान में दे दिया था। जैसे ही रमा की माताजी को यह पता चला तो वह गुस्से में आग बबूला हो गई। और जोर जोर से बाहर रमा को आवाज लगा रही थी वो उससे कह रही थी आज घर आने पर उसकी खेर नही ।

रमा जब मां के पुकारने पर घर पहुंची तो देखा आज मां बहुत गुस्से मैं है ।वह चुपचाप मां की छड़ी उठाकर लाई और बोला, लो आप चाहो तो मुझे सजा दे सकती हो ! पर मेरे रोज रोज खाना दान देने का कारण सुन सको तो एक बार सुन लो। तब उसकी मां ने गुस्से के स्वर में बोला……

” मैं तुम्हारे लिए इतने प्यार से खाना बनाती हूं अपना सारा खाना यूं ही गरीबों में दान में बाट आती हो ,क्या हम कोई बहुत अमीर है।” इसके बाद कहने लगी अच्छा बताओ क्या कहना चाहती है। मां के इतना पूछने पर रमा मैं अपनी पूरी बात मां को बताई ! मां मैं तुम्हारा दिया हुआ खाना जानबूझकर नहीं बांट कर आती पर मैं जिस रास्ते से जाती हूं , उस रास्ते में सरकारी अस्पताल पड़ता है वहां पर भी एक बूढ़ी अम्मा रहती है। वह बेचारी अस्पताल के बचे हुए काम करके अपनी रोजी-रोटी चलाती है और उसके बदले में वहां रहने की व्यवस्था है , वृद्ध अवस्था होने के कारण वह अपने हाथ का उल्टा सीधा भोजन बना कर खा लेती है और कई बार वे बीमार पड़ जाती है। जब भी बीमार पड़ जाती है तो मैं आपके हाथ का बना हुआ स्वादिष्ट भोजन उनको दे आती हूं आखिर वह भी तो किसी की मां होंगी जैसे आप मेरी मां है ।पता नही पर उनको देखकर भी मेरा ह्रदय भर आता है। यह बात सुनकर उनका ह्रदय प्रेम से भर उठा और आंखें स्नेह के आंसुओं से! उन्होंने रमा को गले से लगाकर बोला जब तुम्हारा मन हो तब उनके लिए खाना ले जाया करो मैं तुम्हें अलग से पैक कर के दे दिया करूंगी , सच कह रही हो वृद्धा अवस्था होती ही ऐसी है इस अवस्था में यदि कोई सहारा मिले तो बस ईश्वर का आशीर्वाद है , और वह भी तो किसी की मां होगी तुम्हारी यह बात सुनकर मुझे मेरी मां की याद आ गई। तुम्हारी इस सोच ने तो मेरा ह्रदय ही परिवर्तन कर दिया कि कभी-कभी दूसरों की खुशी में भी खुशी मिलती है।

 

 

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