***मायूसी ***
जिंदगी . . .
आज! मुझे खामोश रहने दे !
कल ले लेना हिसाब सिलसिलेबार
मेरी टूटी सांसों का बेहिसाब !!
जिंदगी . . .
आज! मुझे खामोश रहने दे !
कल ले लेना हिसाब सिलसिलेबार
मेरी टूटी सांसों का बेहिसाब !!
क्षितिज के पार जाने वाले
मुड मुड के ना यूँ देख !
बमुश्किल सोये जख्म दिल के
जाग कर कराह उठेंगे !!
मूड़ के इक बार तो देख
दिल को करार तो आ जाये !
तुझ से तो गैर खैर खरे
ताकते भले ही मुझे क़ातिल निगाहों से !!
कौन ग़मख़ार मांगता
खुशगवार होना !
डूबना तेरी निगाहों में
नजर तेरी में उठ उठ के !
देह से लिपट, दिमाग का दर लांघ
दिलों के दरमियान आ गई !
झिंझोड़ा, जो उसने वाजूद मेरा
मौत बन “राज” जिंदगी आ गई !! !! !!