चंडीगढ़: 26 जनवरी:- आरके विक्रमा शर्मा प्रस्तुति:- आध्यात्मिक भाषा में कुछ भी अपवित्र नहीं है। और कुछ भी पवित्र नहीं है। लेकिन कुछ तो ऐसा है। जो अपवित्रता और पवित्रता के बंधनों से बहुत ऊपर है। यह कहना है पंडित रामकृष्ण शर्मा जी का, उन्होंने बताया कि इंसान भगवान को विश्व के कण-कण में ढूंढता है। लेकिन एक पलक झपक कर एक झलक अपने भीतर भी डालें। तो भगवान साक्षात आत्मा में परमात्मा स्वरुप बने हुए हैं। दूसरी ओर अगर दुनिया में कुछ भी अपवित्र है।
तो वह इंसान का अपना दैहिक व्यक्तित्व है। और अगर कुछ पवित्र ढूंढना है। तो अपनी इस देह के अंदर मनन और निरंतर अध्यात्म का पठन व चिंतन करते हुए ढूंढा जा सकता है।
उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं
वमनं शवकर्पटम् ।
काकविष्टा ते पञ्चैते
पवित्राति मनोहरा॥
*1. उच्छिष्ट — गाय का दूध ।*
गाय का दूध पहले उसका बछड़ा पीकर उच्छिष्ट करता है। फिर भी वह पवित्र और शिव पर चढ़ता हे ।
*2. शिव निर्माल्यं -*
*गंगा का जल*
गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधा शिव जी के मस्तक पर हुआ । नियमानुसार शिव जी पर चढ़ायी हुई हर चीज़ निर्माल्य है पर गंगाजल पवित्र है।
*3. वमनम्—*
*उल्टी — शहद..*
मधुमक्खी जब फूलों का रस लेकर अपने छत्ते पर आती है , तब वो अपने मुख से उस रस की शहद के रूप में वमन( उल्टी) करती है ,जो पवित्र कार्यों मे उपयोग किया जाता है।
*4. शव कर्पटम्— रेशमी वस्त्र*
धार्मिक कार्यों को सम्पादित करने के लिये पवित्रता की आवश्यकता रहती है , रेशमी वस्त्र को पवित्र माना गया है , पर रेशम को बनाने के लिये रेशमी कीडे़ को उबलते पानी में डाला जाता है और उसकी मौत हो जाती है उसके बाद रेशम मिलता है तो हुआ शव कर्पट, फिर भी पवित्र है।
*5. काक विष्टा— कौए का मल*
कौवा पीपल पेड़ों के फल खाता है ओर उन पेड़ों के बीज अपनी विष्टा में इधर उधर छोड़ देता है जिसमें से पेड़ों की उत्पत्ति होती है ,आपने देखा होगा की कही भी पीपल के पेड़ उगते नहीं हैं बल्कि पीपल काक विष्टा से उगता है ,फिर भी पवित्र है।