- चंडीगढ़ : 12 सितंबर : अल्फा न्यूज इंडिया प्रस्तुति:– *कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं।*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*
*कटा जब शीश सैनिक का*
*तो हम खामोश रहते हैं।*
*कटा एक सीन पिक्चर का*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*
*नयी नस्लों के ये बच्चे*
*जमाने भर की सुनते हैं।*
*मगर माँ बाप कुछ बोले*
*तो बच्चे बोल जाते हैं।।*
*बहुत ऊँची दुकानों में*
*कटाते जेब सब अपनी।*
*मगर मज़दूर माँगेगा*
*तो सिक्के बोल जाते हैं।।*
*अगर मखमल करे गलती*
*तो कोई कुछ नहीँ कहता।*
*फटी चादर की गलती हो*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*
*हवाओं की तबाही को*
*सभी चुपचाप सहते हैं।*
*च़रागों से हुई गलती*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*
*बनाते फिरते हैं रिश्ते*
*जमाने भर से अक्सर हम*
*मगर घर में जरूरत हो*
*तो रिश्ते भूल जाते हैं।।*
*कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*
यह कविता बार बार पढ़े।
आपको हर बार एक नया अहसास होगा llll
साभार व्हाट्सएप