चंडीगढ़ 13 अक्टूबर आर विक्रमा शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति—आज पूरी दुनिया में सभ्यता, परम्परा प्रचलन रहन-सहन खान पान लिबास का अदला बदली होना स्वाभाविक है। लेकिन सबसे ज्यादा भारतीय पारम्परिक परिधानों को विदेशों में मान्यता मिल रही है। तो उसके बदले में विदेशी पहरावे को भारतीय समाज बखूबी तेजी से अपना रहा है। और नग्नता की ओर भारतीय समाज की महिलाएं तेजी से दौड़ लगा रही हैं।इस बात से बिल्कुल अनजान है कि इस अंधाधुंध आजादी का ऊपर से इस्लामीकरण का जिहादियों के दुराचारों का दौर है ऐसे में उन्हें किस प्रकार की किफायत बर्तनी चाहिए। यह अंधी दौड़ खत्म होने वाली नहीं है। क्योंकि आज की आधुनिक महिला को आधुनिकता के नाम पर शर्म जैसी पर्दा जैसी कोई चीज कबूल नहीं है। और जिहादी तो चाहते ही यही हैं कि उनको कोई नंगा जिस्म दिखाई दे और वो उसको नोचना शरिया कानून के मुताबिक अपना हक समझें।और समझ रहे हैं इसकी ताजा मिसाइल हिंदुस्तान में यहां वहां बिखरती जा रही है।
जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है।
ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है….
एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।
भोजन जब स्वयं के पेट में जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खाएगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।
लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़कों का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। …
दोनों में एक्सीडेंट होगा ही।
अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन में कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की, उसे रखनी ही होगी।
घूंघट और बुर्का जितना गलत है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनना भी गलत है।…
बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों की सी फटी निक्कर और छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।…
जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र हो, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।
संस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है। गाड़ी के दोनों पहियों में संस्कार की हवा चाहिए। एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा।
नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर हैं जिनकी संस्कृति में कपड़े ही नहीं हैं। अत जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिन पास कर सकता है,..
सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बंद टॉयलेट का उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को सभ्य वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन में करना ही होगा।…
अत विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन में मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें। ….
मनुष्य हैं तो नियम मर्यादा और सभ्यता मनुष्यों के लिए है ..
साभार —-☺️🙏