रिटायरमेंट यानि बल्ब फ्यूज बनने से पहले सबको खूब रोशनी दें,तभी सब है सार्थक

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चंडीगढ़ 15 जनवरी आरके विक्रमा शर्मा करण शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति जीवन वही है जो काम सदा दूसरों के हार रहा है इंसान से बेहतर इस दुनिया में और कोई भी भगवान की सृजना नहीं है। लेकिन जो इंसान स्वार्थी, क्रोधी, या ईर्ष्यालू व झगड़ालू ऐसे इंसान इंसान ना होकर जानवरों से भी परे है। क्योंकि जानवर इंसान के प्रति अपनी वफादारी अपनी उपस्थिति से सबको हमेशा लाभ देता है। पशुओं से भी इंसान को बहुत कुछ सीखना चाहिए। वह परिवार और झुंड में रहते हैं। एक दूसरे की हिफाजत करते हैं। और दुख के समय में ज्यादातर वह साथी को छोड़ नहीं जाता।  और आगे अकेले नहीं निकलते हैं। बल्कि जब तक वह ठीक नहीं हो जाता। तब तक वहीं अन्न जल खुद भी त्याग कर खड़े रहते हैं।

रिटायरमेंट के बाद का दर्द :-शहर इंदौर में बसे विजय नगर में एक आईएएस अफसर रहने के लिए आए जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।‌ ये बड़े वाले रिटायर्ड आईएएस अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे। *एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था – मैं भोपाल में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं। मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था- और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। परेशान होकर एक दिन जब बुजुर्ग ने उनको समझाया* – आपने कभी *फ्यूज बल्ब* देखे हैं? बल्ब के *फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था या कितने वाट का था या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी?* बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है। लोग ऐसे‌ *बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं है‌ कि नहीं! फिर जब उन रिटायर्ड‌ आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया* तो‌ बुजुर्ग फिर बोले‌ – रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रुतबा‌ था,‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌। मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वो जो सामने शर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे जोशी साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो पाठक.. जी इसरो में चीफ थे। *ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं पर मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब – करीब एक जैसे ही हो जाते हैं*, चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट हो। कोई रोशनी नहीं‌ तो कोई उपयोगिता नहीं। *उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं। पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌।* कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ *रिटायरमेंट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाए नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं – रिटायर्ड आइएएस‌/रिटायर्ड आईपीएस/रिटायर्ड पीसीएस/ रिटायर्ड जज‌ आदि – आदि। अब ये‌ रिटायर्ड IAS/IPS/PCS/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/ अध्यापक.. कौन.. कौन-सी पोस्ट होती है भाई?माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, *बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या? अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने‌ रखती है‌ कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे‌ थे…आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ… *आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी…समाज को क्या दिया,जाति बन्धुओं के कितने काम आएं* लोगों की मदद की..या सिर्फ घमंड मे ही सूजे हुए रहे. .पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो बस याद कर लीजिए

*कि एक दिन सबको फ्यूज होना है।*

 

यह पोस्ट उन लोगों के लिए आईना है *जो पद और सत्ता होते हुए कभी अपनी कलम से समाज का हित नहीं कर सकते*। और *रिटायरमेंट होने के बाद समाज के लिए बड़ी चिंता होने लगती है।* अभी भी वक्त है इस पोस्ट को पढ़िए और चिंतन करिए तथा समाज का जो भी संभव हो हित करिए… *और अपने पद रूपी बल्ब से समाज देश की भलाई और बखूबी सेवा करें।

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