धरती पर रहकर भी लिया जा सकता है स्वर्ग का आनंद

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  1. चंडीगढ़:10 जनवरी: आरके विक्रमा शर्मा/करण शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति:—-एक बार आचार्य चाणक्य से किसी ने प्रश्न किया, ‘‘मानव को स्वर्ग प्राप्ति के लिए क्या-क्या उपाय करने चाहिएं?’’*

 

चाणक्य ने संक्षेप में उत्तर दिया, ‘‘जिसकी पत्नी और पुत्र आज्ञाकारी हों, सद्गुणी हों तथा अपनी उपलब्ध सम्पत्ति पर संतोष करते हों, वह स्वर्ग में नहीं तो और कहां वास करता है।’’

 

*आचार्य चाणक्य सत्य, शील और विद्या को लोक-परलोक के कल्याण का साधन बताते हुए नीति वाक्य में लिखते हैं, ‘‘यदि कोई सत्यरूपी तपस्या से समृद्ध है तो उसे अन्य तपस्या की क्या आवश्यकता है? यदि मन पवित्र और निश्छल है, तो तीर्थांटन करने की क्या आवश्यकता है? यदि कोई उत्तम विद्या से सम्पन्न है, तो उसे अन्य धन की क्या आवश्यकता है?’’*

 

वह कहते हैं, ‘‘विद्या, तप, दान, चरित्र एवं धर्म (कर्तव्य) से विहीन व्यक्ति पृथ्वी पर भार है। संसार में विद्यावान की सर्वत्र पूजा होती है। विद्यया लभते सर्व विद्या सर्वत्र पूज्यते। अर्थात विद्या रूपी धन से सब कुछ प्राप्त होता है।’’

 

सदाचार व शुद्ध भावों का महत्व बताते हुए आचार्य चाणक्य लिखते हैं, ‘भावना से ही शील का निर्माण होता है। शुद्ध भावों से युक्त मनुष्य घर बैठे ही ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। ईश्वर का निवास न तो प्रतिमा में होता है और न मंदिरों में। भाव की प्रधानता के कारण ही पत्थर, मिट्टी और लकड़ी से बनी प्रतिमाएं भी देवत्व को प्राप्त करती हैं, अत: भाव की शुद्धता जरूरी है।’’

 

आचार्य चाणक्य का यह भी कहना है कि ‘‘यदि मुक्ति की इच्छा रखते हो तो विषय-वासना रूपी विद्या को त्याग दो। सहनशीलता, सरलता, दया, पवित्रता और सच्चाई का अमृतपान करो।’’साभार।।।

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