मातृ और प्रादेशिक भाषाओं पर कुशासन है फिरंगी भाषा का

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चंडीगढ़ 06-03-2025 आरके विक्रमा शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति — जो व्यक्ति अपने मां-बाप और गुरु सहित अपने राष्ट्र का भक्त नहीं हो सकता है वह कभी-भी विश्वास पात्र हो नहीं सकता है। जब हम अपनी मातृभूमि मातृभाषा गुरुजनों का मानवता का आदर सत्कार नहीं करेंगे। उनके प्रति सेवा भाव नहीं रखेंगे। तो हमें भौतिक सुख तो मिल सकता है।पर फिर आत्मिक और आध्यात्मिक सुख से सदा के लिए मोहताज हो जाएंगे।।

“परमात्म प्रत्यक्षता का आधार सत्यता है। सत्यता से ही प्रत्यक्षता होगी एक स्वयं के स्थिति की सत्यता, दूसरी सेवा की सत्यता। सत्यता का आधार है – स्वच्छता और निर्भयता। इन दोनों धारणाओं के आधार से सत्यता द्वारा परमात्म प्रत्यक्षता के निमित्त बनो। किसी भी प्रकार की अस्वच्छता अर्थात् ज़रा भी सच्चाई सफाई की कमी है तो कर्तव्य की सिद्धि नहीं हो सकती।”

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