भव्य कलश यात्रा से श्रीमद् भागवत कथा का श्रीगणेश, कथावाचिका जया किशोरी जी ने सुनाई कथा

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चंडीगढ़ 25 नवंबर आरके विक्रमा शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति —-भगवान कृष्ण ने दुर्योधन से कहा एक तरफ मेरी नारायणी सेना को चुन सकते हैं और दूसरी तरफ मुझे निहत्था चुन सकते हैं। दुर्योधन ने भी ऐसा ही किया उन्होंने भगवान को छोड़कर उनकी नारायणी सेना को चुन लिया। यह भागवत कथा प्रसंग पंचकूला में माता मनसा देवी न्यास द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिन के श्रीगणेश करते हुए कथावाचिका जया किशोरी जी ने प्रारम्भ की।कथा वाचिका ने कथा को गति प्रदान करते हुए आगे कहा कि दुर्योधन ने जब पूरी नारायणी सेना मांग ली। तब कथावाचिका ने यथास्थिति का बखान किया गया।

उस समय भगवान श्री कृष्ण चुटकी लेते हुए

अर्जुन से कहा :

हार निश्चित है तेरी , हर दम रहेगा उदास

माखन दुर्योधन ले गया , केवल छाछ है तेरे पास

” अर्जुन ने कहा :

हे प्रभु जीत निश्चित है मेरी , दास हो नही सकता उदास माखन ले कर क्या करूँ , जब माखन चोर है मेरे पास .. !!

श्री कृष्ण ने अर्ज़ुन से कहा दुर्योधन तो माखन ले गये अर्ज़ुन ने श्री कृष्ण से कहा प्रभु जीत निश्चित है मेरी जब माखन चौर मेरे साथ है

भगवान कृष्ण ने नहीं उठाया शस्त्र
भगवान कृष्ण ने भी दुर्योधन की बात को मानते हुए उन्हें पहले अपनी बात रखने का मौका दे दिया। चूंकि श्री कृष्ण जानते थे कि अर्जुन व दुर्योधन युद्ध में उनसे मदद मांगने आए है। और दोनों के साथ ही उनका समान रिश्ता था इसलिए उनको दोनों की ही मदद करनी होगी। उन्होंने दुर्योधन से उनकी इच्छा पूछने से पहले ही अपनी तरफ से एक चीज स्पष्ट कर दी थी कि इस युद्ध में वह स्वयं शस्त्र नहीं उठाएंगे।

भगवान ने कह दिया कि दोनो में से एक ही मिल सकता है। जिसके पास नारायणी रहेगी उसके पास मैं नही और जिसके पास मैं रहूँगा उसके साथ नारायणी नही। देखो, यहाँ जिसको माया चाहिए उसे भगवान मिलेंगे कैसे? और जिसे भगवान चाहिए उसके माया किस काम की?

बदल सकता था इतिहास
उन्होंने दुर्योधन का मौका दिया कि आप चाहे तो एक तरफ मेरी नारायणी सेना को चुन सकते हैं और दूसरी तरफ मुझे निहत्था चुन सकते हैं। भगवान जानते थे कि दुर्योधन उनकी सेना को ही चुनेंगे क्योंकि उस समय नारायणी सेना बहुत बलशाली मानी जाती थी। दुर्योधन ने भी ऐसा ही किया उन्होंने भगवान को छोड़कर उनकी नारायणी सेना को चुन लिया। वहीं अर्जुन तो श्री कृष्ण की महिमा से वाकिफ थे इसलिए उन्होंने प्रभु को चुना। यह वह मौका था जहां दुर्योधन बड़ी आसानी से कृष्ण को अपने पक्ष में आने को मजबूर कर सकते थे। लेकिन उनकी बुद्धि ने यहां भी उनका साथ नहीं दिया।

श्री कृष्ण ने पांडवों का दिया साथ
उसके बाद जो हुआ वह सब आज इतिहास है। इस युद्ध में श्री कृष्ण ने बिना हथियार उठाए जिस तरह से पांडवों को जीत दिलाई वह सबने देखी। अगर श्री कृष्ण न होते तो पांडवों को कौरवों की इतनी बड़ी सेना व पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य व कर्ण के जैसे बड़े-बड़े योद्धाओं को हराना आसान नहीं होता। भगवान ने समय-समय पर सभी पांडवों का मार्गदर्शन किया।

उनके ही कारण द्रोणाचार्य व कर्ण को अर्जुन पराजित कर पाए नहीं तो अकेले अर्जुन के लिए यह संभव न होता। अगर वह दुर्योधन को युद्ध से पहले गांधारी के सामने पूर्ण नग्न होकर जाने से न रोकते तो शायद भीम कभी भी दुर्योधन को न हरा पाते। उन्होंने समय-समय पर पाण्डवों पर आने वाली हर विपदा को हर लिया। नहीं तो पांडव कभी महाभारत का युद्ध नहीं जीत पाते।

पार्वती बोली भोले से ऐसा महल बना देना,
कोई भी देखे तो ये बोले क्या कहना भाई क्या कहना,

रावण को कैसे मिली सोने की लंका
रावण, ब्राह्मण का वेश धारण कर भगवान शिव के पास गया और दान में सोने की लंका मांग ली, भगवान शिव बहुत ही दयालु हैं, उन्होंने रावण को लंका दान में दे दी. इस तरह रावण ने धोखे से सोने की लंका भगवान शिव और माता पार्वती से हथिया ली.


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