चंडीगढ़ 17 सितंबर- अल्फा न्यूज़ इंडिया प्रस्तुति— 17 सितंबर से शुरू हो रहे हैं पितृ पक्ष श्राद्ध, पितरों को करे खुश पाएं जीवन के कष्टों से मुक्ति,जानें कब-कब पड़ेगी श्राद्ध की तिथियां:ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता
हर साल पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या पर समाप्त होता है। इस साल 17 सितंबर 2024 से पितृ पक्ष की शुरूआत हो रही है, जिसका समापन 2 अक्तूबर 2024 को होगा।ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार साल के ये 16 दिन पूर्वजों की पूजा, आत्म शांति और आशीर्वाद पाने के लिए बेहद खास होते हैं, इन्हें श्राद्ध कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध अवधि के दौरान हम सभी के पूर्वज धरती पर आते हैं। ऐसे में पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की पितृ पक्ष के समय कई नियमों का पालन भी किया जाता है, जिससे पूर्वजों की कृपा परिवार पर बनी रहती है। आमतौर पर लोग श्राद्ध के दौरान पूजा पाठ से जुड़े कार्यों पर अधिक जोर देते हैं। इससे पितरों का आशीर्वाद और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दौरान पितरों का तर्पण करने से पितृ ऋण चुकाने में मदद मिलती है।
पूर्णिमा तिथि:
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर 2024 को प्रातः 11:44 से शुरू हो रही है। इसका समापन 18 सितंबर 2024 को प्रातः 08:04 पर होगा।
पितृ पक्ष 2024 तिथियां:
17 सितंबर, मंगलवार: पूर्णिमा श्राद्ध
18 सितंबर, बुधवार: प्रतिपदा श्राद्ध
19 सितंबर, गुरुवार: द्वितीया श्राद्ध
20 सितंबर, शुक्रवार: तृतीया श्राद्ध
21 सितंबर, शनिवार: चतुर्थी श्राद्ध, महाभरणी
22 सितंबर, रविवार: पंचमी श्राद्ध
23 सितंबर, सोमवार: षष्ठी श्राद्ध, सप्तमी श्राद्ध
24 सितंबर, मंगलवार: अष्टमी श्राद्ध
25 सितंबर, बुधवार: नवमी श्राद्ध, मातृ नवमी
26 सितंबर, गुरुवार: दशमी श्राद्ध
27 सितंबर, शुक्रवार: एकादशी श्राद्ध
29 सितंबर, रविवार: द्वादशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध
30 सितंबर, सोमवार: त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्तूबर, मंगलवार: चतुर्दशी श्राद्ध
2 अक्तूबर, बुधवार: अमावस्या श्राद्ध, सर्व पितृ अमावस्या
आइये जाने की क्या हैं त्रिपिंडी श्राद्ध :
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की पितरों की प्रसन्ता के लिये धर्म के नियमानुसार हविष्ययुक्त पिंड प्रदान आदि कर्म करना ही श्राध्द कहलाता है। श्राध्द करने से पितरों कों संतुष्टि मिलती है और वे सदा प्रसन्न रहते हैं और वे श्राध्द कर्ता को दीर्घायू प्रसिध्दि, तेज स्त्री पशु एवं निरोगता प्रदान करते है।
नारायण बलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी ये तीन श्राध्द कहलाते है। पितरो को प्रसन्न करने के लिए किए जाने वाले श्राध्द को शास्त्र में पितृयज्ञ से संम्बोदधित किया गया है। पितर ही अपने कुल की रक्षा करते हैं, इसलिये श्राध्द करके उन्हें संतुष्ट रखें ऐसा वचन शास्त्रों का है। जिस घर परिवार के पितर खुश रहते हैं उसमें कभी भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं आता।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की तमोगुणी, रजोगुणी एवं सत्यगुणी ऐसी तीन प्रेतयोनिया है। पृथ्वी पर वास्तव्य करने वाले पिशाच्च तमोगुणी, अंतरिक्षमें वास्तव्य करनेवाले पिशाच्च रजोगुणी एवं वायु मंडल मे वास्तव्य करने वाले पिशाच्च सत्वगुणी होते है। इन तीनो प्र्कारके प्रेतयोनि की पिशाच्चपीडा परिघरार्थ त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है।हमारे कुल वंश को पीडा देने वाले प्रेत योनि को प्राप्त जीवात्माओं की इस श्राद्ध कर्म से तृप्ति हो और उनको सद्गति प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना के साथ यह कार्य किया जाता है। सोना, चांदी, ताबा, गाय, चावल(जव), कालेतील, उडद,छत्र- खडावा दान देकर यह कार्य पूर्ण होता है।त्रिपिंडी श्राद्ध विधि करने का अधिकार ज्येष्ठ पुत्र अथवा कनिष्ठ पुत्र को होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णू और महेश इनकी प्रतिमाए उनका प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक पूजन किया जाता है। हमे सताने वाला, परेशान करने वाला पिशाच्च योनिप्राप्त जो जीवात्मा रहता है उसका नाम एवं गोत्र हमे ज्ञात नही होने से उसके लिए “अज्ञात नामगोत्र” का शब्दप्रयोग किया जाता है। अंतता इसके प्रेतयोनिप्राप्त उस जिवात्मा को संबोधित करते हुए यह श्राद्ध किया जाता है। त्रिपिंडी श्रद्ध जीवनभर दरिद्रता अनेक प्रकारसे परेशानीया, श्राद्ध कर्म, और्ध्ववैदिक क्रिया शास्त्र के विधी के अनुसार न किये जाने के कारण भूत, प्रेत, गंधर्व, राक्षस, शाकिणी – डाकिणी, रेवती, जंबूस आदि द्वारा पीड़ाएं उत्पन्न होती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की लगातार तीन वर्ष तक जिनका श्राध्द न किया गया हो, उनको प्रेतत्व प्राप्त होता है और वह दूर करने के लिए यह श्राध्द करना चाहिये। यह श्राद्ध किसी भी शिव मंदिर नदी के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे ही करना चाहिये।
यह पूजा अपघाती मृत्यु, प्रेत पीडा, पिशाच्य बाधा, शापीत कुंडली, पितृ दोष आदी कारण की जाती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की मानव का एक मास पितरों का एक दिन होता है। अमावस्या पितरों की तिथि है। इस दिन दर्शश्राध्द होता है। अतृप्त पितर प्रेतरूपसे पीडा देते है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की इस लिये त्रिपिंडी श्राध्द करना चाहिए। इसका विधान ‘श्राद्ध चिंतामणि’ इस ग्रंथमे बताया है। इस विधि को श्रावण, कार्तिक, मार्गशिर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन वैशाख और पित्रपक्ष मुख्य मास है 5, 8, 11, 13, 14, 30 में शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की तिथियां और रविवार दिन बताया गया है। किंन्तु तीव्रवार पीड़ा यदि हो रही है तो तत्काल त्रिपिडी श्राध्द करना उचित है।
जानिए की क्या हैं त्रिपिंडी श्राध्द —
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की त्रिपिंडी काम्य श्राध्द है। लगातार तीन वर्ष तक जिनका श्राध्द न किया गया हो, उनको प्रेतत्व प्राप्त होता है। अमावस्या पितरों की तिथि है। इस दिन त्रिपिंडी श्राध्द करें। तमोगुणी, रजोगुणी एवं सत्तोगुणी – ये तीन प्रेत योनियां हैं। पृथ्वीपर वास करने वाले पिशाच तमोगुमी होते है। अंतरिक्ष में वास करने वाले पिशाच रजोगुणी एवं वायुमंडल पर वास करने वाले पिशाच सत्तोगुणी होते है। इन तीनों प्रकार की प्रेतयोनियो की पिशाच पीडा के निवारण हेतु त्रिपिंडी श्राध्द किया जाता है।
कई साल तक पितरों का विधि पूर्वक श्राध्द न होने से पितरों को प्रेतत्व प्राप्त होता है।श्राध्द कमलाकर ग्रंथ में साल मे 72 दफा पितरों का श्राध्द करना चाहिए यह कह गया है।
अमावस्या व्दादशैव क्षयाहव्दितये तथा।षोडशापरपक्षस्य अष्टकान्वष्टाकाश्च षट॥
संक्रान्त्यो व्दादश तथा अयने व्दे च कीर्तिते।चतुर्दश च मन्वादेर्युगादेश्च चतुष्टयम॥
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की श्राध्द न करने से पितर लोग अपने वंशजों का खून पिते है यह आदित्यपुराण मे कहा है।
न सन्ति पितरश्र्चेति कृत्वा मनसि यो नरः।
श्राध्दं न कुरुते तत्र तस्य रक्तं पिबन्ति ते॥(आदित्यपुराण)
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की श्राध्द न करने से होने वाले दोष त्रिपिंडी श्राध्द से समाप्त होते है।जैसे भूतबाधा,प्रेतबाधा,गंधर्व राक्षस शाकिनी आदि दोष दूर करने के लिए त्रिपिंडी श्राध्द करने की प्रथा है। घर में कलह, अशांती,बिमारी,अपयश,अकाली मृत्य,वासना पूर्ति न होना,शादी वक्त पर न होना,संतान न होना इस सब को प्रेत दोष कहा जाता है।धर्म ग्रंथ में धर्म शास्त्र के नुसार सभी दोष के निवारण के लिए त्रिपिंडी श्राध्द करना को सुचित किया गया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की त्रिपिंडी श्राध्द में ब्रम्हदेव,विष्णु,रुद्र ये तिन देवताओंकी प्राणप्रतिष्ठापूर्वक पुजा की जाती है।त्रिपिंडी श्राध्द में सात्विक प्रेत दोष निवारण के लिए ब्रम्ह पुजन करते है और यव का पिंड दिया जाता है।राजस प्रेत दोष निवारण के लिए विष्णु पुजन करते है और चावल का पिंड दिया जाता है।तामसप्रेत दोष निवारण के लिए तिल्लिका पिंड दिया जाता है और रुद्र पुजन करते है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की यह पुजा सभी अतृप्त आत्माओंके मोक्ष प्राप्ती के लिए कियी जाती है।त्रिपिंडी श्राध्द में अपने गोत्र,पितरोंके नाम का नही किया जाता।कारण कौनसी पितरों की बाधा है।इस के बारेमे शाश्वत ज्ञान नहि होता।सभी अतृप्त आत्माओंकी मोक्ष प्राप्ती के लिए त्रिपिंडी श्राध्द करने का शास्त्र धर्मग्रंथ में बताया गया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की त्रिपिंडी श्राध्द का आरम्भ करने से पूर्व किसी पवित्र नदी या तीर्थ स्थान में शरीर शुध्दि के लिये प्रायश्चित के तौर पर क्षौर कर्म कराने का विधान है। त्रिपिंडी श्राध्द में ब्रह्मा, विष्णु् और महेश इनकी प्रतिमाएं तैयार करवाकर उनकी प्राण-प्रतिष्ठापुर्वक पूजन किया जाता है। ब्राह्मण से इन तीनों देवताओं के लिये मंत्रों का जाप करवाया जाता है। हमें सतानेवाला, परेशान करने वाला पिशाचयोनि प्राप्त जो जीवात्मा है, उसका नाम एवं गोत्र हमे ज्ञात नहीं होने से उसके लिये अनाधिष्ट गोत्र शब्द का प्रयोग किया जाता है। अंतत: इससे प्रेतयोनि प्राप्त उस जीवात्मा को सम्बोधित करते हुए यह श्राध्द किया जाता है। जौ तिल, चावल के आटे के तीन पिंड तैयार किये जाते हैं। जौ का पिंड समंत्रक एवं सात्विक होता हे, वासना के साथ प्रेतयोनि में गये जीवात्मा को यह पिंड दिया जाता है।ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की चावल के आटे से बना पिंड रजोगुणी प्रेतयोनी में गए प्रेतात्माओ को दिया जाता है। इन तीनों पिंडो का पूजन करके अर्ध्यं देकर देवाताओं को अर्पण किये जाते है। हमारे कुलवंश को पिडा देने वाली प्रेतयोनि को प्राप्त जीवात्मा ओं को इस श्राध्द कर्म से तृप्ती हो और उनको सदगति प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना के साथ यह कर्म किया जाता है। सोना, चांदी,तांबा, गाय, काले तिल, उडद, छत्र-खडाऊ, कमंडल में चीजें प्रत्यक्ष रुप में या उनकी कीमत के रुप में नकद रकम दान देकर अर्ध्य दान करने के पश्चात ब्राह्मण एवं सौभाग्यीशाली स्त्री को भोजन करवाने के पश्चाडत यह श्राध्दं कर्म पूर्ण होता है।
क्या पितृदोष से हमें डरना चाहिए?
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की पितृदोष एक भयानक दोष है ? इन सभी का जवाब है नहीं। नहीं क्यों? इसके कई कारण है। यदि आपके कर्म अच्छे हैं तो, आपको किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है, किसी भी प्रकार के दोष निवारण करने की जरूरत नहीं है।
पितृ बाधा का मतलब यह होता है कि आपके पूर्वज आपसे कुछ अपेक्षा रखते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की दूसरा यह कि आपके पूर्वजों के कर्म का आप भुगतान कर रहे हैं। यह भी कि यह हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष है। हमारे पूर्वजों का लहू, हमारी नसों में बहता है। हमारे पूर्वज कई प्रकार के होते हैं, क्योंकि हम आज यहां जन्में हैं तो कल कहीं ओर। पितृदोष का अर्थ है कि आपके पिता या पूर्वजों में जो भी दुर्गुण या रोग रहे हैं वह आपको भी हो सकते हैं।
पितृदोष का लक्षण-कारण-
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष माना गया है।
- कोई आकस्मिक दुख या धन का अभाव बना रहता है, तो फिर पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए।
- पितृदोष के कारण हमारे सांसारिक जीवन में और आध्यात्मिक साधना में बाधाएं उत्पन्न होती हैं।
- आपको ऐसा लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति आपको परेशान करती है तो पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए।
- पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी मौसा-मौसी, नाना-नानी तथा पितृपक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है।
- ऐसा माना जाता है कि, यदि किसी को पितृदोष है तो, उसकी तरक्की रुकी रहती है। समय पर विवाह नहीं होता है। कई कार्यों में रोड़े आते रहते हैं। गृह कलह बढ़ जाती है। जीवन एक उत्सव की जगह संघर्ष हो जाता है। रुपया पैसा होते हुए भी शांति और सुकून नहीं मिलता है। शिक्षा में बाधा आती है, क्रोध आता रहता है, परिवार में बीमारी लगी रहती है, संतान नहीं होती है, आत्मबल में कमी रहती है आदि कई कारण या लक्षण बताए जाते हैं।
पितृदोष के प्रकार-
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की कुंडली में पितृदोष का सृजन दो ग्रहों सूर्य व मंगल के पीड़ित होने से भी होता है, क्योंकि सूर्य का संबंध पिता से व मंगल का संबंध रक्त से होता है। सूर्य के लिए पाप ग्रह शनि, राहु व केतु माने गए हैं। अतः जब सूर्य का इन ग्रहों के साथ दृष्टि या युति संबंध हो तो सूर्यकृत पितृदोष का निर्माण होता है। इसी प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है। सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। वहीं मंगलकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने छोटे व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते।
कुंडली का नौवां घर यह बताता है कि, व्यक्ति पिछले जन्म के कौन से पुण्य साथ लेकर आया है। यदि कुंडली के नौवें में राहु, बुध या शुक्र है तो यह कुंडली पितृदोष की है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की लाल किताब में कुंडली के दशम भाव में गुरु के होने को शापित माना जाता है। सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृदोष हैं।
लग्न में राहु है तो सूर्य ग्रहण और पितृदोष, चंद्र के साथ केतु और सूर्य के साथ राहु होने पर भी पितृदोष होता है।
पंचम में राहु होने पर भी कुछ ज्योतिष पितृदोष मानते हैं।
जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।
जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है।
हमारे ऊपर किसका ऋण है?
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की कुंडली का नौवां घर यह बताता है कि, व्यक्ति पिछले जन्म के कौन से पुण्य साथ लेकर आया है। यदि कुंडली के नौवें में राहु, बुध या शुक्र है तो, यह कुंडली पितृदोष की है। लाल किताब में कुंडली के दशम भाव में गुरु के होने को शापित माना जाता है। सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृदोष हैं।
पितृ ऋण कई प्रकार का होता है:
जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। आत्मा का ऋण को स्वयं का ऋण भी कहते हैं। हालांकि इसके अलावा व्यक्ति अपने कर्मों से भी पितृदोष निर्मित कर लेता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की जब कोई जातक अपने जातक पूर्व जन्म में धर्म विरोधी कार्य करता है तो, वह इस जन्म में भी अपनी इस आदत को दोहराता है। ऐसे में उस पर यह दोष स्वत: ही निर्मित हो जाता है।
धर्म विरोधी का अर्थ है कि, आप भारत के प्रचीन धर्म हिन्दू धर्म के प्रति जिम्मेदार नहीं हो। पूर्व जन्म के बुरे कर्म, इस जन्म में पीछा नहीं छोड़ते। अधिकतर भारतीयों पर यह दोष विद्यमान है। स्वऋण के कारण निर्दोष होकर भी उसे सजा मिलती है। दिल का रोग और सेहत कमजोर हो जाती है। जीवन में हमेशा संघर्ष बना रहकर मानसिक तनाव से व्यक्ति त्रस्त रहता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की इसी तरह हमारे पितृ धर्म को छोड़ने या पूर्वजों का अपमान करने आदि से पितृ ऋण बनता है, इस ऋण का दोष आपके बच्चों पर लगता है जो आपको कष्ट देकर इसके प्रति सतर्क करते हैं। पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब रहने या संतान का सदैव बुरी संगति में रहने से परेशानी झेलना होती है।
पितर दोष के और भी दुष्परिणाम देखे गए हैं:-
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की कई असाध्य व गंभीर प्रकार का रोग होना। पीढ़ियों से प्राप्त रोग को भुगतना या ऐसे रोग होना जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहे। पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी रहता है।
इसके अलावा मातृ ऋण से आप कर्ज में दब जाते हो:-
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की ऐसे में आपके घर की शांति भंग हो जाती है। मातृ ऋण के कारण व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है। जमा धन बर्बाद हो जाता है। फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है। कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।
दूसरी ओर बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की बहन के ऋण के कारण 48वें साल तक संकट बना रहता है। ऐसे में संकट काल में कोई भी मित्र या रिश्तेदार साथ नहीं देते भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है।
स्त्री के ऋण का अर्थ है कि आपने किसी स्त्री को किसी भी प्रकार से प्रताड़ित किया हो। इस जन्म में या पूर्जजन्म में तो यह ऋण निर्मित होता है। स्त्रि को धोखा देना, हत्या करना, मारपीट करना, किसी स्त्री से विवाह करके उसे प्रताड़ित कर छोड़ देना आदि कार्य करने से यह ऋण लगता है। इसके कारण व्यक्ति को कभी स्त्री और संतान सुख नसीब नहीं होता। घर में हर तरह के मांगलिक कार्य में विघ्न आता है।
इसके अलावा गुरु का ऋण, शनि का ऋण, राहु और केतु का ऋण भी होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की इसमें से शनि के ऋण उसे लगता है, जो धोके से किसी का मकान, भूमि या संपत्ति आदि हड़प लेता हो, किसी की हत्या करवा देता हो या किसी निर्दोष को जबरन प्रताड़ित करता हो। ऐसे में शनिदेव उसे मृत्यु तुल्य कष्ट देते हैं और उसका परिवार बिखर जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की राहु का ऋण इस ऋण के कारण व्यक्ति मरने के बाद प्रेत बनता है।किसी संबंधी से छल करने के कारण या किसी अपने से ही बदले की भावना रखने के कारण यह ऋण उत्पन्न होता है। इसके कारण आपने सिर में गहरी चोट लग सकती है। निर्दोष होते हुए भी आप मुकदमे आदि में फंस जाते हैं। बच्चों को इससे कष्ट होता है। इसी तरह केतु के ऋण अनुसार संतान का जन्म मुश्किल से होता है और यदि हो भी जाता है तो वह हमेशा बीमार रहती है। यदि आपने किसी कुत्ते को मारा हो तो भी यह ऋण लगता है।
पितृ ऋण या दोष के अलावा एक ब्रह्मा दोष भी होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की इसे भी पितृ के अंर्तगत ही माना जा सकता है। ब्रम्हा ऋण वो ऋण है जिसे हम पर ब्रम्हा का कर्ज कहते हैं। ब्रम्हाजी और उनके पुत्रों ने हमें बनाया तो किसी भी प्रकार के भेदवाव, छुआछूत, जाति आदि में विभाजित करके नहीं बनाया लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद हमने ब्रह्मा के कुल को जातियों में बांट दिया। अपने ही भाइयों से अलग होकर उन्हें विभाजित कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ की हमें युद्ध, हिंसा और अशांति को भोगना पड़ा और पड़ रहा है।
ब्रह्मा दोष हमारे पूर्वजों, हमारे कुल, कुल देवता, हमारे धर्म, हमारे वंश आदि से जुड़ा है।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की बहुत से लोग अपने पितृ धर्म, मातृभूमि या कुल को छोड़कर चले गए हैं। उनके पीछे यह दोष कई जन्मों तक पीछा करता रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म और कुल को छोड़कर गया है तो उसके कुल के अंत होने तक यह चलता रहता है, क्योंकि यह ऋण ब्रह्मा और उनके पुत्रों से जुड़ा हुआ है। मान्यता अनुसार ऐसे व्यक्ति का परिवार किसी न किसी दुख से हमेशा पीड़ित बना रहता है और अंत: मरने के बाद उसे प्रेत योनी मिलती है।
मुक्ति के खास उपाय:–
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। प्रतिदिन सुबह और शाम घर में संध्यावंदन के समय कर्पूर जरूर जलाएं।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन गुड़ और घी के मिश्रण को कंडे (उपले) पर चलाने से भी देव और पितृदोष दूर होते हैं।प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ना।
श्राद्ध पक्ष के दिनों में तर्पण आदि कर्म करना और पूर्वजों के प्रति मन में श्रद्धा रखना भी जरूरी है।घर का वास्तु सुधारे और ईशान कोण को मजबूत एवं वास्तु अनुसार बनाएं।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की अपने कर्म को सुधारें, क्रोध और शराब को छोड़कर परिवार में परस्पर प्रेम की स्थापना करें।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की घृणा, छुआछूत, जातिवाद, प्रांतवाद इत्यादि की भावना से मुक्त होकर पिता, दादा, गुरु, स्वधर्मी और देवताओं का सम्मान करना सीखें।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की परिवार के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में सिक्के इकट्ठे करके उन्हें मंदिर में दान करें।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की देश के धर्म अनुसार कुल परंपरा का पालन करना, संतान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की दरअसल, हमारा जीवन, हमारे पुरखों का दिया है। हमारे पूर्वजों का लहू, हमारी नसों में बहता है। हमें इसका कर्ज चुकाना चाहिए। इसका कर्ज चुकता है पुत्र और पुत्री के जन्म के बाद। यदि हमने अपने पिता को एक पोता और माता को एक पोती दे दिया तो आधा पितृदोष तो वहीं समाप्त।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की दूसरा हमारे उपर हमारे माता पिता और पूर्वजों के अलावा हम पर स्वऋण (पूर्वजन्म का), बहन का ऋण, भाई का ऋण, पत्नी का ऋण, बेटी का ऋण आदि ऋण होते हैं। उक्त सभी का उपाय किया जा सकता है। पहली बात तो यह की सभी के प्रति विनम्र और सम्मानपूर्वक रहें।
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की कौए, चिड़िया, कुत्ते और गाय को रोटी खिलाते रहना चाहिए। पीपल या बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाते रहना चाहिए। केसर का तिलक लगाते रहना चाहिए। कुल कुटुंब के सभी लोगों से बराबर मात्रा में सिक्के लेकर उसे मंदिर में दान कर देना चाहिए। दक्षिणमुखी मकान में कदापि नहीं रहना चाहिए। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से पितृदोष चला जाता है, पूरी श्रद्धा भक्ति और कठोरता के साथ एकादशी का व्रत रखना चाहिए।
हिंदू धर्म में क्यों रखा जाता है व्रत? व्रत रखने के नियम क्या कुछ नियम भी होते?ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता
हिंदू धर्म में प्रमुख व्रत-त्योहारों के मौके पर व्रत रखने की परंपरा होती है. तीज-त्योहार पर हिंदू धर्म में व्रत रखना एक अभिन्न अंग माना जाता है। व्रत जिसे उपवास भी कहते हैं ऐसी मान्यता है कि व्रत रखने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है।ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की व्रत को धारण करने के लिए विशेष नियम होते हैं जिसका पालन करना बहुत जरूरी होता है।
हिंदू धर्म में हर एक पर्व पर व्रत का विशेष महत्व होता है और उसे रखने के अलग-अलग नियम होते है. व्रत के नियमों का अगर पालन सही तरीके से न किया जाए तो व्रती को व्रत का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
आइए जानते हैं व्रत का धार्मिक, वैज्ञानिक और व्रत रखने के नियम-
व्रत का धार्मिक महत्व:ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की सनातन धर्म में व्रत रखने का विशेष महत्व होता है. व्रत रखने से व्यक्ति को मानसिक शांति, भगवान के नजदीक रहने के शक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में उपवास रखने का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि व्रत रखने पर सभी तरह के पापों और कष्टों से मुक्ति मिलती है. व्रत रखने से व्यक्ति का मन,दिमाग और आत्मा शुद्ध होती है. हिंदू धर्म में व्रत रखने से भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा,भाव, भक्ति और समर्पण का भाव आता है. इसी कारण से हर एक धार्मिक मौके पर किसी न किसी रूप में अलग-अलग तरीके से व्रत रखा जाता है।
व्रत का वैज्ञानिक महत्व:ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की व्रत का जितना धार्मिक महत्व होता है उतना ही वैज्ञानिक महत्व होता है. विज्ञान के अनुसार व्रत धारण करने से व्यक्ति की सेहत अच्छी बनी रहती है। व्रत के दौरान भोजन नहीं किया जाता है कुछ अल्पाहार लेकर ही पूरा दिन बिताया जाता है इससे व्यक्ति का पाचन तंत्र ठीक बना रहता है और पाचन तंत्र की क्रियाएं मजबूत बनी रहती है। व्रत रखने व्यक्ति के शरीर में मोटापा और कोलेस्ट्ऱॉल का मात्रा काबू में रहती है जिससे व्यक्ति का शरीर सेहतमंद रहता है।
व्रत रखने के नियम:
ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की व्रत रखने वालों को साफ कपड़े पहनने चाहिए। व्रत का संकल्प लेने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन सुबह जल्दी से उठकर दैनिक क्रियाओं को करते हुए स्नान करना चाहिए। उसके बाद साफ वस्त्र धारण करना चाहिए.
व्रत पर संबंधित देवी-देवता की करें पूजा-ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की जिस विशेष दिन पर व्रत रखें उस दिन उससे संबंध रखने वाले देवी-देवता की पूजा आराधना जरूर करनी चाहिए.
व्रत के दिन न सोएं-
जिस दिन विशेष पर व्रत रखने का संकल्प आपने लिया हुआ उस दिन व्रती को दिन के समय नहीं सोना चाहिए.
व्रत के दिन बार-बार खाने से बचें-ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की व्रती को व्रत के दिन बार-बार खाने से बचना चाहिए. व्रत पर अन्न का त्याग करना चाहिए और केवल जल और फलाहार ही ग्रहण करें. इस व्रत पूर्ण माना जाता है।
व्रत के दिन झूठ और गलत आदत से बचें-ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की व्रत रखने पर व्यक्ति को हमेशा सत्य ही बोलना चाहिए. किसी को बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए।इसके अलावा व्रत पर चोरी आदि नहीं करनी चाहिए।व्रती को व्रत रखने के दौरान किसी सी निंदा या बुराई नहीं करनी चाहिए।
दान करना शुभ-ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की व्रत वाले दिन व्रती को गरीबों को दान अवश्य करना चाहिए और असहायों की हमेशा मदद करें। व्रत के दिन भगवान के मंत्रों का दिनभर जाप करते रहना चाहिए।
व्रत के बाद सात्विक भोजन ही करें-ज्योतिषाचार्य पंडित कृष्ण मेहता ने बताया की व्यक्ति को व्रत की समाप्ति के बाद हमेशा सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए. साथ ही व्रत के बाद हल्का ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।