चंडीगढ़:-28 नवंबर:- अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क प्रस्तुति:—–बांह जिन्हां दी पकड़िए सिर दीजै बांह न छोड़िए।
तेग बहादर बोल्या धर पईए धरम न छोड़िए॥
धर्म कैसे छोड़ दें?
हमारी अपनी मजबूरियां हैं साहब!! हमारी आंखों से गुरु तेगबहादुर जी का उतरता शीश, बन्दा बैरागी और भाई मतिदास की चिरती देह, चार साहिबज़ादों की उखड़ती सांसों के मंजर हटते ही नहीं!
बात किसी से बदले की नहीं मगर अपने पूर्वजों पर अत्याचारों से आंख मींच कर बेशर्मी से सेकुलरिज्म की लिबिर लिबिर तो नहीं कर सकते ना? इतनी रीढ़ तो केंचुए में भी होती है।
और माफ भी कैसे करें, माफ करने का हक़ हमें है ही कहां?
शांति बनी रहेगी, सद्भाव नहीं हो पाएगा 🙏
नौ वर्ष के बेटे के हाथ में था गुरू तेगबहादुर जी का कटा हुआ सिर ! दृश्य बताता है कि औरंगज़ेब की मजहबी क्रुरता का प्रतिकार करते हुए अपने धर्म कैसे विकट स्थितियों में भी ज़िंदा रखा ।
गुरू तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन🚩ll