–तब आशा बीरबल शर्मा ने समूचे शरीर का दान फार्म भरा था जब ….
चंडीगढ़ ; आरके शर्मा विक्रमा/मोनिका शर्मा ;——जब ये शरीर मिटटी ही होना है तो इससे तो लाख गुना अच्छा ये है रहेगा ये किसी इंसान का जीवन बचाने के काम आये और उस शख्स का जीवन और परिवार भी चलता पलता रहे ये विचार धर्म कर्म स्नेही और परोपकारी प्रवृति की धनी संस्कार निष्ठा आशा बीरबल शर्मा ने दूसरे लोगों को भी अंगदान करने के लिए एक मंच से व्यक्त किये थे ! उस दौर में मरने पर शरीर की चीड़फाड़ को अधर्म और पाप तुल्य समझा जाता था ! लोग नेत्र दान तक से पूरी तरह गुरेज बरतते थे ! उस दौर में पिता पंडित रामकृष्ण शर्मा और माता लक्ष्मी देवी शर्मा की पुत्री आशा शर्मा ने स्वेच्छा से समूचे शरीर का अपने जीवन की इहलीला की समाप्ति पर पीजीआई चंडीगढ़ को दान करने की घोषणा सार्वजनिक मंच से की थी ! उन्होंने समाज के डरपोक पिछड़े और धर्म का गलत मतलब समझने वालों को नई दिशा देते समझाया था कि नेत्र दान करके आप अपनी मौत के बाद भी देखते रह सकते हैं ! दिल दान दे कर किसी के सीने में धड़कते रह सकते हैं और किसी के परिवार को तबाह होने से बचा सकते हैं ये जीते जी पुण्य नहीं तो क्या है ! इस बारे में उनके पति बीरबल शर्मा जोकि अकाउंटेंट जनरल [एजी] हरियाणा में बतौर अधिकारी कार्यरत हैं ने कहा कि आशा शुरू से ही भगवान और इंसानियत की पुजारी हैं और किसी के साथ भेदभाव अन्याय के खिलाफ बोलने वाली हैं ! आशा बीरबल शर्मा के पुत्र करण शर्मा और बेटी निहारिका शर्मा को अपनी माता के इस प्रेरणादायी कदम पर नाज है ! आशा शर्मा के पिता पंडित राम कृष्ण शर्मा के मुताबिक ब्राह्मण कुल में जन्मी बेटी ने घर में संस्कारों की घुट्टी पी है तो परमार्थ और मानवीयता तो रोम रोम वास करती ही है ! कहते हैं कि बेटी पर माता का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है ! माता लक्ष्मी देवी शर्मा खुद स्वतंत्रता सेनानी देश भक्त परिवार जन्मी हैं ! अब आगे और कुछ बोलने की जरूरत नहीं रहती है !