चंडीगढ़ ; 9 फरवरी ; आरके शर्मा विक्रमा /मोनिका शर्मा ;—— सनातन धर्म आदि अनादि काल से मानस जीवन को जीने की राह और कला दर्शाने का द्दोतक रहा है ! शिव बाबा जीवन का मूर्त स्वरूप है और शंकर इसके मूल का ज्ञान है ! हालाँकि शिव और शंकर को लोग एक ही स्वरूप मानते ! हिन्दू धर्म में व्रत की अपनी महत्ता और अनिवार्यता सर्वसुखाय कही जाती है ! भगवान शिव की रात्रि को धर्म सृष्टि की महारात्रि भी कहा जाता है ! भगवान शिव की उतपत्ति की रात्रि यानि जीवन के अंकुरित होने का काल शिवरात्रि है ! रात्रि को शिव का आविर्भाव ही काले स्याह तिमिर का हरण करने वाला उजला प्रकाश है ! इस अलौकिकत प्रकाश पुंज रूपी जीवन को जीने की कला या ज्ञान ही शिक्षा का प्रकाश है ! इस दिन विकारों का त्रास और विपत्तियों का नाश करने वाले शिव की शक्ति का नाम शंकर है ! शिव ज्योति है तो शंकर प्रकाश है और दोनों की उपस्थिति शून्य स्थित ओरा है ! ये भगवान शिव की महिमा है जिसका शंकर के ज्ञान के बिना सब अधूरा है ! तभी तो शिव के आने की रात का अपना अतुलनीय वर्णन धर्म शास्त्रों और ग्रंथों में बखूबी बखाना लगा रहता है ! व्रत बाबा के समीप्य का साधन है ! आदि अलौकिक प्रकाशपुंज रूपी भगवान शिवशंकर मोक्ष का संरक्षक है ! व्रत अपनी इन्द्रियों को वश करने की क्रीड़ा है ! जिसका निर्वहन करने वाले साधक को स्वस्थ निरोग काया और उसमे वास करने वाली आत्मा को उत्तम लक्ष्य में निहित करने का प्रण ही तो व्रत की परिभाषा और पराकाष्ठा है ! निराहार रहने और आहारयुक्त रहने के कर्म और क्रम सुविधा का नाम ही व्रत है ! इन्द्रियों को मन और मस्तिष्क के वशीभूत रखने का क्रम भी चेष्टा रूपी व्रत साधक की साधना का सतत है ! व्रत में निहित होना और नियति में व्रत रत होना ही आराधना है ! सूक्ष्मता का ज्ञान ही विशालता का बोध है ! और बोध सदैव शून्य मुक्त रहता है और भावयुक्त सूक्ति भी व्रत का ही क्रम है ! सो व्रत का विधान और विधान के लिए व्रत परस्पर पूरक हैं !