कोरोनावायरस की अधिकारियों पर टेढ़ी नजर, ऑफिशियल्स को तो देखने में भी करता अगर मगर

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चंडीगढ़: – 30 जुलाई: – करण शर्मा / एनके धीमान: – ट्राई सिटी में कोरोनावायरस जैसी वैश्विक महामारी का प्रचंड प्रकोप दिन प्रतिदिन उग्र रूप लेता जा रहा है। संक्रमितों की तादाद बढ़ती जा रही है। और मरने वालों की भी बढ़ती तादाद दिल दहलाने वाली है। संक्रमितों के अनुपात में मेडिकल सुविधाएं ऊंट के मुंह में जीरा हैं। और शहरवासियों की हाय हाय त्राहि-त्राहि को भांपा जाए, तो जिम्मेदार और जवाब देह अफसरों ने मनमर्जी करते हुए जनता को उन्हीं के हाल-ए-कर्म पर छोड़ कर अपने फ़र्ज़ से इतिश्री कर ली !! नतीजा यह है कि शहर भर में लोग भेड़ बकरियों की तरह यहां अलग-अलग स्थलों, मार्कट परिसरों सहित सरकारी व ग़ैर सरकारी दफ्तरों आदि में विचरते देखे जा रहे हैं। सरकारी दफ्तरों में इंतजाम आदि सिर्फ और सिर्फ सरकारी अफसरों तक सीमित होकर रह गए हैं। और इसी का खामियाजा यूटी सचिवालय और पुलिस हेड क्वार्टर चंडीगढ़ की बिल्डिंगों को कुछ समय के लिए सील्ड करके चुकाया गया था। आजकल सरकारी ऑफिशल्स बड़े कैडर के अधिकारियों के घरों के बाहर शिफ्टवाइज ड्यूटी दे रहे हैं। इसलिए कि कोई कोरोनावायरस गलती से नजर भी उठा कर इस ओर ध्यान भी न दे। बड़े दुख और अफसोस की बात यह है कि सरकार ऑफिशल्स अफसरों की कोठियों के बाहर 8-8 घंटे खड़े हो कर के  ड्यूटी देने को मजबूर हैं! उन्हें वहाँ पर किसी भी प्रकार की बैठने की सरकारी व्यवस्था नहीं है! शौचालय आदि जाने की कोई भी विकल्प व्यवस्था भी नहीं है! और आसपास कहीं चाय तक के दो घूंट भी पीने को नहीं मिलते हैं। यहाँ प्रकाश व्यवस्था रात के वक्त कितनी कारगर है, यह भी जगजाहिर है। बड़े अधिकारी कितने पढ़े लिखे और कितनी मानवीय संवेदनाओं की कद्र करते हैं कि वह घर से बाहर-भीतर जाते आते रहते हैं। जब उनके बचाव के लिए कार्यरत ऑफिशल्स की तरफ देखते हैं तब तक नहीं हैं। उनकी कुशलक्षेम पूछना, उन्हें चाय पानी देना तो दूर, पीने का जल तक भी मुहैया करवाना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। हालांकि यह घटना पाँचों उंगलियां  एक जैसी नहीं हैं को सार्थक भी करती है! अनेकों स्थानों पर ऐसी ही ड्यूटी देते ऑफिशल का कहना है कि उन्हें बैठने के लिए बढ़िया फर्नीचर, पीने का शुद्ध जल व शौचालय की व्यवस्था और रात को उचित प्रकाश व्यवस्था मुहैया करवाई जाती है। पर यह सुविधाएं हर किसी के नसीब में नहीं है। दीगर बात तो यह है कि अनेकों ऑफिशल जिनमें से ज्यादातर तो रिटायरमेंट के करीब बैठे हैं। और अनेकों ऑफिशल्स क्रॉनिक बीमारियों से ग्रस्त हैं। लेकिन फिर भी उन्हें ऐसी खतरनाक स्थिति में खुले में ड्यूटीज देनी पड़ रही हैं। प्रशासनिक अधिकारी मूकदर्शक बनकर इस गंभीरता से मुंह फेरे हुए हैं। जरूरत है तो इन ऑफिशल्स के साथ इंसानियत के नाते सदव्यवहार किया जाना चाहिए। और इनको यथोचित सत्कार सम्मान मिलना चाहिए। और जो लोग मेडिकल आधार पर उक्त जानलेवा वायरस के वातावरण में ड्यूटी देने में असमर्थ हैं। उन्हें तत्काल प्रभाव से इस ड्यूटी से मुक्त किया जाना चाहिए। और उनकी जगह दूसरे लोगों को लगाया जाना चाहिए। यहाँ यह भी सवाल उठता है कि यह ऑफिशल्स बड़े ऑफिसर्स को किस तरह कोरोनावायरस से बचायेंगे ?? यह यक्ष प्रश्न अपने आप में सब परिस्थितियों को बयान कर रहा है! ये ऑफिशल की ऑफिसर्स के घर के बाहर ड्यूटी लगाने का औचित्य ही क्या है? यह सब की समझ से परे है! शाबाशी है उन ऑफिसर्स को, जो अपनी जान हथेली पर रखकर क्रॉनिक डिजीज से प्रभावित रहते हुए भी बड़े ऑफिसर्स की हिफाजत में जुटे हुए हैं !! और अभावग्रस्त परिस्थितियों में अपने कर्म का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं ।।

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