दिशाहीन दौड़

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चंडीगढ़ : 5 जून : अल्फा न्यूज इंडिया :—

 

अजीब दौड़ है…

तलब की ओर है…

सन्नाटों में बिखरता शोर है…

बेसुध सा मन… ये कच्ची  डोर है…

कौन है तू बस धुएं का छोर है…

ये धुएं के छल्ले मिले गली मोहल्ले…

ये ना मिले तो तड़प से तू  झूठ भी बोले…

जिस्म तेरे रूह में नहीं है…रूह तेरे जिस्म में हो ले…

तू धोखा भी दे..तू शिकवा भी करे…तू अपनों का दिल भी दुखा दे…

फिर भी तेरी तम्मना है के कोई  तो दो काश लगा दे…अरे थोड़ा ही  पिला दे..

लग गया है अब तो चस्का…ये न मिला तो तू यूँ ही खिसका…

ये मालूम है तुमको भी ये नशा है ज़हरीला

क्यूँ नशे को तूने दिल से है लगा रखा….छोड़ दे इसको इसमें  ना कुछ है रखा…

क्यूँ नशे को तूने दिल से है लगा रखा….छोड़ दे इसको इसमें  ना कुछ है रखा…

कविवर :-अनीश मिर्ज़ा…

 

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