सरकार की अनदेखी से अमनप्रीत 5 सालों से मौत की दहलीज तक घिसट रही, तेजाब पीड़िता की 38 सर्जरियां,40 लाख रूपये खर्चे,बादल के बाद कैप्टन से आस

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अमनप्रीतकौर एसिड पीड़ित की हुईं 38 सर्जरीज, 40 लाख खर्चे, दर्दनाक मौत से भी बद्तर जिंदगी! जिम्मेदार कौन? कल्याणकारी सरकार के म्याने बदले ????
चंडीगढ़ /नईदिल्ली ; 14 जून ; अल्फ़ा न्यूज इंडिया ;----किसी महिला की जिंदगी उस वक्त नर्क बन जाती है जब उसके ऊपर एसिड अटैक हो जाये और वो भी चेहरे पर, क्यूंकि इसके बाद का समय वो कभी हँस कर नही गुजार सकती। हम कितनी भी नैतिकता और मानवता की बाते करें लेकिन अंततः ऐसी किसी भी महिला को आसानी से अपने परिवार के लिए स्वीकार नही कर पाते। कुछ ऐसी ही कहानी है मासूम अमनप्रीत की, जिसे जख्म दिए भी तो किसी अपने ने ही !
एसिड अटैक पीड़िता अमनप्रीत की अब तक 38 सर्जरी हो चुकी है। इस पर 40 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन फिर भी चेहरा अभी सही नहीं हुआ है। उसकी चार सर्जरी और होना हैं। ब्यूटी पार्लर से घर चला रही अमनप्रीत जब आइना देखती हैं तो रोने लगती हैं। वह कहती हैं,  ग्राहक का काम तो मैं कर देती हूं, लेकिन शीशा मेरे सामने आता है तो पुरानी यादें ताजा हो जाती है और दिल भर आता है...31 जनवरी 2011 की उस मनहूस शाम की याद आते ही अमनप्रीत कौर सिहर उठती है। उस दिन शाम सात बजे वह अपनी मां के साथ ब्यूटी पार्लर बंद कर रिक्शे पर घर लौट रही थीं, तभी पीछे से किसी ने उसका नाम लेकर आवाज दी। वह पलटकर देखती, उससे पहले ही मंकी कैप डाले बाइक सवारों ने उसके सिर पर तेजाब डाल दिया। इससे अमनप्रीत कौर के आंख, कान, नाक और चेहरा बुरी तरह झुलस गया। साथ बैठी मां का भी पेट के नीचे का हिस्सा तेजाब से जल गया। तेजाब उसके गले के अंदर तक चला गया, जिससे आवाज भी भरभरा गई। इस तरह दो मिनट के अंदर ही उनका सब कुछ उजड़ गया।  अमनप्रीत कहती है कि आरोपी तो फरार हो गए, लेकिन वहां खड़े लोगों ने उनकी सहायता नहीं की। वे तमाशबीन बने रहे। 15-20 मिनट बाद पुलिस और एंबुलेंस को सूचित किया तब लोग उन्हें सिविल  अस्पताल लेकर गए। हालत देख डाक्टरों ने उन्हें फरीदकोट रेफर किया, जहां से उन्हें पीजीआई रेफर कर दिया गया। पांच वर्ष पहले तेजाब हमले की इस घटना को याद कर ये मां बेटी आज भी दहशत में आ जाती है। इसके चलते रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया है।पुलिस तहकीकात में जब कॉल डिटेल निकाली गई तो पता चला कि तेजाब अमनप्रीत कौर पर बुरी नजर रखने वाले जीजा ने ही डाला है। पीड़िता की मां ने कहा कि आरोपी दलजिंदर सिंह के साथ उनकी बड़ी बेटी हरप्रीत कौर की शादी हुई थी, जिसके बाद उनका दामाद अपनी पत्नी की बहन अमनप्रीत कौर पर बुरी नजर रखने लगा। अमनप्रीत ने इसका विरोध किया तो उसने इस घटना को अंजाम दे डाला। अब आरोपी का उसकी बहन से तलाक का केस चल रहा है।वह तीन वर्ष तक जेल में भी रहा, फिर बरी हो गया। लोअर कोर्ट के फैसले को चैलेंज करते हुए उन्होंने अब हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। चंडीगढ़ के वकील एचसी अरोड़ा उनकी अंधेरी जिंदगी में रोशनी डालने के लिए उनके केस को निशुल्क लड़ रहे हैं। उन्होंने अपनी ओर से उनकी आर्थिक सहायता भी की है। अरोड़ा का कहना कि चाहे निचली अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया है, लेकिन वह मरते दम तक उसे सजा दिलाने के लिए यह केस लड़ेंगे। अमनप्रीत के पिता कीर्तन सिंह ने बताया कि अब तक उनकी बेटी की कुल 38 सर्जरी हो चुकी हैं, जिस पर 40 लाख रुपये के करीब खर्च आ चुका है। अभी चार सर्जरी बाकी हैं।
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उन्होंने बताया कि सरकार और प्रशासन ने उनको पांच वर्षों तक धोखे में रखा। घटना के बाद प्रशासन ने उनकी सहायता तो क्या करनी थी, उल्टा सहायता के नाम पर उनका मजाक उड़ाया जाता रहा। घटना के बाद वह अपनी बेटी और पत्नी को उपचार के लिए पीजीआई चंडीगढ़ ले गए थे, जहां पर किसी ने उनकी नहीं सुनी और तीन दिन तक वह शवों के साथ सोते रहे। उन्होंने बताया कि एक बेड पर शव रखा होता था और दूसरे बेड पर दोनों मां बेटी लेटती थीं, जबकि वे खुद बेड के साथ फर्श पर सोते थे । बेटी व पत्नी के उपचार के लिए उन्होंने उस समय की सरकार का कोई भी ऐसा मंत्री नहीं छोडा, जिससे मदद न मांगी हो। तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल से भी मिले, पर उन्होंने भी कोई मदद नहीं की। बठिंडा की सांसद हरसिमरत कौर से भी कई बार गुहार लगाई, मगर वह भी नहीं पसीजीं।पीड़िता की मां का कहना है कि घटना के बाद उनकी बेटी का नाक, कान, व चेहरा और सिर बुरी तरह झुलस गए थे। सर्जरी के बाद कुछ राहत तो है पर नाक व कान वैसे नहीं हैं। अभी तक उनकी बेटी के साथ कोई युवक शादी करने के लिए आगे नहीं आया है। अगर कोई दिलेर युवक शादी करने का आग्रह करेगा तो वह पीछे नही हटेंगी।युवती के पिता का कहना है कि हाल ही में कैप्टन सरकार ने तेजाब पीड़ितों के लिए आठ हजार रुपये महीना पेंशन देने का जो निर्णय लिया है, उससे पीड़ितों को थोडी राहत तो मिलेगी पर यह उसका स्थायी हल नहीं है। पीड़ित युवतियों के लिए अगर सरकार पक्की नौकरी देने का निर्णय लेती तो शायद वो ज्यादा बेहतर होता, जिससे अपने उपचार के साथ वे जिंदगी सही से गुजार पातीं। 
[ मिडनाइट एक्सप्रेस]

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