कभी कोई निर्भया निर्मम सामूहिक बर्बरता जब्र जिन्नाह, दोषियों की फांसी—सुप्रीम कोर्ट

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कभी कोई निर्भया निर्मम सामूहिक बर्बरता जब्र जिन्नाह, दोषियों की फांसी—सुप्रीम कोर्ट  

चंडीगढ़ / नईदिल्ली ; आरके विक्रमा शर्मा /सुमन वैदवान ;—– 16 दिसंबर 2012 का मनहूस वक़्त जब एक लड़की जो अपने सहपाठी के साथ एक बस में सफर कर रही थी ये न जानते हुए कि ये यात्रा उसके जीवन की ही नहीं बल्कि उसके आबरू की  आखिरी यात्रा है ! कानून की मंद गति और न्याय की गरिमा कानून के रक्षकों की निंदनीय भूमिका ने कुछेक बिगडैलों के पौरुषत्त्व के लावे को खौलाया और फिर उस बस में जुल्मों सितम की हदें टूटती गईं और कानून का भय प्रभाव सब कुछ उसी बस के टायरों तले चीखचीत्कार के बीच रौंदा गया ! हवस ने बस में नंगा तांडव नाचा और बहशीपन ने अपने तेवर खूब तरेरे ! बेचारी असहाय और निर्दोष लड़की गिड़गिड़ाती रही और वासना के और लोकतंत्र के हत्यारे भेड़िये नोच नोच कर उसकी देह की, इज्जत आबरू की बोटियाँ बोटियाँ करते हुए पुरे मानवीय तंत्र को दफना गए  थे ! वो सब कुकर्म भारत माता की सुता के साथ देश की राजधानी में हुआ ! इससे बड़ा देशवासियों और भारतीय नारी ही नहीं बल्कि समूची नारी जाति के लिए सदा सदा के लिए चुनौती बनकर न्याय पालिका से दुहाई देकर अपने निर्दोष देह व् दिल सहित दिमाग की सदृढ़ सुरक्षा का वचन  मांगना मजबूरी बन कर रह गया है ! वो वहशी दरिंदे इतना सब कैसे कर गए आखिर किसने उनका इतना मनोबल बढ़ाया ! क्या उस आमुक  प्रेरित और निडर करते तत्व से कानून निपट पायेगा इसका जवाब इस मुल्क में तो शायद ही मिले ! बेशर्मी और विडंबना तो देखो दिल्ली में हुए दिल दहलाने वाले काण्ड ने समूची इंसानियत पुलिस कानून व्यवस्था और इंसाफ को लगातार अबाध रूप से आज तक जारी है ! कितने ही दिल दहलाने वाले इन जघन्य अपराधों की गति न थमना कानून के रक्षकों की भूमिका पर भी कुठाराघात  करती है ! इक दामिनी /निर्भया की बलि से कोई जगा ऐसा दिखाई तो नहीं दिया ! सब यथावत चलता जा रहा है और हम अपनी मासूम बच्चियों व्  बहनों सहित माताओं की अस्मत की होलिका दहन देख रहे हैं ! आज कोई उस गैंगरेप कुकर्म और जालिम पने की हदों के हुड़दंगियों को लेकर फैसले को अंतिम रूप तक पहुंचने का बल दिया गया ! पर क्या फर्क पड़ेगा लोग तो दूर भुक्तभोगी भी भूल चुके हैं इस सब को ! दिलों दिमाग से ये सब “कानून की तीव्र”  गति ने मिटाने में अहम रोल अदा किया !  तो क्या अब देश की हर बच्ची से लेकर बूढी माँ तक सुरक्षित रहेगी इस फांसी के धीमी गति के निर्णय से ऐसीउम्मीद की अजय या फिर अगली बार मोमबत्तियां  के नाम से रोशन करने की बाट जोह ली जाये ! न्याय के दुर्ग सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च को सुनवाई के पश्चात उक्त मामले में अपना निर्णय सुरक्षित पेंडिंग रखा था !  5 मई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस माननीय दीपक मिश्रा ने अपना फैसला पढ़ते हुए चारों दोषियों की सजाए- मौत की सजा को यथावत रखा !! इस फैसले पर चंद लोगों को ख़ुशी हुई पर अधिकतर तो अभी भी लेटलतीफी को लेकर अपना रक्तचाप खूब प्रभावित कर रहे हैं ! कितने दोषी थे कितने बचे और कौन कौन बचाने वाले बचे रहेंगे, ये तो कोई दिलदार दमदार मर्द भी बता सकेगा !    16 दिस्मबर की घटना मानों न जाने किस जमाने की बात है ! सब कुछ तो धुंधला गया है फिर अनेकों आँखें तो पथरा चुकी हैं ! ये फांसी कितने जालिमों कुकर्मियों बहशियों को नकेल पायेगी ये तो बताना निर्भया की दर्दनाक मौत की माक़िफ़ असम्भव है ! 

“निर्भया केस: रिहाई से पहले जुवेनाइल बाल सुधार गृह से गुप्त स्थान पर किया गया शिफ्ट” ये लाइनें पढ़ने वाले पर आज भी बज्रपात होता है कि लोकतंत्र का कानून किस को क्यों और किसी निर्भया के लिए बचा रहा है ! जुर्म की इंतहा करने वाले को नाबालिग कहा जा रहा है जिसके दिमाग में जुल्म जब्र जिनाह बेख़ौफ़ [   ] कूट कूट कर भरा हुआ था उसकी पैरवी करने वाले क्या किसी जन्म में निर्भया का नाम अपनी जुबान से बोलने का हक रखेंगे ! क्या पापी की पैरवी ये बचानेवाला दोषी नहीं है जुर्म में बराबर का हकदार और जिम्मेवार सहित जवाबदेह नहीं है ! भगवान भी मजाक करता है ये सब गरीब व् लचर व्यवस्थाओं के ठगे समाज के साथ ही क्यों होता है ! इस केस से संबंधित घटनाक्रमों को पब्लिक पुलिस प्रेस और पीड़ित सब धुंधली यादों से मुक्त हो चुके हैं ! आज क्यों नहीं देश में ख़ुशी के मौके पर आतिशबाजी हुई और क्यों नहीं रौशनी की गई ! बस हो गए फर्जों से मुक्त सभी,ये मौका भी खूब भुनाओ मीडिया को बुला बुला कर कि हमने इस फैसले का स्वागत किया है ! और हम आश्वस्त हैं कि अब कोई बेटी बच्ची निर्भया नहीं बनकर अमर होगी ! 

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