चंडीगढ़: 12 दिसंबर:- अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क प्रस्तुति:—-*भगवान महावीर का जन्म ई.पू. 599 में हुआ। वह राजपुत्र थे और राजवंश में उनका लालन-पालन हुआ। 30 वर्ष की आयु में वह संसार से विरक्त हो गए और घोर तप के बाद उन्हें आत्म-बोध प्राप्त हुआ। स्वयं ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् उन्होंने आदेश देना आरंभ किया। महावीर के समक्ष विशाल भारतीय समाज की रूपरेखा थी! जिसे उन्होंने देखा-परखा था। उसमें उठने वाले वैमनस्यों, समाज के उपेक्षित वर्ग की चीत्कारों और उनकी असहाय दशा को निहारा। उन्होंने एक ओर सामाजिक न्याय के लिए सिंह गर्जना की तथा दूसरी ओर छोटी और अस्पृश्य मानी जाने वाली जातियों के लिए भी मुक्ति के द्वार खोल दिए। उन्होंने निर्भीक शब्दों में कहा कि मुक्ति अथवा आत्म कल्याण किसी जाति अथवा धर्म विशेष की बपौती नहीं*
महावीर के साधना मार्ग में जाति नहीं, संयम की प्रधानता है। सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने नई क्रांति पैदा की। उन्होंने हरिकेशी को अपने भिक्षु संघ में दीक्षित कर समस्त प्राणियों के लिए मुख्य द्वार खोल दिए और राजा दधिवाहन की पुत्री चंदन बाला को भी भिक्षुणी संघ की प्रमुख बनाकर नारी जाति का सम्मान किया। छोटी जाति के माने जाने वाले सहस्रों लोगों ने उनके संग में दीक्षा ग्रहण की और उन्हें पहली बार अनुभव हुआ कि वे भी आत्मकल्याण के मार्ग पर चल सकते हैं।
प्रभु महावीर का मार्ग सीधा था। उन्होंने कहा, सरल हृदय से मेरे पास आओ, मैं आपको मुक्ति मार्ग बताऊंगा, अपने आप को तुच्छ मत समझो, आत्मा में अनंत ज्ञान और अनंत शक्ति है, उसे प्रकट करो। बाह्य आडम्बरों और मिथ्याचारों से जीवन का निर्माण नहीं होगा।
धार्मिक क्षेत्र में भगवान महावीर ने यज्ञों में पशु बलि का विरोध किया। उन्होंने इसे धर्म मानने से इंकार कर दिया और कहा कि इससे देवता प्रसन्न नहीं होते अपितु यह हिंसा है।
इस प्रकार भगवान महावीर ने सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में क्रांति ला दी। आज उनकी देशनाओं और कार्यों को अपनाने की पहले की तुलना में कहीं अधिक आवश्यकता है।साभार:–दीवान हेमंत किंगर ( पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हरियाणा पंजाबी महासभा!!!!!!