चंडीगढ़ ; 21 सितम्बर ; आरके शर्मा विक्रमा /मोनिका शर्मा ;—–आज के भौतिक जीवन की शैली ही पूरी तरह से नाना प्रकार की विसंगतियों से ओतप्रोत है ऐसे में जीवन को जीने की कला पुरातन धर्म निधि से मिलेगी धर्मसंगत बनाएं और दीर्घायु जीवन जियें ये धर्म कर्म भव विचार उत्तराखंड के प्रख्यात और कथावाचक नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक जी महाराज ने श्रीमद भागवत पितृ मोक्ष कथा के अवसर पर आस्थावानों से सांझे किये ! गौरतलब कि स्वामी रसिक जी दीनहीन व् ब्राह्मण और कन्या सहित गऊ कल्याणार्थ तहदिल से समर्पित होकर कार्यरत हैं ! धर्म शास्त्रों के प्रखर ज्ञाता और वाणी के पुंज स्वामी जी ने दैहिक व् दिल और दिमाग की स्थिति और उनपर स्वभाववत नहीं अपितु कर्म और यथोचित मँगानुसार नियंत्रण ही जीवन यापन की सुधि कला है ! स्वामी जी ने कहा कि सच और ईमानदारी की रोटी थोड़ी मिलती पर उसमे सब्र का मीठा अंश रहता है! दिल में पवित्रता का भाव जीवन को सरल सरस् बनाता है ! तृष्णाओं और बलबती अभिलाषाओं को नियंत्रित करो ! धर्म और कर्म में समन्वय रखो ! कटु वचन से परहेज और सबको जी का आदर दें, फिर देखो जीवन सात्विकता से गुजरेगा ! महाराज जी छोटे छोटे गुणी नुक्ते और नुस्खे अपना कर जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं ! कथा कहीं भी कभी भी कोई भी करे उसका श्रवण जीवन को सकारात्मकता देता है ! प्रसाद प्राप्त करना और वितरित करना धर्मश्रेष्ठ उपलब्धि है ! स्वामी रसिक जी महाराज फरमाते हैं कि जब इंसान के हाथ और वश में जीना मरना नहीं है, फिर इनके बीच का जीवन काल और उपलब्धियां हमारे वश में या अधिकार में कैसे हो सकता ! बस ये जीवन का सार भागवत कथा आचरण और सद्व्यवहार से प्राप्त होता है ! धर्म ध्वजवाहक स्वामी रसिक जी फरमाते हैं कि भगवान सिर्फ उनकी परीक्षा लेते हैं, जो उनके स्मरण केंद्र में समाहित होते हैं ! हर किसी के बारे में किसी के भी पास सोचने तक की फुरसत नहीं होती वो फिर भला भगवान ही क्यों न हों ! भले जीवों का भगवान दुःख में और जटिल परीक्षा लेता जरूर है पर साथ तक कदापि नहीं छोड़ता ! और बुरे की झोली भरता रहता सुख देता रहता परन्तु कभी भी साथ नहीं देता है ! भक्त अपने भगवान की भक्ति मांगते और भगवान भक्त को क्षीण नहीं होने देते अपितु शक्ति प्रदान करते हैं ! आज इस अवसर पर हिन्द संग्राम परिषद के अनेकों सदस्य सपरिवार कथा श्रवण करने दूसरे शहरों से आये हुए थे !