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चंडीगढ़ 26.07.2025 आरके विक्रमा शर्मा हरीश शर्मा अश्विनी शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति—–भारतीय सेना में ऐसे-ऐसे वीर योद्धा हुए हैं, जिनका नाम सुनते ही सरहद पार की पाकिस्तानी फौज के जनरल—चाहे वे मौजूदा हों या रिटायर्ड—खौफ से कांप उठते हैं। आज बात कर रहे हैं भारतीय सेना के अमर शूरवीर मेजर मोहित शर्मा की, जिनकी बहादुरी और बलिदान की कहानी हर भारतीय के हृदय को गर्व से भर देती है। उनकी शौर्यगाथा ने न केवल आतंकियों के मंसूबों को मिट्टी में मिला दिया, बल्कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI तक को झकझोर कर रख दिया।13 जनवरी 1978 को जन्मे मेजर मोहित शर्मा, अपने 6 फुट 2 इंच लंबे और तेजस्वी व्यक्तित्व के साथ देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थे। 21 मार्च 2009 को कुपवाड़ा में आतंकियों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए। उस समय वे अपनी टीम की अगुवाई कर रहे थे। उनके शरीर पर गोलियों की बौछार हुई, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। चार आतंकियों को ढेर कर उन्होंने अपने दो साथियों की जान बचाई। उनका बलिदान भारत के सैन्य इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। मेजर मोहित सिर्फ एक जांबाज़ अफसर ही नहीं, गुप्त अभियानों के विशेषज्ञ भी थे। उन्होंने “इफ्तिखार भट्ट” नाम से आतंकियों के बीच घुसपैठ कर उन्हें चकमा दिया और उनकी साजिशों को नाकाम कर दिया। इतनी गहराई तक वे आतंकियों के बीच घुले-मिले थे कि किसी को भनक तक नहीं लगी कि उनके बीच एक भारतीय फौजी मौजूद है। 2001 में, एक सैन्य ऑपरेशन के दौरान मारे गए कश्मीरी युवक के भाई ने बदले की भावना से आतंकी संगठनों से संपर्क किया। उसी वक्त “इफ्तिखार भट्ट” के नाम से मेजर मोहित ने हिजबुल के कमांडरों तेरारा और सबजार का विश्वास जीतकर उनकी साजिशों की जानकारी सेना तक पहुंचाई। जब आतंकियों ने सेना की टुकड़ी पर हमला करने की योजना बनाई, उससे पहले ही मेजर मोहित शर्मा ने रणनीतिक ढंग से उस खतरे का सफाया कर दिया। उनकी सूझबूझ और वीरता ने न केवल आतंकियों की कमर तोड़ी, बल्कि भारत की सुरक्षा को और भी मजबूत किया। मेजर मोहित शर्मा की गाथा साहस, रणनीति और सर्वोच्च देशभक्ति की मिसाल है। उनका बलिदान हमें सिखाता है कि देश के लिए जीना और मरना ही सच्चा धर्म है। उनकी वीरता हर भारतीय के दिल में अमर है और उनका जीवन हर युवा को यह प्रेरणा देता है कि देशसेवा से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं होता। 🇮🇳🫡

