जीवन के समर और सफर की सफलता हेतु ये अति लाभप्रद उपाय विचार मंथन अल्फा न्यूज़ इंडिया के माध्यम से तमाम मानव समाज के कल्याण हेतु लुधियाना से अजय पाहवा की प्रस्तुति
प्रिय पाठकों/मित्रों, ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की मुहूर्त वह विचार है जिसके माध्यम से हम जीवन में होने वाले शुभ और मांगलिक कार्यों के शुभारंभ के लिए समय और तिथि का निर्धारण करते हैं। अगर सरल शब्दों में परिभाषित करें तो किसी अच्छे समय का चयन कर किसी कार्य का शुभारंभ ही मुहूर्त कहलाता है। हिंदू वैदिक ज्योतिष विज्ञान के अनुसार हर शुभ और मंगल कार्य को आरंभ करने का एक निश्चित वक्त होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस खास समय में ग्रह और नक्षत्र के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में जन्म, विवाह, गृह प्रवेश समेत कई शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत मुहूर्त देखकर की जाती है।ज्योतिष शास्त्र काल शास्त्र है । शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया गया कार्य निर्विघ्न रूप से शीघ्र ही सम्पन्न होता है । उसमें किसी प्रकार का कोई विघ्न नहीं पड़ता है ।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की मुहूर्त को लेकर किए गए कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि, ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति की गणना करके ही मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में मुहूर्त को महत्व दिया जाता रहा है। इसके अलावा हर महत्वपूर्ण और शुभ कार्य के दौरान यज्ञ और हवन करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि यज्ञ व हवन से उठने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मुहूर्त और उससे जुड़ी पौराणिक मान्यताओं के चलते हिंदू धर्म में आज भी इसका महत्व बरकरार है। हमारे समाज में लोग आज भी मांगलिक कार्यों का शुभारंभ और सफलतापूर्वक संपन्न होने की कामना के लिए शुभ घड़ी का इंतज़ार करते हैं।मुहूर्त की महत्वता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि, प्राचीन काल में स्वयं राजा, महाराजा शुभ मुहूर्त के अनुसार सभी समारोह का आयोजन किया करते थे। आज के आधुनिक युग में धार्मिक आस्था और मान्यताओं की उपेक्षा होने लगी है। यही वजह है कि मुहूर्त को लेकर हर व्यक्ति की अपनी एक सोच है। हालांकि वक्त के साथ-साथ समाज कितना भी बदल जाए लेकिन हमें हमारी संस्कृति, पुरातन और धार्मिक मान्यताओं को हर हाल में संरक्षित रखना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की मुहूर्त को लेकर अलग-अलग तर्क और धारणाओं के बीच, हमें चाहिए कि हम स्वयं जीवन में इसकी प्रासंगिकता और महत्व का अवलोकन करें। मुहूर्त की आवश्यकता क्यों होती है ? दरअसल मुहूर्त एक विचार है, जो इस धारणा का प्रतीक है कि एक तय समय और तिथि पर शुरू होने वाला कार्य शुभ व मंगलकारी होगा और जीवन में खुशहाली लेकर आएगा। ब्रह्मांड में होने वाली खगोलीय घटनाओं का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि विभिन्न ग्रहों की चाल के फलस्वरूप जीवन में परिवर्तन आते हैं। ये बदलाव हमें अच्छे और बुरे समय का आभास कराते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम वार, तिथि और नक्षत्र आदि की गणना करके कोई कार्य आरंभ करें, जो शुभ फल देने वाला साबित हो।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की शुभ मुहूर्त किसी भी मांगलिक कार्य को शुरू करने का वह शुभ समय होता है जिसमें तमाम ग्रह और नक्षत्र उत्तम परिणाम देने वाले होते हैं। हमारे जीवन में कई शुभ और मांगलिक अवसर आते हैं। इन अवसरों पर हमारी कोशिश रहती है कि ये अवसर और भी भव्य व बिना किसी रुकावट के शांतिपूर्वक संपन्न हों। ऐसे में हम इन कार्यों की शुरुआत से पूर्व शुभ मुहूर्त के लिए ज्योतिषी की सलाह लेते हैं। लेकिन विवाह ,मुंडन और गृह प्रवेश समेत जैसे खास समारोह पर मुहूर्त का महत्व और भी बढ़ जाता है। विवाह जीवन भर साथ निभाने का एक अहम बंधन है इसलिए इस अवसर को शुभ बनाने के लिए हर परिवार शुभ घड़ी का इंतज़ार करता है ताकि उनके बच्चों के जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहे। इसके अलावा कई अवसर जैसे गृह प्रवेश, प्रॉपर्टी और वाहन खरीदी जैसे कई कामों में भी शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा है।
हिंदू वैदिक ज्योतिष में पंचांग का बड़ा महत्व होता है। क्योंकि पंचांग की मदद से ही मुहूर्त की गणना की जाती है। पंचांग के 5 अंग; वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण की गणना के आधार पर मुहूर्त निकाला जाता है। इनमें तिथियों को पांच भागों में बांटा गया है। नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता, और पूर्णा तिथि है। उसी प्रकार पक्ष भी दो भागों में विभक्त है; शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। वहीं नक्षत्र 27 प्रकार के होते हैं। एक दिन में 30 मुहूर्त होते हैं। इनमें सबसे पहले मुहूर्त का नाम रुद्र है जो प्रात:काल 6 बजे से शुरू होता है। इसके बाद क्रमश: हर 48 मिनट के अतंराल पर आहि, मित्र, पितृ, वसु, वराह, विश्वेदवा, विधि आदि होते हैं। इसके अलावा चंद्रमा और सूर्य के निरायण और अक्षांश को 27 भागों में बांटकर योग की गणना की जाती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की इसके अलावा शुभ मुहूर्त जानने के लिए निम्न कारक भी अहम होते हैं। ग्रहों की चाल और उनकी स्थिति। पंचांग के जरिए उक्त दिन में चंद्रमा के संचरण की स्थिति को सुनिश्चित करना। शुभ नक्षत्र को ध्यान में रखना। विभिन्न समारोह और आयोजनों के लिए मुहूर्त अलग-अलग होते हैं। इन सभी कारकों की गणना के बाद शुभ मुहूर्त निकाला जाता है ताकि घर परिवार में होने वाले समस्त कार्य शुभ और मंगलकारी हो।
जानिए कुछ विशेष मुहूर्त को—
सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, गुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग—
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की शुभ मुहूर्तों में स्वर्ण आभूषण, कीमती वस्त्र आदि खरीदना, पहनना, वाहन खरीदना, यात्रा आरम्भ करना, मुकद्दमा दायर करना, ग्रह शान्त्यर्थ रत्न धारण करना, किसी परीक्षा प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भरना आदि शुभ मुहूर्त जानने के किए अब आपको पूछने के लिए किसी ज्योतिषी के पास बार-बार जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, गुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग वारों का विषेश नक्षत्रों से सम्पर्क होने से ये योग बनते हैं । जैसे कि इन योगों के नामों से स्पष्ट है, इन योगों के समय में कोई भी शु्भ कार्य आरम्भ किया जाय तो वह निर्विघ्न रूप से पूर्ण होगा ऐसा हमारे पूर्वाचार्यों ने कहा है ।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की यात्रा, गृह प्रवेश, नूतन कार्यारम्भ आदि सभी कार्यों के लिए या अन्य किसी अपरिहार्य कारणवश यदि व्यतिपात, वैधृति, गुरु-शुक्रास्त, अधिक मास एवं वेध आदि का विचार सम्भव न हो तो सर्वार्थसिद्धि आदि योगों का आश्रय लेना चाहिये ।
अमृतसिद्धि योग—
अमृतसिद्धि योग रवि को हस्त, सोम को मृगशिर, मंगल को अश्विनी, बुध को अनुराधा, गुरु को पुष्य नक्षत्र का सम्बन्ध होने पर रविपुष्यामृत-गुरुपुष्यामृत नामक योग बन जाता है जो कि अत्यन्त शुभ माना गया है ।
रवियोग योग—-
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की रवियोग भी इन्हीं योगों की भाँति सभी कार्यों के लिए हैं . शास्त्रों में कथन है कि जिस तरह हिमालय का हिम सूर्य के उगले पर गल जाता है और सैकड़ों हाथियों के समूहों को अकेला सिंह भगा देता है उसी तरह से रवियोग भी सभी अशुभ योगों को भगा देता है, अर्थात् इस योग में सभी कार्य निर्विघन रूप से पूर्ण होंगे ।
त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग—
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग विषेश बहुमूल्य वस्तुओं की खरीददारी करने के लिए हैं . इन योगों में खरीदी गई वस्तु नाम अनुसार भविष्य में दिगुनी व तिगुनी हो जाती है । अतः इन योगों में बहुमूल्य वस्तु खरीदनी चाहिये । इन योगों के रहते कोई वस्तु बेचनी नहीं चाहिये क्योंकि भविष्य में वस्तु दुगुनी या तिगुनी बेचनी पड़ सकती है । धन या अन्य सम्पत्ति के संचय के लिए ये योग अद्वितीय माने गए हैं । इन योगों के रहते कोई वस्तु गुम हो जाये तो भविष्य में दुगुना या तिगुना नुकसान हो सकता है, अतः इस दिन सावधान रहना चाहिए । इस दिन मुकद्दमा दायर नहीं करना चाहिए और दवा भी नहीं खरीदनी चाहिए ।