चंडीगढ़:8 जनवरी:- अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क प्रस्तुति:–ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
बड़े कार्यों के लिए बड़ी तैयारी करनी पड़ती है और बड़े साधन जुटाने पड़ते हैं। विवाहों में अपव्यय की कुरीति काफी व्यापक है, उसकी जड़ें काफी गहराई तक घुसी हुई हैं।उन्हें उखाड़ने में काफी खोद-बीन और उखाड़-पछाड़ करनी पड़ेगी। लोग आसानी से उस पुरानी रूढ़ि को छोड़ने का साहस न कर सकेंगे। औचित्य को स्वीकार करते हुए भी सामाजिक दबाव,घर वालों और रिश्तेदारों का विरोध, कंजूस या मूर्ख कहलाने का उपहास आदि अनेकों बाधाएं सामने रहेंगी। फिर उपयुक्त लड़की लड़के खोज निकालना और उनके अभिभावकों का वैसा ही विवेकशील एवं साहसी होना भी तो सरल कार्य नहीं है। इन अड़चनों को पार करने के लिए बहुमुखी योजना बनानी पड़ेगी और उसकी पूरी तैयारी करनी पड़ेगी। उथले कार्यक्रमों से काम न चलेगा। सामाजिक क्रान्ति की दिशा में यह एक अत्यन्त ही व्यापक एवं महत्वपूर्ण कदम है। यह मोर्चा फतह हो गया तो अन्य रूढ़ियों का शमन-शोधन सर्वथा सरल हो जायगा। जिस कुरीति से सारा समाज दुखी है और जिसका नाश हर विचारशील व्यक्ति चाहता है उसके लिए आवश्यक वातावरण तो तैयार है पर उखाड़ फेंकने की क्रिया फिर भी काफी कष्ट-साध्य रहेगी। इस कठिन कार्य को करने के लिए उन व्यक्तियों की आवश्यकता है जिनमें शौर्य, साहस, तप, त्याग, लगन और उत्साह की समुचित मात्रा विद्यमान हो। ऐसे लोग आज कमजोर जरूर हैं पर उनका सर्वथा अभाव नहीं है। उपयुक्त सैनिकों की ही इस मोर्चे पर अड़ने के लिये सबसे प्रथम आवश्यकता पड़ेगी। प्रयत्न यह करना होगा कि जिनमें साहस हो वे मानवता की इस पुकार की पूर्ति करने के लिये बढ़ कर आगे आवें। हिन्दू-समाज पर लगे हुए इस भारी कलंक को अपने रक्त से धोने की हिम्मत कर सकें।प्रगतिशील जातीय सभाओं का संगठन इन्हीं उत्साही और साहसी, प्रतिभाशाली, लोक-सेवकों के कंधों पर खड़ा किया जा सकेगा। नाम के भूखे,आलसी बातूनी और लम्बे चौड़े सपने देखने वाले ऐसे अनेक व्यक्ति पाये जाते हैं जो घर बैठे ही तीनों लोकों के सुधारने की कल्पना करते और मन-मोदक खाते रहते हैं।ऐसे लोगों की सद्भावना एवं समर्थन मिले तो उसका भी कुछ उपयोग ही है पर उनसे वह प्रयोजन पूरा नहीं हो सकता जो समाज की गति-विधियों को लौट पलट कर डालने जैसे महान कार्य को सम्पन्न करने के लिये आवश्यक हैं।
पं श्री राम शर्मा आचार्य….. धर्म-कर्म समाज सुधारक।