कात्यायनी -आराधना से शत्रु विनाश,शुभकर फल प्राप्प्ति
चंडीगढ़ ; 23 मार्च ; आरके शर्मा विक्रमा/मोनिका शर्मा ;—-चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसम्वत 2075 वर्ष के श्रीगणेश सहित नवरात्रे माता दुर्गे के नवस्वरूपों की आराधना और सिद्धि वरदात्री पूजाओं का पर्व है ! इसे आदि शक्ति माँ की असीम शक्तियों का माहायोजन पर्व भी कहा जाता है !
माता के नौ स्वरूपों में माँ शैलपुत्री/माँ ब्रह्मचारिणी /माँ चंद्रघंटा /माँ कुष्मुण्डा /माँ स्कंदमाता/माँ कात्यानी /माँ कालरात्रि/महागौरी/माँ सिद्धिदात्री की पूजा समूचे राष्ट्र सहित विश्व के अनेकों मूलखों में बड़ी आस्था श्रद्धा के साथ की जाती है ! माँ कालरात्रि से पूर्व माँ कात्यायनी की महिमा बड़ी विचित्र और अपरम्पार है ! माँ शत्रुक्षयकारी है ! माँ चंडी रूप में विंध्वंसनी और माँ के स्वरूप में वत्स स्नेही हैं ! माँ कात्यायनी माँ दुर्गे जी का छठा स्वरूप है ! माँ कात्यायनी जी की पूजा व्रत और आराधना अगर कोई भी कुँआरी युवती करेगी तो माँ जल्दी ही उसको मनवांछित वर देती है ! माँ कात्यायनी जी की रोग व्याधि और भय वृति का विनाश व् नाना प्रकार के विकारों रुकावटों का नाश होता है ! धर्म शास्त्रों के मुताबिक महिषासुर राक्षस का वध करने के कारण महिषासुर मर्दनी जाता है ! माँ कात्यायनी जी का कात्यायन ऋषि घर में जन्म होने के कारण माँ को माँ कात्यायनी जी के नाम से भी स्मरण किया जाता है ! माँ दुर्गा जी ने ऋषिवर की भक्ति से खुश होकर उनके घर जन्म लेने का आशीर्वाद और वचन किया था जिसको माँ ने निभाया ! माँ का ध्यान जाप मंत्र जो साधकों को अति दुर्लभता से सिद्ध होकर सहज सरल सरस् प्रभाव देता है ये;
“चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥”
मोक्षदायी व् चिंतारहित शारीरिक पीड़ा वेदना हरण दैवीय बीज मंत्र है !
“चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥”
मोक्षदायी व् चिंतारहित शारीरिक पीड़ा वेदना हरण दैवीय बीज मंत्र है !