चंडीगढ़: 19 दिसंबर:-आर के विक्रमा शर्मा/ एनके धीमान:—🔥 मौजूदा सरकारी तंत्र की खोखली जड़ों और भ्रष्ट अशिष्ट और अनुशासन विहीन सिस्टम का सीना उधेड़ने में जोशीलापन रखते कविवर नवीन नीर अपनी समाज को और सरकारी तंत्र को एक नई दिशा देने वाली कविताओं से दशा बदलने का क्रम सराहनीय है।। आजकल नीर की ताजा तारीन इक कविता खूब वाहवाही बटोर रही है।। और बुद्धिजीवियों के बुद्धि कोष को बार-बार गहरे चिंतन की ओर झकझोर रही है।।
धड़कते दिल को भी बेज़ार समझा जाएगा
हमें सलीके से कब यार समझा जाएगा
बताओ कौन करेगा दिमागों को रौशन
जो मेरे जैसों को बेकार समझा जाएगा
किनारे तोड़ के आती हुई नदी है वो
ग़लत है उसको जो इक धार समझा जाएगा
है जिसके पास वही खोखली बड़ी बातें
उसी के लहजे को दमदार समझा जाएगा
यही है वक़्त चलाओ फरेब के सिक्के
इसे तरक्की का मेयार समझा जाएगा
उन्हें तो आग लगानी है, घर जलाने है
उन्हें न इसका ज़िम्मेदार समझा जाएगा।।