प्रवासियों का पलायन प्रशासन की बेपरवाही पर मोहर

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चंडीगढ़:– 29 मार्च:- आरके शर्मा विक्रमा/अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क :– कोरोनावायरस महामारी और फिर स्वाइन फ्लू और उसके बाद उत्तर पूर्वी प्रांतों में बर्ड फ्लू की खबरों ने प्रवासी भारतीयों का दिल दहला दिया है। इन सबके चलते ही चंडीगढ़ में 21 दिन का कर्फ्यू के चलते भूख ने इन प्रवासियों की जो महज दिहाड़ीदार हैं या घरों में दुकानों में 5 हजार लेकर 10हजार रुपयों तक की नौकरियां करते हैं की कमर ही तोड़ कर रख दी है। ऊपर से प्रशासन के दावे और वादे इन के लिए अखबारों की सुर्खियों की न सूखने वाली स्याही मात्र बनकर रह गए हैं।। हालांकि प्रशासन अपने स्तर पर और समाज सेवी संस्थाएं खास करके गुरुद्वारा साहबों से तीन टाइम की रोटी इन बस्तियों में कालोनियों में झोपड़ पट्टियों में अबाध रूप से पहुंचाई जा रही हैं। फिर भी सैकड़ों पेट हैं जो भूख से अकुला रहे हैं। अपनी आंखों के सामने अपने बच्चों की भूख से तड़प इनको कर्फ्यू में भी बांधे रखने के मंसूबों पर पानी फेर गई। प्रशासन के दावे कि हर भूखे को रोटी मिल रही है। तो यक्ष प्रश्न है कि फिर पलायन इन प्रवासियों की किस  बेबसी का सबब है। इस प्रश्न के आगे प्रशासन निरुत्तर है ।सरकार अपने नागरिकों के लिए जो कर रही है वह काबिले तारीफ है। लेकिन इनके लिए यह फरवरी की 31 तारीख है।। आज भी जीवन बसर के लिए चंद  बुनियादी कपड़े बर्तन समेट कर यह दिहाड़ीदार प्रवासी जो शहर की तरक्की में मील का पत्थर हैं खाली पेट और हाथ बेबसी में दूर सुदूर उत्तर प्रदेश बिहार उड़ीसा और पश्चिम बंगाल मध्य प्रदेश राजस्थान आदि की सम्मत बढ़ चले हैं। भले ही रेलगाड़ियां, बसें सब बंद हैं। रेल मार्ग और सड़कें सुनसान होकर कर्फ्यू की दहशत की गिरफ्त में है। अनेकों पलायन कर रहे प्रवासी दिहाड़ीदारों के दिल यही कह रहे हैं कि है कोई जो हमारे बढ़ते कदमों को रुकने के लिए आवाज तो  लगा दे।।।

ट्राइसिटी को छोड़कर अपने अपने प्रांतों की सम्मत परिवारों समेत यह काफिले कारवां एक यक्ष प्रश्न स्थानीय सांसदों और विधायकों के मुंह पर तमाचे के रूप में छोड़कर जा रहे हैं आज इनके लिए किसी के हाथ जुड़ने तो दूर की बात, इनको बाय-बाय कहने के लिए भी नहीं उठ रहे हैं।।

किस्मत का खेला तो  देखो, जहां लोगों को कर्फ्यू में अपनी छत के नीचे अपने ऐशो आराम वाले घरों में रहना दुश्वार होकर गुजर रहा है वहीं यह लोग चल पड़े हैं बेदिली से, लड़खड़ाते कदमों से सैकड़ों मील दूर अपने प्रांतों में अपने गांवों में लौटने के लिए, जहां इन के घर परिवार इनकी बाट  जिस भी हाल में जोह रहे होंगे, सर माथे पर होंगे।।

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