चंडीगढ़ : 25 अगस्त : अल्फा न्यूज इंडिया प्रस्तुति— शायद बहुत से लोगो को सावरकर जी का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर भी पता न हो,
1857 में इस देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ था, सभी को पता है इस संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई समेत कई वीरो/वीरांगनाओ ने अपने प्राणों की आहुति दी थी, लेकिन क्या कोई ये जानता है, उस दौर के इतिहासकारो में देश के उस गौरवशाली प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को कोई स्वतंत्रता संग्राम मानने को तैयार नहीं होता था, और तो और एक वामपंथी इतिहासकार रमेशचंद्र मजूमदार ने अपने वर्णन में लिखा था,
“राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम न तो प्रथम था, न तो राष्ट्रीय था और न ही स्वतंत्रता संग्राम था”
तब विनायक दामोदर सावरकर ने
“इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस- 1857” नाम की किताब लिखी, और पूरे विश्व के सामने उस संग्राम के तथ्यों को लेकर आये, उनका वर्णन किया और 1857 के विद्रोह को देश का प्रथम स्वाधीनता संग्राम घोषित किया, दुनिया के बाकि देशो के सामने इस संग्राम को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पहला विद्रोह साबित किया,
सावरकर जी की किताब से ब्रिटिश साम्राज्य की छवि विश्व भर में मिट्टी पलीत हुयी और यह किताब इतनी चर्चित हुयी थी की इसका छपना मुश्किल होने लगा था, फिर इसे हॉलैंड में छपवाया गया,
इस से उन अमर शहीदों को वो सम्मान मिला जिसके वो हक़दार थे,
सावरकर जी ऐसे पहले स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई, और जब उस से भी मन नहीं भरा तो उन्हें अंडमान की सेलुलर जेल में काला पानी की सजा दे दी,
वहां भी सावरकर जी ने जेल की दीवारो पर कोयले से हज़ारो कविताये लिख दी,
दो आजन्म कारावास की सजा सुनाए जाने पर सावरकर ने कहा था चलो ये अंग्रेज सनातन के पुनर्जन्म के सिद्धांत को तो मानते हैं, राजनैतिक बंदियों को जहां जेल में सारी सुविधाएं दी जाती थी, वहां सावरकर को लिखने के लिए पेन और नोट पैड नही दिया गया!!
इन सब के बीच विचारणीय प्रश्न ये है कि,
कौन थे वो लोग जिन्होंने इस देश के पाठ्यक्रमों से ऐसे महानायकों का नाम हटा दिया जिस से एक पूरी पीढ़ी इन महानायकों और देश के प्रति इनके योगदान से अनभिज्ञ रह गयी,
सूर्य की चमक को बादल कुछ देर के लिए ढँक जरूर सकता है लेकिन ऐसा अँधेरा ज्यादा देर कायम नहीं रहता,
सावरकर जी ने कहा था, जिस दिन हिंदुओ का वोट बैंक बनेगा उस दिन नेता कोट के ऊपर जनेऊ पहन कर तुम्हारे दरवाजे पर वोट मांगने आएगा,
आखिरकार इंदिरा गांधी को ही सावरकर जी के नाम पर डाक टिकट जारी करना पड़ा!!
और आज उनका पोता दत्तात्रेय गोत्र का जनेऊधारी ब्राम्हण बना जगह जगह पाया जा रहा है!!
सावरकर ने हिन्दू स्वाभिमान जगाने के उद्देश्य से हिन्दू महासभा और अभिनव भारत संस्थाओं का गठन किया,
उन वीर सावरकर की प्रतिमा पर दिल्ली यूनिवर्सिटी में कांग्रेस के छात्र संगठन ने कालिख पोत कर जूते की माला पहना दी!!
कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृव इस विषय पर अपना स्टैंड क्लियर करके माफी मांगे, अन्यथा हिंदुओ का विरोध झेलने तैयार रहे!!
वन्देमातरम !