चंडीगढ़ : 19 अगस्त : अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क :—*आज नथुराम गोडसे कविता मिली देखना ना भूले सच कया था*
*वर्षों बाद किसी एक कवि ने दबे सच को फिर से उजागर करने की कोशिश की है !*
*आप सभी साहित्य प्रेमी पाठकों के लिए कवि की मूल कविता नीचे विस्तार से लिखी गयी है !*
*ये कविता आज सुबह से सोशल मीडिया पर भारी संख्या में share की जा रही हैं !*
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*माना गांधी ने कष्ट सहे थे ,*
*अपनी पूरी निष्ठा से ।*
*और भारत प्रख्यात हुआ है,*
*उनकी अमर प्रतिष्ठा से ॥*
*किन्तु अहिंसा सत्य कभी,*
*अपनों पर ही ठन जाता है ।*
*घी और शहद अमृत हैं पर ,*
*मिलकर के विष बन जाता है।*
*अपने सारे निर्णय हम पर,*
*थोप रहे थे गांधी जी।*
*तुष्टिकरण के खूनी खंजर,*
*घोंप रहे थे गांधी जी ॥*
*महाक्रांति का हर नायक तो,*
*उनके लिए खिलौना था ।*
*उनके हठ के आगे,*
*जम्बूदीप भी बौना था ॥*
*इसीलिये भारत अखण्ड,*
*अखण्ड भारत का दौर गया ।*
*भारत से पंजाब, सिंध,*
*रावलपिंडी,लाहौर गया ॥*
*तब जाकर के सफल हुए,*
*जालिम जिन्ना के मंसूबे।*
*गांधी जी अपनी जिद में ,*
*पूरे भारत को ले डूबे॥*
*भारत के इतिहासकार,*
*थे चाटुकार दरबारों में ।*
*अपना सब कुछ बेच चुके थे,*
*नेहरू के परिवारों में ॥*
*भारत का सच लिख पाना,*
*था उनके बस की बात नहीं ।*
*वैसे भी सूरज को लिख पाना,*
*जुगनू की औकात नहीं ॥*
*आजादी का श्रेय नहीं है,*
*गांधी के आंदोलन को ।*
*इन यज्ञों का हव्य बनाया,*
*शेखर ने पिस्टल गन को ॥*
*जो जिन्ना जैसे राक्षस से,*
*मिलने जुलने जाते थे ।*
*जिनके कपड़े लन्दन, पेरिस,*
*दुबई में धुलने जाते थे ॥*
*कायरता का नशा दिया है,*
*गांधी के पैमाने ने ।*
*भारत को बर्बाद किया,*
*नेहरू के राजघराने ने ॥*
*हिन्दू अरमानों की जलती,*
*एक चिता थे गांधी जी ।*
*कौरव का साथ निभाने वाले,*
*भीष्म पिता थे गांधी जी ॥*
*अपनी शर्तों पर आयरविन तक,*
*को भी झुकवा सकते थे ।*
*भगत सिंह की फांसी को,*
*दो पल में रुकवा सकते थे ।।*
*मन्दिर में पढ़कर कुरान,*
*वो विश्व विजेता बने रहे ।*
*ऐसा करके मुस्लिम जन,*
*मानस के नेता बने रहे ॥*
*एक नवल गौरव गढ़ने की,*
*हिम्मत तो करते बापू ।*
*मस्जिद में गीता पढ़ने की,*
*हिम्मत तो करते बापू ॥*
*रेलों में, हिन्दू काट-काट कर,*
*भेज रहे थे पाकिस्तानी ।*
*टोपी के लिए दुखी थे वे,*
*पर चोटी की एक नहीं मानी ॥*
*मानों फूलों के प्रति ममता,*
*खतम हो गई माली में ।*
*गांधी जी दंगों में बैठे थे,*
*छिपकर नोवाखाली में ॥*
*तीन दिवस में श्री राम का,*
*धीरज संयम टूट गया ।*
*सौवीं गाली सुन, कान्हा का*
*चक्र हाथ से छूट गया ॥*
*गांधी जी की पाक, परस्ती पर*
*जब भारत लाचार हुआ ।*
*तब जाकर नथू,*
*बापू वध को मज़बूर हुआ ॥*
*गये सभा में गांधी जी,*
*करने अंतिम प्रणाम ।*
*ऐसी गोली मारी गांधी को,*
*याद आ गए श्री राम ॥*
*मूक अहिंसा के कारण ही*
*भारत का आँचल फट जाता ।*
*गांधी जीवित होते तो*
*फिर देश, दुबारा बंट जाता ॥*
*थक गए हैं हम प्रखर सत्य की*
*अर्थी को ढोते ढोते ।*
*कितना अच्छा होता जो*
*”नेताजी” राष्ट्रपिता होते ॥*
*नथू को फाँसी लटकाकर*
*गांधी जो को न्याय मिला ।*
*और मेरी भारत माँ को*
*बंटवारे का अध्याय मिला ॥*
*लेकिन जब भी कोई भीष्म*
*कौरव का साथ निभाएगा ।*
*तब तब कोई अर्जुन रण में*
*उन पर तीर चलाएगा ॥*
*अगर गोडसे की गोली*
*उतरी ना होती सीने में ।*
*तो हर हिन्दू पढ़ता नमाज ,*
*फिर मक्का और मदीने में ॥*
*भारत की बिखरी भूमि*
*अब तलक समाहित नहीं हुई ।*
*नथू की रखी अस्थि*
*अब तलक प्रवाहित नहीं हुई ॥*
*इससे पहले अस्थिकलश को*
*सिंधु सागर की लहरें सींचे ।*
*पूरा पाक समाहित कर लो*
*इस भगवा झंडे के नीचें ॥*
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