चंडीगढ़ : 10 जून : अल्फा न्यूज इंडिया : एक बार खुद कथा में आकर देखो तभी तो जान पाओगे की कथा में रखा क्या हैं। यदि किसी व्यक्ति को तैरना सीखना हैं तो पानी में जाना पड़ेगा। उसी तरह से आनंद चाहिए तो कथा में आओ,ज़माने में क्या रखा हैं।
* भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥
बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा। श्रवन सुखद अरु मन अभिरामा॥
भावार्थ:-जो संसार रूपी सागर का पार पाना चाहता है, उसके लिए तो श्री रामजी की कथा दृढ़ नौका के समान है। श्री हरि के गुणसमूह तो विषयी लोगों के लिए भी कानों को सुख देने वाले और मन को आनंद देने वाले हैं॥
जो लोग इस संसार रूपी भवसागर से पार पाना चाहते हैं उसके लिए सिर्फ राम नाम की नौका काफी हैं। बस एक बार आप भगवान के नाम पर विश्वास करके बैठ जाइये। भगवान श्री राम आपका खुद ही बेडा पार कर देंगे। और जो लोग संसार के विषयों को और सुखों को ढूंढने में लगे हैं भगवान के गुण तो उन लोगो को भी आनंद प्रदान करते हैं।
ऐसा कौन होगा जिसे भगवान की कथा अच्छी नही लगती होगी और उसमे से भी विशेषकर श्री रामजी
की कथा।
तुलसीदास जी बहुत सुंदर लिखते हैं-
* श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं॥
ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती॥
भावार्थ:-जगत् में कान वाला ऐसा कौन है, जिसे श्री रघुनाथजी के चरित्र न सुहाते हों। जिन्हें श्री रघुनाथजी की कथा नहीं सुहाती, वे मूर्ख जीव तो अपनी आत्मा की हत्या करने वाले हैं॥
आपने देखा होगा कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं, कुछ बुरे लोग दूसरो की हत्या भी कर देते हैं। लेकिन ये सब शरीर की हत्या करते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं अरे मूर्ख जीव, तूने तो अपनी आत्मा की ही हत्या कर डाली की भगवान का चरित्र ना तूने सुना और ना तुझे सुहाया। इसलिए राम जी की कथा जरूर सुनिए।
तुलसीदास जी कहते हैं की राम कथा तो चन्द्रमा की किरणों के समान शीतलता प्रदान करने वाली हैं। किसी ने कहा की राम कथा को चन्द्रमा के समान क्यों नही कहा?
क्योंकि चन्द्रमा की किरणे सबको शीतलता प्रदान करती हैं। और जब चन्द्रमा की किरणे धरती पर पड़ती हैं तो सब जगह समान रूप से जाती हैं। वह ये नही देखती की ये गरीब की कुटिया हैं या आमिर की कुटिया। इसी तरह से राम कथा भी सबके लिए हैं और सबको शीतलता प्रदान करती हैं।
श्री रामजी की कथा चंद्रमा की किरणों के समान है, जिसे संत रूपी चकोर सदा पान करते हैं। और इस कथा को चकोर रूपी संत हमेशा पीते रहते हैं।
किसी ने कहा की कितनी बार सुनें? कितनी बार इस कथा रस का पान करें? तो संत जन बड़ा सुन्दर बताते हैं की जब तक जियो तब तक पियो।
सत्संग के बिना हरि की कथा सुनने को नहीं मिलती, उसके बिना मोह नहीं भागता और मोह के गए बिना श्री रामचंद्रजी के चरणों में दृढ़ (अचल) प्रेम नहीं होता।
यदि श्री रामजी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो।
भगवान की कथा दैहिक, दैविक और भौतिक तीनो ताप को मिटा देती है। श्रीमद भागवत कथा के अंतर्गत आया है की एक बार देवता कथा सुनने के बदले ऋषियों के पास अमृत लेकर पहुंचे थे। तब उन संतो ने कहा का कहाँ मेरी मणि रूपी कथा और कहाँ तुम्हारा कांच रूपी अमृत।
राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ॥1॥
भावार्थ:-श्री रामजी के चरित्र सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं (बस कर देते हैं), उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं। जो जीवन्मुक्त महामुनि हैं, वे भी भगवान् के गुण निरंतर सुनते रहते हैं॥
कहने का तात्पर्य भगवान की कथा तो अमृत से भी बढ़कर है। आपने देखा होगा हनुमान जी महाराज जहाँ भी कथा होती है वहां जरूर होते है। क्योंकि हनुमानजी को कथा से बहुत अधिक प्रेम है।
इसलिए भगवान की कथा का श्रवण करें,जरूर करे बार बार करे और फिर फिर स्मरण करें। बस ये दो काम ही काफी है।
।।राम कथा सुन्दर करतारी.. । साभार।।