सिद्ध घनेरी बाबा ही हैं बुड़ैल के सिपहसलार पालनहार
चंडीगढ़ ; 29 जनवरी ; आरके विक्रमा शर्मा /मोनिका शर्मा ;——-चंडीगढ़ देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सपनों का साकार शहर है जिसे सभी सिटी ब्यूटीफुल बनाम पैरिस सिटी ऑफ़ इंडिया भी कहते हैं ! चंडीगढ़ शहर का नामकरण शिवालिक की पहाड़ियों के चरणांचल में पांडवों द्वारा पूजित माँ चंडी देवी के नाम से पड़ा था ! माँ चण्डी आदि शक्ति और मूर्धन्य भक्ति का महा स्रोत्र है सो शहर में शिक्षा परोपकार और समानता स्वच्छता समृद्धि सम्पन्न समाज वास करता है ! चंडीगढ़ पुराने ग्रामों का विविध स्तर पर आत्मनिर्भर गढ़ रहा है ! जिसके एक छोर पर कांगड़ा से लाकर विराजत की गई माँ जयंती देवी तो दूसरे छोर पर सिद्ध पीठ माता मनसा देवी और कुछ दुरी पर ही माता चंडी देवी जी का भव्य मन्दिर स्थापित है ! शहर माताओं के गरिमामयी आँचल ,में सुरक्षित बसा हुआ है ! ऐसे ही भगवान भोले नाथ के करुणामयी उपस्थिति से भी सराबोर है ! पौराणिक और ऐतिहासिकता के संकलित सूत्रों के अनुसार सकेतड़ी के शिवलिंग और सेक्टर 9 पंचकूला सहित चंडीगढ़ के सेक्टर 24 व् सोहाना सहित जयंती ग्राम की नदी के किनारे हथनौर शहर के प्राचीनतम मन्दिर के शिवलिंग शहर को हर प्रकार से आज भी परिपूर्ण किये हुए हैं ! इसी क्रम में मोहाली के सेक्टर 70 स्थित प्राचीनतम नाथों के डेरा [समाधां वाले डेरा] चंडीगढ़ से निकलने वाले दैनिक ट्रिब्यून परिसर के पछवाड़े स्थित समाधि वाले शिवमंदिर [यहाँ शिवभक्त पुजारी ने जीते जी समाधि ली थी] और भी न जाने कितने भगवान के स्थायी वास हैं ! इसी श्रेणी में बुड़ैल के सिद्ध बाबा घनेरी का शिवलिंग अपने अद्धभुत स्वरूप का अखण्ड दर्शन आज भी बनाये हुए बुड़ैल सहित शहर पर अपनी कृपा दृष्टि जमाये हुए हैं !
कहा जाता है कि कोई सिद्ध शिवभक्त साधु बाबा यहाँ स्थित ऊँचे टीले पर आकर बस गया था उसी ने अपने शिव भोले बाबा की पूजा अर्चना हेतु उक्त शिवलिंग स्वरूप स्थापित किया था ! जो उसी स्वरूप में आज भी दर्शनीय है ! हर साल यहाँ लंगर भंडारे मेले आदि आयोजित किये जाते हैं ! मौजूदा भाजपाई युवा पार्षद कंवरजीत राणा ने बताया कि बुड़ैल ग्राम अपने अंदर पुराने किस्से लोकगाथाओं के भंडार सँजोये हुए है ! यहाँ का पुराना किला भी आज अपनी असम्मत बचाने की गुहार लगाते हुए अंतिम चरणों का रही बना हुआ है ! डेरा सिद्ध घनेरी शिव मन्दिर बुड़ैल में वर्ष 2015 के जून महीने के दूसरे सप्ताह में अनेकों देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित करते हुए धर्म परम्परानुसार प्राणप्रतिष्ठित समागम आयोजित किया गया था ! दूरदराज के इलाकों से आज भी शिवभक्त व् अनन्य साधक आस्थावान आदि मन्नतें मांगने और मुरादें पूरी होने पर बधाइयां स्वरूप भंडारे आयोजित करती रहती है ! बुड़ैल अपने आप में मिन्नी मुम्बई जैसे वातावरण को समेटे है और यहाँ शिक्षा व्यापर खेल हथकरघा मैकेनिक्जम और न जाने क्या क्या रोजीरोटी का गढ़ बना हुआ है ! आधुनिकता के दौर के पायदान पर खड़ा बुड़ैल अपनी पौराणिकता और ऐतिहासिकता धर्म परम्पराओं और रीतिरिवाजों को बखूबी ढोहते देखा है ! बुड़ैल के सुरमे सरहदों सहित पुलिस और खेतों,डायरी सहित प्रशासन के अदायरोँ व् निजी रोजाना क्रियाकलापों में मशगूल दीखता जीवट उदाहरण बना हुआ है !