चंडीगढ़:- 4 जनवरी 2023 :–साहित्य संस्कार प्रभाग प्रस्तुति:-–प्राय: देखा जा रहा है कि पहले की अपेक्षा विवाह आयोजन काफी भव्य स्तर पर किए जा रहे हैं! और दर्शाए भी जा रहे है। जैसे एक प्रतिस्पर्धा चल रही है सामाजिक तौर पर अपने आप को रहीस दिखाने की,शादियों में पहले जैसे सम्मान पूर्वक कोई बात दिखाई नहीं देती।
आजकल एक विवाह करने में करोड़ों की लागत आती है जबकि पहले साधारण विवाह जो कुछ रिश्ते नाते दारो के साथ संपन्न हुआ करते थे जिनमें पारिवारिक आशीर्वाद मिला करता था। आज सिर्फ वीआईपी गेस्टो की आवभगत करने के साथ सीमित रह गया है जिसके अंतर्गत काफी बड़े-बड़े नामचीन ” रिजॉर्ट” और ” होटल ” बुक करके लड़की और लड़के वालों का परिवार एक ही स्थान पर शादी समारोह संपन्न करता हैं। आजकल लोग शादी को शाही शादी की तरह करने की चाहना रखते हैं। इसके लिए काफी लागत लगाकर खर्च भी किया जाता है और उसे भव्य बनाया जाता है जैसे कोई राजा महाराजा या पिक्चर की शूटिंग चल रही हो।
थोड़ी तारीफ पाने के लिए, किसी हाई सोसाइटी की तरह अपने आपको प्रस्तुत करने के लिए, हम अपने जीवन भर की पूंजी को पानी की तरह बहाते हैं और कुछ लोग तो कर्जा भी कर लेते हैं इस प्रकार के भव्य आयोजन संपन्न करने के लिए । पर सच तो यह है कि लोग कुछ दिन बाद भूल भी जाते हैं । बढ़-चढ़कर की जाने वाली सजावट या कुछ स्मृति के अलावा यदि कुछ याद रह भी जाता होगा तो वह सिर्फ खाना। बाकी हर जगह एक जैसा लगने के बाद तो सिर्फ तुलनात्मक ही रह जाती है शादियां।
सिर्फ हमारे शादी समारोह में नामचीन हस्तियां आए ,बड़ी-बड़ी गाड़ियां लाइन में लगी हुई हैं,यह दिखाने की होड़ के चक्कर में हम अपने बच्चों के लिए बचाए गए पैसे को पानी की तरह बहा देते है , जिससे कि उनका भविष्य आर्थिक रूप से मजबूत बन सकता था उस पूंजी को एक कार्यक्रम में ही समाप्त कर देते हैं।
इतना खर्चा करने के बाद भी देखा जा रहा है की इसके कारण दहेज की संभावनाओं में वृद्धि ही हुई है पहले इंसान कार तक सीमित था आजकल महंगा हनीमून की भी डिमांड भी देखने में सामने आई है, जिसके पूरे ना हो पाने के कारण अक्सर देखा गया है ससुराल में लड़कियों को कई समय तक ताने मिलते हैं, और भी महत्वपूर्ण बात यह है शुरुआत में ही जब खटाई पड़ जाती है तब रिश्तो में आपसी समझ तालमेल ना बैठ पाने के कारण इतने भव्य समारोह संपन्न होने के बाद भी आमतौर पर शादियां टूटती नजर आ रही है। स्वयं सोचिए यदि आडंबर न करें , सिर्फ हम अपने बड़े लोगों एवम् नाते रिश्तेदारों के आशीर्वाद के साथ ही विवाह को संपन्न करने के लिए प्रयासरत रहे तो आप पाएंगे कि बचाए गए पैसों से हम अपने बच्चों की जरूरत पूरी कर सकते हैं और यदि कभी भविष्य में कोई शादी टूटती हुई है तो हम आर्थिक रूप से अपनी बिटिया को सशक्त बनाकर उसको जीवन में आगे की राह दिखा सकते हैं। हम ये क्यों नजरअंदाज करते हैं कि हम ऐसे समाज के हिस्सेदार हैं जिसमें होड़ नहीं अच्छे संस्कारों की जरूरत है जहां भारत का नाम शादियों के सुरक्षित रहने में नंबर वन पर था वहां आज देखा जा रहा है , इतने भव्य आयोजन संपन्न करने के बाद भी पैसा पानी की तरह बहाने के बाद भी शादियां नहीं टिक रही विवाह टूट रहे हैं।