शरद पूर्णिमा को सर्व कला संपूर्ण श्री कृष्ण वासुदेव ने रचाई थी महारास

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चंडीगढ़: 8 अक्टूबर:- आरके विक्रमा शर्मा /करण शर्मा +हरीश शर्मा प्रस्तुति:–-कल नौ अक्टूबर को देशभर में शरद पूर्णिमा का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा। लेकिन ब्रज में इस पर्व की बात कुछ अलग ही होती है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त रहता है, इस दिन मां लक्ष्मी का विशेष पूजन किया जाता है। इसके साथ इस दिन का श्रीकृष्ण भगवान ने सोलह हजार गोपियों की इच्छा पूरी करते हुए उनके साथ पूरी रात नृत्य किया था जिसे महारास कहा जाता है। कहते हैं इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से मनचाहा प्यार और जीवनसाथी पाने की इच्छा पूरी हो जाती है। तो चलिए जानते हैं शरद पूर्णिमा पर महारास का महत्व और उपाय- शरद पूर्णिमा महारास महत्व- श्रीकृष्ण की सभी लीलाओं को रास कहा जाता है लेकिन शरद पूर्णिमा की उस रात यमुना किनारे स्थित बंसी वट में जब कान्हा जी ने पूरी रात नृत्य किया सिर्फ उसे महारास की पदवी दी गई है।  शास्त्रों की में बताया गया है कि इस महारास की महिमा इतनी मनोरम थी कि चंद्र देव भी उसे देखने में इतने मग्न हो गए कि अपनी गति को स्थिर कर दिया था और कई महीनों तक सुबह ही नहीं हुई थी। ग्रंथों की मानें तो श्री कृष्ण ने इस रात को ब्रह्मा की रात जितना लंबा कर दिया था। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा की रात मनुष्यों की करोड़ों रात के समान होती है।।

मनचाहा प्यार पाने के लिए करें ये उपाय– शरद पूर्णिमा के इस पावन पर्व पर संध्या के समय राधा-कृष्ण की उपासना भी की जाती है। इस दिन पूजन के समय राधा-कृष्ण को गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। मध्य रात्रि में सफेद वस्त्र धारण कर चंद्रमा को अर्घ्य जरूर दें और फिर ॐ राधावल्लभाय नमः मंत्र का 3 माला जाप करें। जिससे प्रेम है और अगर शादी में बाधा आ रही है तो मनचाहे प्यार को जीवनसाथी बनाने की प्रार्थना करें। भगवान को चढ़ाई माला अपने पास संजो कर रख लें। मान्यता ये है कि इससे प्रेम संबंधों में और मिठास बढ़ती है और प्यार और गहरा होता है।।

शरद पूर्णिमा पर कृष्ण भगवान ने तोड़ा था कामदेव का घमंड– प्रेम और काम के देवता कामदेव को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था, इन्हें काम के प्रति किसी को भी आसक्त करने की क्षमता थी। कहा जाता हैं कि श्री कृष्ण की बांसुरी में इतनी ताकत थी कि कोई भी मोहित हो जाए। शरद पूर्णिमा की रात कान्हां जी ने ऐसी बंसी बजाई की सारी गोपियां उनकी ओर खिंची चलीं आईं। उनके मन में सिर्फ कृष्ण को पाने की इच्छा थी लेकिन काम वासना नहीं। कामदेव ने अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन हजारों गोपियों के साथ नृत्य कर रहे श्री कृष्ण के मन में काम की वासना उत्पन्न नहीं हुई। बस फिर कामदेव के घमंड को भगवान श्री कृष्ण ने चूर-चूर कर दिया।

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