महिला अधिकार संगठन भी मूक दर्शक से ज्यादा क्या पाए जगजाहिर है ! आज हर कोई उन दरिंदों को खुद फांसी पर लटकाने के लिए आतुर दिखाई दे रहा है ! यहाँ तक कि कई जेलों में उम्रकैद काट रहे खुखार दुर्दांत आतंकी या अपराधी भी इस पत्थर दिल जालिम को किसी भी सुरते हाल बख्शने के कतई हक़ में नहीं हैं !
उनका कहना है कि उनके जुर्म तो इस निंदनीय अमानवीय कुकर्म के आगे बौने हैं ! कोई नाबालिग होते हुए एक अबला जिसपर छह युवकों के कहर बरपने जारी है और उसके साथ उसकी अस्मत और जान की हिफाजत करने वाले को भी बेकसूर होने पर भी मार मार कर अधमरा कर दिया गया था ! कानून की किताब के काले पन्ने इस अपराध की सजा का उल्लेख न होने पर खुद पर लानत दे रहे हैं ! किसी द्रवित दिल ने ठीक ही कहा था कि दिल्ली के सीने पर जैसे बस के छह टायर धरती का सीना रौंद रहे थे उसी वक़्त उसी तरह बस में छह दरिंदे निहत्थी निर्दोष असहाय दामिनी पर छह दरिंदे अपनी दरिंदगी का नंगा नाच करते हुए उसकी देह और अस्मत की बोटी बोटी तारतार करने में मशगूल थे ! क्या उस वक़्त उनकी बहादुरी के पीछे हमारे कछुआ चाल कानून की भूमिका शह का सबब नहीं बनी थी ! अगर कानून बनाने वालों ने इन बेचारी बेटियों के लिए कुछ गम्भीरत से सोचा होता तो शायद आज ये बदहाल दयनीय हालात बहु माँ बेटियों के देहों पर अत्याचार न देखने को मिलते ! क्या फांसी की सजा से हालत अब दुरुस्त हो गए हैं या अब कोई बच्ची, बेटी किसी दरिंदे के जुल्मों कुकर्म की शिकार नहीं होगी ! इस बात की जिम्मेवारी कानून के पालक या वर्दी धारी या फिर देश की प्रजा के पालक सफेदपोश लोग कौन लेगा ?? कि अब शांति सुरक्षा बनी रहेगी और किसी बहु बेटी बच्ची को कतई डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि लेट ही सही पर कानून ने अपना काम किया तो है ! पीड़िता दामिनी के दोस्त ऐ पांडेय की रूह आज भी सिहरती होगी जब मंजर स्मरण होता होगा ! ये वो खुनी बदहवास मंजर जिसको देखने से खून रगों में जम जाये और इंसान पत्थर हो जाये ! ************** !!!!*******??? कानून का अगर खौफ हो तो दामिनी आज अपने घर संसार में व्यस्त होती ! दामिनी ! हम सब भारत वासी शर्मिदा हैं ! भारत सुताओं की रक्षा करने में हम खुद नपुंसक बने हुए हैं ! हो सके तो क्षमा करना ! क्योंकि, हम चंद पल मगर के आंसू बहा कर फिर बेशर्म होकर बेफिक्र हो जाते हैं !