“दिल की जुबां”

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         “दिल की जुबां”
हाँ, मैंने गुनाह किया
तुझ से ज्यादा
तुझे चाहा !
तो, ये क्या किया
ये तूने खूब कहा !!!
     
मेरी तन्हाइयों में
तुम बसती हो
क्योंकि विरह में
तुम हंसती हो !!

तुम्हें खोने का,
बिलकुल नहीं !
बस पा लेने का,
डर ही तो है !!

हंसी, तेरी डसती है ,
जहर पी लूँ ये !
 रूह कब से
खूब मेरी तरसती है !!
====आरके शर्मा विक्रमा =========

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