—– रूह से रूह के नाम —–
खुद को खुद में देखने की तमन्ना
आईने के सामने मैं हूँ
ये क्या देख रहा हूँ मैं
तस्वीर कैसे उसकी देख रहा हूँ !!
दिल तोड़ने की जुर्रत नहीं कर पाए
दिल से निकल पड़े खुद को बेघर कर गए
तुम ने आह से वाह तक पाई हमसे
हम खुद को खुद कत्ल कर चल दिए !!!
मेरी वफ़ा की दहलीज पर डोली रुकी है
उतरो, पर्दानशीं, पर्दा हटाओ, दीदार करो
आसमां की सम्मत नहीं पैरों को देखें
हमारी हस्ती तेरे पैरों की बस्ती तले है !!!!
रंक नहीं थे, तेरे दीदार को कासा थामा है
आँखों में लौ नहीं है, आस का जुगनू टिमटिमा रहा
इक बार बेपर्दा हो जाना फिर रुखसत हो जाना
इक दीदार खातिर मर्द से मुर्दा हो गया हूँ !!!!!
तेरी गली में हमारी शानो शौकत को हाय लगी
और रूह को रूह की चाह रूह बेहया हो गई
गली के नुक्क्ड़ पर तेरे जलसे में बेवफा
तेरी बेरुखी से रूबरू हुए, वाहवाह हो गई !!!!!!