चंडीगढ़:- 14 मई:अल्फा न्यूज़ इंडिया प्रस्तुति– दोस्तों दिखावे और आडंबर की हस्ती मिटती देखी जा रही है। वही लोग अड़ हुए हैं। जो अपनी जड़ों से, अपनी मिट्टी की सोंधी सोंधी गंध से जुड़े हुए हैं। पत्थरों के बीहड़ से अब दूर दूर तक किसी के चीखने और चिल्लाने की आवाज भी नहीं आ पा रही है। महामारी का एक ही शोरगुल मौत मौत मौत मौत। इस मौत के आगे आधुनिकरण बिल्कुल खामोश खामोश खामोश।।
*अस्पताल खोलो,अस्पताल खोलो चिल्लाने वालो,* *100 अस्पताल न खुलवा कर मौहल्ले मौहल्ले बंद पडे़ अखाडे़ खुलवा दो।* *दंड बैट्ठक पेलो, फेफड़ों में हवा भरना सीखो, बच्चों को मैदान में पुराने खेल खेलने दो। फिर देखो कौन बीमार पड़ता है।* *पुराने जमाने में डाक्टर घर पर आता था, अब हम उसके क्लिनिक में लाईन लगाते गर्व समझते हैं।*
– *अखाडे़ जाने में शर्म आती है, फेफड़े नहीं फुलाओगे तो अस्पताल ही तो जाओगे, मोटी रकम चुकाओगे। हाथ में घुसी सुई लेकर शान से बताओगे फलाने हास्पिटल से आया हूं। एक लाख रुपये खर्च हो गये।*
– *आज की स्थिति का सबसे बडा़ कारण है संयुक्त परिवार खत्म होना।* *इससे खानपान संयमित व संतुलित होता था। घर के अचार मुरब्बे होते थे।*
– * *अब शादी होते ही घर से अलग और सैर सपाटे चालू। खाना कौन बनाये तो होटल, पिज्जा, बर्गर, छोले भटूरे, डोसा , इढली, पैकेट बंद खाना शुरू।* *ये पेट तो भर सकते हैंं, जीभ को स्वाद दे सकते हैं, पर शारीरिक ताकत नहीं दे सकते। और धीरे-धीरे बीमारी का घर खुद तैयार करते हैंं।*
– *अब औलाद पैदा हुई तो चुम्मा ले लेकर सबसे अच्छे पैरेंट्स बनकर दिखाना चाहेंगे, मुन्ना को कोई तकलीफ न हो पपोल पपोल कर रखेंगे। अब दो साल में प्राइवेट स्कूल में नाम लिखवा देंगे क्योंकि पैसा है। पावर है फीस भर देंगे, सरकारी स्कूल की ऐसी की तैसी, जबकि खुद सरकारी स्कूल में पढे़ थे।* *बच्चा मोम डैड बोलेगा हम खुश होंगे, बच्चा अंग्रेजी पढे़गा तो रामायण , महाभारत , महाराणा प्रताप कौन थे कैसे जानेगा और बच्चा स्ट्रांग कैसे बनेगा।*
– *अरे याद करो वो गुल्ली-डंडा का खेल, हॉकी, ठिकडफोड़, पकड़मपकडाई, लुकाछिपाई, खो-खो जैसे न जाने कितने ही उछलकूद वाले खेल खेल कर हमारे बुजर्ग 90-100 साल तक जीते हैं। जबकि आज कल के बच्चे 50 साल मुश्किल से निकालेंगे।*
– *अब घर में कूलर एसी चाहिए। सारे खिड़की दरवाजे बंद, अब शुद्ध वायु कहां से मिले ?* *कबूतरनुमा दड़बों जिसे फ्लैट कहते हैंं। उसमें चौथी पांचवीं मंजिल पर रहेंगे। जहां न सूर्य का प्रकाश आयेगा न हवा, बंद-बंद रहेंगे।*
– *अब आफिस से घर 10 किलोमीटर दूर तो घर पहु़ंचने का टेंशन, इसलिये बेंक से कर्ज लेकर कार खरीद ली। छोटेमोटे काम के लिये मोटर सायकल ले ली। बस फ्लैट गाडी़ के कर्ज में बंध गये उसका टैंशन।*
– *शरीर को तंदरुस्त के लिए पैसे देकर जिम जा कर बन्द कमरे में मशीनों पर तो कूदने में अपनी शान समझते हो। हेल्थ टोनिक के नाम पर महंगी दवाई (केमिकल-जहर) खाते हो, लेकिन सुबह-सुबह घर के नजदीक होने पर भी पार्क में पैदल जा कर ताजी हवा के साथ घूमना और वर्जिश करना मंजूर नही।*
– *थोड़ा सा कुछ भी होने पर हजारों रुपये की टेस्टिंग व दवाइयां खा लेंगे। लेकिन दादी-नानी के बताए नुस्खे मंजूर नहीं। *ऐसे में आदमी आज जी कहां रहा है, रोज रोज मर ही तो रहा है।*
*इसलिए आओ लौट चलें अपनी जडों की ओर।।
अभी भी संभल जाओ।ताकि भौतिक संसार चलाए मान रहे। वरना इस के विध्वंस का सब अब तुम ही हो।