चंडीगढ़:- 7 मई:- आर के विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा:– कोरोनावायरस की पहली लहर हमारे देश में 20 सौ उन्नीस में आई थी और इसका पहला शिकार भारत में केरल राज्य का नागरिक बना था! उसके बाद 20 सौ इक्कीस में कोरोनावायरस की दूसरी सुनामी नई दुनिया के साथ-साथ भारत में विष्णु रौद्र रूप दिखाते हुए हमारे लाखों देशवासियों की बेवक्त जान ले ली है। यह क्रम अवैध रूप से जारी है। और कहते हैं कि जब जरूरत होती है, प्यास होती है कुआं खोदने में भी देर नहीं लगती है। ठीक इसी तरह लोग बचने के लिए नए-नए नुक्ते और नुस्खे खोज रहे हैं। जोकि एलोपैथिक दवाइयों से भी कहीं कारगर साबित हो रहे हैं। और लाखों लोगों की जान बचाने में कामयाब रहे हैं। भारत तो है ही ऋषि मुनियों योगियों तपियों फकीरों का देश है। जहां नफरत के साथ प्यार समर्पण परोपकार सेवा भावना भी अपनी गति से चलाए मान है।आज इस वैश्विक महामारी से बचने के लिए अनेकों प्रकार के जुगाड़ पुराने से पुराने आयुर्वेदिक काढ़े और जड़ी बूटियां औषधियां प्रयोग में लाई जा रही हैं। लोगों की जान बचाई जा रही है। और देखा जाए तो समूचा विश्व भारत की इस पद्धति को सलाम कर रहा है। अधिक से अधिक इसका उपयोग अपने देशों में करके वहां मौत के तांडव को नकेल डालने में कामयाब हो रहा है।
आयुर्वेद के बेअथाह भंडार से अमृत रूपी एक और बूंद बेमौत इस महामारी से किसी को अब नहीं मरने देगी। और इस औषधि का नाम है आयुध एडवांस। जोकि पूरी तरह से जड़ी बूटियों के मिश्रण का द्रव्य है। और यह तकरीबन 21 जड़ी बूटी पेड़ों पौधों से तैयार की गई दवाई है। गुजरात सरकार के आयुर्वेद विभाग से उक्त दवाई को मान्यता भी प्रदान की है। सही बात तो यह है कि अन्य आयुष दवाइयों की तरह यह दवाई भी किसी प्रकार का शरीर के किसी अंग पर कोई साइड इफेक्ट नहीं डालती है। रेमदेसीविर से 3 गुना ज्यादा असरदार कही जाने वाली यह दवाई 4 दिन में मरीजों को ठीक करने में सक्षम है। यह पूर्णतया भारतीय जड़ी बूटियों से बनी कोरोना के लिए पहली क्लिनिकली टेस्ट अट स्वदेशी दवा होने का स्थान पा चुकी है लोगों में इसके प्रति जिज्ञासा बढ़ने के साथ-साथ इसकी डिमांड भी बेहद बढ़ती जा रही है सबसे बड़ी बात यह है कि जबसे कोरोनावायरस अब से लोगों का एलोपैथिक दवाइयों पर से विश्वास घटकर आयुर्वेदिक दवाइयों पर इट चुका है और इसी क्रम में होम्योपैथी ने भी अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया है जबसे की मरीजों में ऑक्सीजन लेवल कम होने लगा और ऑक्सीजन की भारी किल्लत का सामना लाखों मरीजों को करना पड़ा और हजारों मरीज इस ऑक्सीजन की कमी के चलते प्राण गवा चुके।