श्री विष्णु हरि जी का हर हर महादेव से होता इसी पावन दिवस को मिलाना

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चंडीगढ़/उज्जैन:-28 नवंबर:- अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क:—- हरि और हर के मिलन की तैयारी में शासन प्रशासन आज सुबह से ही जुट गया ।144 धारा के साथ पुराने उज्जैन में महाकाल से लेकर गोपाल मंदिर तक 9:00 बजे सारा मार्केट बंद करा दिया गाया । बड़ी तादाद में पुलिस बल तैनात किए गए ,पटाखों पर बैन लगा दिया गया, व गलियों में 2 से 3 बैरी गेट लगा दिए ताकि लोगों की आवाजाही रोक सकें ।

पुलिस प्रशासन गोपाल मंदिर से महाकाल तक निगरानी करते नजर आईं, वह लोगों को समझाइश देकर उनके घर रवाना की बार-बार यह हिदायत देती रही कि वह अपने घरो से बाहर ना आए महाकाल की सवारी बड़ी ही शांति पूर्वक महाकाल से गोपाल मंदिर की ओर बढ़ चली ।

बताया जाता है कि हरि हर हर के मिलन के पीछे यह पौराणिक कथा है –

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ”वैकुंठ चतुर्दशी” मनाई जाती है। इस बार वैकुंठ चतुर्दशी 29 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन वैकुंठ के आधिपति भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करने का विधान है। यह दिन भगवान शिव और विष्णु जी के मिलन को दर्शाता है, इसलिए वैकुंठ चतुर्दशी को हरिहर का मिलन भी कहा जाता है। इस दिन विष्णु जी की कमल के फूलों से पूजा करनी चाहिए साथ ही भगवान शिव की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। जानते हैं वैकुंठ चतुर्दशी की कथा और व्रत का विधान…एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु शिव जी का दर्शन करने महादेव की नगरी काशी में आए। उसके बाद उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के पश्चात एक हजार स्वर्ण कमलों से शिव जी का पूजन करने का संकल्प लिया। विष्णु जी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से शिव जी ने उन स्वर्ण कमलों में से एक कमल कम कर दिया। तब उस कमल की पूर्ति करने के लिए विष्णु जी ने अपने नयन कमल शिव जी को अर्पित करने का विचार किया। जैसे ही विष्णु जी अपने नयन अर्पित करने को तत्पर हुए, शिव जी प्रकट हो गए। उन्होंने विष्णु जी से कहा कि आपके समान मेरा कोई भक्त नहीं है। तब शिव जी ने कहा की आज से कार्तिक मास की चतुर्दशी वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। विष्णु जी की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया।

सनातन धर्म अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष कि चतुर्दशी को हेमलंब वर्ष में अरुणोदय काल में, ब्रह्म मुहूर्त में स्वयं भगवान विष्णु ने वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया था। पाशुपत व्रत कर विश्वेश्वर ने यहां पूजा की थी। भगवान शंकर ने भगवान विष्णु के तप से प्रसन्न होकर इस दिन पहले विष्णु और फिर उनकी पूजा करने वाले हर भक्त को वैकुंठ पाने का आशीर्वाद दिया।

ऐसी मान्यता है कि बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और वैकुंठ धाम में निवास प्राप्त होता है।हिन्दू धर्म में वैकुण्ठ लोक भगवान विष्णु का निवास व सुख का धाम ही माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक वैकुण्ठ लोक चेतन्य, दिव्य व प्रकाशित है। तभी से इस दिन को ‘काशी विश्वनाथ स्थापना दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। इस शुभ दिन के उपलक्ष्य में भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है। इसके साथ ही व्रत का पारण किया जाता है।

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी (वैकुण्ठ चतुर्दशी) की रात्रि में भगवान विष्णु और भगवान शंकर का मिलन हरिहर मिलाप के रूप में होता है। मान्यता है कि मध्य रात्रि में शिव जी, विष्णु जी से मिलने जाते है.भगवान शिव चार महीने के लिए सृष्टि का भार भगवान विष्णु को सौंप कर हिमालय पर्वत पर चले जाते हैं। इसलिए भगवान शिव का पूजन, भगवान विष्णु जी की प्रिय तुलसीदल से किया जाता है, बाद में भगवान विष्णु जी, भगवान शिव जी के पास आते हैं, तो भगवान चतुर्भुज को फलों का भोग और शिवप्रिय बिल्वपत्र अर्पित किए जाते हैं। इस प्रकार एक दूसरे के प्रिय वस्तुओं का भोग एक दूसरे को लगाते हैं। इस दिन भगवान को विभिन्न ऋतु फलों का भोग लगाया जाता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु तथा शिव जी के ‘ऎक्य का प्रतीक है। जगत पालक विष्णु और कल्याणकारी देवता शिव की भक्ति में भी यही संकेत है।

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