अखर का प्रखर प्रहरी साहिर लुधियानवी तेरी कलम को सलाम
चंडीगढ़ ; 25 अक्टूबर ; आरके शर्मा विक्रमा;—– अक्षरों का मसीहा जब देखता ख़ुशी और कोई तसीहा तो उसका दिल रोटा है या हँसता है तो वह अपनी अनुभूति को अखरों केजरिये अभिव्यक्ति देता है ! ये अभिव्यक्ति देने की कला ही उनको अपने आसपास के दायरे से ऊपर उठती और अलग पहचान भी देती है ! ऐसी ही बेमिसाल पहचान बनाने में कामयाब कलम के धनि व्यक्तित्व का नाम साहिर लुधियानवी जमाना तब तक यद् रखेगा जब तक अखर होंद में रहेंगे ! साहिर लुधियानवी उर्दू के जानेमाने शायरों की अगली पंक्ति के अगले हीरो रहे हैं ! शब्द उनकी लेखनी के गुलाम होकर वाक्यों का रूप लेते थे ! तहजीबी और अदब से भरी शायरी के शौक़ीन साहिर लुधियानवी ने हर पहलु पर खूब कलम चलाई ! जो देखा वो लिख डाला ोरवो ही जुमला और कहावत बनती गई ! उनकी शायराना अंदाज मेंकही हर बात हर किसी केलिए नसीहतों का जखीरा बनती थी ये ही उनको बाकि शायरों से बखूबी अलग करती थी ! सादगी के सौदागर वसाहिर लुधियानवी ने 1980 में इस दुनिया को अलविदा बोलने से पहले बालीबुड में तात्कालीन नामचीन बंदे केसाथ बंदे केलिए बंदे की माक़िफ़ काम किया और शोहरत रूपी दाम लिया ! सद्व्यवहार में नरमी और अदब के साथ वसाहिर लुधियानवी ने अपनामुक़ाम बनाया और उस दौर में हर किसी के लिए कलम चलाई ! और अखरों को जिसने भी आवाज दी मशहूर होता गया ! आज बरसी के मौके पर उनके चाहने वाले और उनके कलमबद्ध किये गए गीतों को सुनने वाले असंख्य श्रोताओं की भावभीनी विदाई श्रद्धांजलि समर्पित है !