सुप्रीमकोर्ट के सर्वहिताय “तीन तलाक” संबंधी फैसले की उड़ती रोज धज्जियां
चंडीगढ़ ; 7 दिसम्बर ; आरके शर्मा विक्रमा ;——-सुप्रीमकोर्ट के सख्त और सर्वहिताय निर्णयों की धज्जियां उड़ाने में प्रशासन और पुलिस तंत्र का लगता कोई सानी नहीं है ! 21 सदी के भारत के मुसल्मानों के लिए अहम माना जा रहा फैसला तीन तलाक पर रोक कहा जा सकता है ! न्यायपालिका ने अपना रोल बखूबी ईमानदारी से निभाया ! लेकिन दुर्भाग्यवश कार्यपालिका और पुलिस तंत्र सहित प्रशासन सब बुरी तरह फेल साबित हो रहे हैं! जिसके चलते ये फैसले आम रियाया के वास्ते ऊंट के मुंह में जीरा तुल्य ही हैं!
बिहार के मुज्जफरपुर के मुस्लिम युवक ने जब अपनी मोहतरमा को तीन तलाक फरमान भरी पंचायत मे सुनाया तो पहले तो मोहतरमा अवाक् रह गई और राजी होने के बदले सदमे में आ गई ! लेकिन तभी कुछ मन पक्का इरादा करके शोहर को झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ कर उसके गैरजिम्मेदराना और गैरकानूनी तीन तलाक पर राजीनामे को मोहर पक्की कर दी !
हैरत ोरशरम का सवाल तो ये है कि ये सब गैरकानूनी कृत्य पंचायत के बीच हुआ ! उक्त पंचायत को ये अधिकार किसने दिया कि तीन तलाक का फैसला उसकी मौजूदगी में परवान चढ़े ! ऊपर पर नीम पर करेला ये रहा कि उक्त गैरकानूनी और गैरइंसानियत फैसले की जानकारी पंचायत के सिवा प्रशासन सहित पुलिस को भी नहीं लगने दी ! तो क्या पुलिस और प्रशासन की पकड़ अपने क्षेत्रों में आज आधुनिक दौर में इतनी शर्मनाक हो चुकी है कि इतने बड़े इक्क्ठ बैठक की और इंसानी जीवन से जुड़े फैसले की जानकारी तक उसको नहीं है ! अगर वास्तव में ये ही सच है तो जनता का तो फिर खुदा ही खैर ख़्वाह है !
“तीन तलाक” को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है| जिसे अवैध घोषित किया जाता है | बताते चलें कि उच्चतम न्यायालय ने दो दूक फैसला मुस्लिम समाज के हित में दिया था कि तीन तलाक को तो कुरान शरीफ तक मे मूल इंसानी सिद्धांतों के अनुकूल ही नहीं मन गया था ! और सीधे सीधे इसको असंवैधानिक करार दिया गया था ! ये इंसानियत के उसूलों के भी खिलाफ कहा गया है ! क्या कानूनन जवाबदेह सरकारी तंत्र को उसकी उदासीनता और गैर जिम्मेदाराना जवाबदेही के लिए कानूनन सजा मुकर्रर की जाये ! और शौहर की मलकियत से भी मोहतरमा के समग्र जीवनयापन हेतु मुहैया करवाया जाये ! उक्त तीन तलाक के मुद्दे पर खुद मुस्लिम समाज एकमत आज तक नहीं हुआ है ! यानि अपने खुदापाक के बनाये तर्कों नियमों को मानने वाले कई श्रेणियों में बंटे हुए हैं ! इनकी जातीय एक्तकाभाव इंसानियत का कितना खैरख्वाह साबित होगा ये लिखने की जेहमत तो है पर जरूरत नहीं है !