अब तो जा जवान जा किसान, जय जवान जय किसान नहीं

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अब तो जा जवान जा किसान,  जय जवान जय किसान नहीं  

चंडीगढ़ ; 8 दिस्मबर ; आरके शर्मा विक्रमा /करण शर्मा ;—-देश के बेहद सटीक शांत और सही मायनों में देशभक्त भारतसुत प्रधानमंत्री मरहूम लालबहादुर शास्त्री नेभारत मटकेदो असली हीरो सुपुत्रों के नाम उनकी तात्कालीन दशा के मद्देनजर नारा दिया था कि ” जय जवान जय किसान”!
ये नारा शास्त्री जी ने  उस वक़्त देश के जाबाजों के रोलों को देख परख कर दिया था जब देश विकास और अपने पैरों पर खड़े होने की विसात बिछा रहा था ! तब और अब में दो दोनों वीर सपूतों के जीवन और परिवारों में कितनी खुशहाली और नैतिक सुरक्षा बढ़ी है जगजाहिर है! 
   जवान सरहद पर लहू बहा  कर हम को जीने का अवसर दे रहा है पर किसान खेतों में अपना खून पसीना एक करके हमारे पेट भर रहा है ! हर इंसान इनका ऋणी है और इनके ऋणी से भी मुक्त नहीं हुआ जा सकता जैसे माँ बाप के ऋण से कोई भी कभी भी  किसी भी सूरतेहाल मुक्त नहीं हो सकता  है ! 
   आज अल्फ़ा न्यूज इंडिया इन दोनों वीरों को पालनहार की संज्ञा देकर कृतज्ञ वत नमन करती है ! और सरकारों से इनकी और विशेष ध्यान देने की गुहार करती है ! सही लफ्जों में हम जवानों और किसानों के कर्जदार हैं और इनकी बेवक़्त बेवजह मौतों के सौदागर भी हम सब नागरिक हैं ! ये वक़्त और परिवार सहित अपने पेट पालने की मजबूरी के आगे आहत हैं पर हम तो नहीं फिर हम सब क्यों नहीं जागते हैं उनके लिए जो हमारे लिए बर्फ के बिस्तर में कभी सोते ही नहीं हैं ! अगर वोसरहदपर सो गए तो हम घर बिस्तरों में सोते सोते ही सवेरे सोये हुए ही मिलेँगे! 
   देश भर में किसानों की दुर्दशा एक सी ही है कोई फर्क नहीं है कहीं दूसरे स्टेट में ! मौतों के आंकड़े खंगालें तो सरकारों सहित हम सब को डूब मरणा चाहिये !  धरती पुत्र और भारत का पेट भरने मेंअग्रणी रहे पंजाब की बात करें तो शर्म अति इंसानियत का दम्भ भरने वाली सरकारों पर तो,फिर भले ये सरकार राष्ट्रप्रेम का कितना ही राग अलापती हो! सरहदों पर जवानों को दुश्मन मार रहा और खेतों में किसानों को सरकारें मार रही हैं ! ये शब्द भले ही आग उगल रहे होंगे पर जहरीला सच्च तो ये ही है ! महज डेढ़ दशक में तकरीबन पंद्रह हजार किसानों ने अपनी इहलीला किसान हितैषी सरकारों के शासन कालों में की हैं ! शर्म और हैरत की बात तो ये है कि ये निरीह  मौतों का ताण्डव बेरोक टोक जारी है ! कोई फर्क नहीं है सरहद और खेत में खून दोनों जगहों पर बहना जारी है ! भले ही जनता के ख़ून पसीने का अरबों रुपया बैठकों और दौरों ने हजम कर डाला है !   

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