नयी दिल्ली– अल्फा न्यूज़ इंडिया प्रस्तुति — भारत में कब कहां कैसे क्या हो जाए कुछ भी समझ नहीं आए। ओडिशा हाई कोर्ट का एक फैसला इस समय सवालों के घेरे में आ गया है। दो जजों की खंडपीठ ने एक मुस्लिम युवक की मौत की सजा इसलिए कम कर दी क्योंकि वह पांच वक्त नमाज पढ़ता है। कोर्ट ने नमाज पढ़ने के आधार पर ही दोषी की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। दोषी पर एक छह वर्ष की मासूम के साथ बलात्कार और हत्या करने का दोष हैओडिशा हाई कोर्ट के फैसले पर उठ रहे सवाल कई बार नमाज पढ़ने का हवालादेकर मौत की सजा उम्र कैद में बदलीएजेंसी | भुवनेश्वरओडिशा हाई कोर्ट ने छह साल की बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या’करने के दोषी शेख आसिफ अलीकी मौत की सजा उम्र कैद में बदल दी है। कोर्ट ने यह फैसला देते हुए कहा कि आसिफ अब नियमित नमाज पढ़ता है और अपना जुर्म कबूल कर चुका है। जस्टिस एसके साहू और जस्टिस आरके पटनायक की पीठ ने 106 पेज
के फैसले में कहा,आसिफ दिन में कई बार नमाज अदा करता है और उसने खुदा के सामने आत्म-समर्पण कर दिया है। हालांकि, पीठ ने आसिफ को मृत्यु होने तक जेल में रखने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने इस मामले को दुर्लभतम नहीं मानते हुए मौत की सजा उम्र कैद में बदल दी है। ट्रायल कोर्ट ने शेख आसिफ अली को बच्ची से दुष्कर्म और उसकी हत्या का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी। दुनियाके सबसे बड़े लोकतंत्र देश भारत की जनता हाई कोर्ट केस फैसले से हैरान और दुखी और शर्मसार हैं। स्थानीय जनता के मुताबिक मतलब है कि आप किसी भी बच्ची का बलात्कार करें। और सजा से बचने के लिए पांच समय नमाज अदा करें। आपका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है। इससे भी बड़ी हैरत है कि यह दो जजों की पीठ ने फैसला दिया। इस्लाम मजहब को छोड़कर यह सुनिश्चित हो चुका है हाई कोर्ट के मुताबिक कोई भी व्यक्ति इस तरह के जघन्य अपराध करें। और बचने के लिए इस्लाम धर्म कबूल करके पांच समय में नमाज अदा करें और ऐश्वर्या आराम की जिंदगी जिएं। एक नौजवान मुसलमान का कहना है कि अगर भारतीय संविधान का ऐसा कानून है तो शारीयत कानून कैसा होगा यह अपने आप अंदाजा लगाया जा सकता है।