चंडीगढ़/अबोहर: 18 जून:- आरके विक्रमा शर्मा /राजेश पठानिया /धरमवीर शर्मा राजू:— संगरूर लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के दौरान पंथक संगठनों के बाद बंदी सिंहों की फूट भी उजागर हो गई है। यहां बताना उचित होगा बंदी सिंहों की रिहाई के लिए जब सभी पंथक संगठन एक प्लेटफार्म पर इकठ्ठे हुए तो कुछ दिनों बाद संगरूर लोकसभा सीट पर उप चुनाव की घोषणा हो गई थी जिसे लेकर अकाल तख्त के जत्थेदार व एस.जी.पी.सी. के प्रधान द्वारा पंथक संगठनों का सांझा उम्मीदवार देने की वकालत की गई लेकिन अकाली दल द्वारा इस मुद्दे पर गठित की गई कमेटी का फैसला आने से पहले ही सिमरनजीत मान द्वारा खुद को उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। इसके बाद अकाली दल द्वारा बलवंत सिंह राजोआना की बहन को उम्मीदवार बनाया गया।
हालांकि राजोआना व सुखबीर बादल द्वारा सिमरनजीत मान को नामांकन वापिस लेने की मांग की गई लेकिन मान ने उसे मानने से इंकार कर दिया। अब सुखबीर बादल व सिमरनजीत मान खुलकर एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। जहां तक कि बंदी सिंहों की रिहाई का सवाल है उनमें से जगतार सिंह हवारा ने जेल से चिट्ठी लिखकर सिमरनजीत मान का समर्थन करने की घोषणा की गई है जिसके चलते बंदी सिंहों की फूट भी उजागर हो गई है। जहां तक ढींडसा परिवार का सवाल है, उनके द्वारा संगरूर सीट पर खुलेआम भाजपा उम्मीदवार का समर्थन किया जा रहा है।
संगरूर लोकसभा उप चुनाव के दौरान सुखबीर बादल ने खुद प्रचार की कमान संभाली हुई है जो मुख्य रूप से बंदी सिंहों की रिहाई के मुद्दे पर वोट मांग रहे हैं जिसे लेकर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने उन्हें निशाना बनाया है। उन्होंने कहा कि बंदी सिंहों की रिहाई नियमों के मुताबिक ही हो सकती है। अगर राजोआना की बहन को एम.पी. बनाने से उसकी रिहाई हो सकती है तो सुखबीर व हरसिमरत बादल तो मौजूदा समय में एम.पी. है, वे बंदी सिंहों की रिहाई क्यों नहीं करवा देते। हालांकि इन चुनावों के दौरान कांग्रेस व भाजपा के नेताओं द्वारा बंदी सिंहों की रिहाई के मुद्दे पर ज्यादा कुछ बोलने से परहेज ही किया जा रहा है।