पोस्ट मार्टम,,,, राजनीतिक षड्यंत्र का प्रपंच का पटाक्षेप

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चंडीगढ़:-21 नवंबर:- अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क प्रस्तुति:—
दरअसल अब देश में कॉंग्रेस और बीजेपी दो राजनैतिक दल मात्र नहीं रह गए हैं बल्कि यह अब दो बिल्कुल अलग अलग विचारधाराएं बन गई है और कॉंग्रेस का मतलब केवल INC नहीं है बल्कि एक पूरा समूह से है जिसे , चाहे आप उसका नाम एनसीपी रख लीजिए या टीएमसी रख लीजिए, कोई फर्क नहीं पड़ता
सभी की एक जैसी विचारधारा है
राष्ट्रीयता विहीन भारत
जैसे अलग अलग सूबों में अलग अलग दलों की सरकारे है, मानो वे सूबे अलग अलग देश है और वे उनके प्रधान मंत्री
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो हमेशा अलग देश के प्रधान मंत्री जैसी ही व्यवहार करती ही है
देश अब पूर्ण रूप से दो भागों में विभाजित हो गया है
एक राष्ट्रवादी बीजेपी और दूसरी राष्ट्र की अवधारणा रहित वामपंथी विचारधारा की राज्य अवधारणा हीन(state less) कॉंग्रेस और उनके सहयोगी दल
मुझे वास्तव में अफसोस है कि यह बात मैं कोई भावावेग में नहीं बल्कि पूरे तथ्यों और विवेचना के आधार पर रख रहा हूँ
अब कॉंग्रेस और उनके विभिन्न सहयोगी दलों द्वारा केंद्र की उस हर काम की आलोचना की जाती है या फिर कोई भी प्रतिक्रियाएं भी नहीं आती है, जिससे देश का गौरव बढ़ता है या फिर उन्हें उस बात से भी कोई फर्क ही नहीं पड़ता है जिससे देश की प्रतिष्ठा कम होती है
अब देश मतलब बीजेपी हो गया है, माने देश की उपलब्धि अब बीजेपी की हो गई है और देश की किसी क्षेत्र में मात मतलब बीजेपी की मात माने जाने लगी है
पहले तो देश ऐसा बिल्कुल नहीं था
पहले भी विपक्ष होता था
सरकार विरोधी होते थे
लेकिन देश तो कॉंग्रेस बीजेपी में विभाजित नहीं था
देश तो सबका होता था
और इसके लिए कोई एक पक्ष जिम्मेदार नहीं है बल्कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों जिम्मेदार हैं
एक प्रखर राष्ट्रवाद के लिए इतना दूर चला गया है कि दूसरे के लिए उसकी तेज गति से मुकाबला ही मुश्किल हो गया
दरअसल भारत केवल उत्तर भारत के कुछ प्रखर राष्ट्रवादी क्षेत्रः तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारत उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक फैला हुआ विशाल भूभाग है, और हक़ीक़त यह भी है कि पूरे देश में प्रखर राष्ट्रवाद पूरे देश में सभी स्थानों पर समान रूप से कभी रहा ही नहीं था
उत्तर भारत हमेशा ही मुग़लों के निशाने पर रहने के कारण राष्ट्रवाद का जनक रहा था लेकिन पूर्व और दक्षिण भारत की अपनी भौगोलिक परिस्थितियाँ शुरू से ही अलग ही थी और इसलिए उनकी सामुहिक सोच भी अलग रही थी
कुछ अपवादों को छोड़कर, यह फर्क उत्तर और दक्षिण में एकदम साफ परिलक्षित होता था और अब तो और अधिक महसूस कर सकते हैं
और इसका आप अनुभव भी कर सकते हैं
जितना राष्ट्र के लिए समर्पण आप उत्तर भारत के लोगों में देखेंगे उतना आप पूर्व या दक्षिण भारत में नहीं पायेगे
कॉंग्रेस ने देश में राष्ट्रवादी शक्तियों को कभी मजबूत होने ही नहीं दिया
जो भी राष्ट्रवाद था वो स्वाभाविक और प्राकृतिक था और उत्तर भारत के कुछ एरिया तक सीमित था
यही कारण है कि प्रशासनिक रूप से पूरे देश में एक व्यवस्था होने के बावजूद भावात्मक रूप से देश में प्रचंड राष्ट्रवाद की भावना से कभी भी एक नहीं बन पाया
इसके कुछ ऐतिहासिक कारण तो रहे है ही लेकिन साथ में कुछ भाषाई और भिन्न भिन्न साँस्कृतिक कारण भी रहे थे बल्कि अभी भी है
उत्तर भारत का हिन्दी भाषी व्यक्ति दक्षिण भारत के तमिल भाषी व्यक्ति से केवल दोनों के समान हिन्दू धर्म के एकमात्र लॉजिक से जोड़ पाने में असफ़ल रहा है, वर्ना देश के प्रखर राष्ट्रवादी अटल बिहारी वाजपेयी जो कि उत्तर भारत की धड़कन थे लेकिन दक्षिण भारत में बिल्कुल बेअसर रहे
और ज्यादा दूर क्यों जाते हैं, प्रधान मंत्री श्री मोदी भी उत्तर भारत में ही अत्यंत सफल रहे
दक्षिण भारत में उनका जादू बिल्कुल नहीं है
यदि धर्म ही देशों के एकता का आधार होता तो 57 मुस्लिम और सैंकड़ों क्रिश्चियन देश अलग अलग नहीं होते
जबकि हक़ीक़त यह है कि दक्षिण भारत में उत्तर भारत की अपेक्षा मुस्लिम शासन हमेशा कमजोर ही रहा है और आज भी दक्षिण भारत में मुस्लिम उत्तर भारत की अपेक्षा कंही कम है और भारत केवल एडमिनिस्ट्रेशन के मामले में ही उत्तर से दक्षिण तक एक हुआ था
भावनात्मक रूप से नहीं
वर्ना एक विदेशी भाषा इंग्लिश को दक्षिण में खुले मन से स्वीकार्य कर लिया लेकिन हिन्दी के प्रति हमेशा उपेक्षा रही, जो कि हमारे देश की भाषा है लेकिन उत्तर भारत की होने के कारण उसका दक्षिण में तिरस्कार हुआ

और जब कॉंग्रेस सत्ता से हट गई तब यह अन्तर साफ दिखने लगा
वर्ना उत्तर भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों की इतनी बड़ी सफ़लता दक्षिण में क्यों नहीं हुई
इसका सीधा मतलब है कि देश के अलग अलग हिस्से अलग अलग सोचते रखते हैं और पूरा देश कभी भी एक समान विचारधारा का राष्ट्र बन ही नहीं पाया
एक राष्ट्र के रूप में हम इतने मजबूत इच्छा शक्ति वाले परिपक्व देश बन ही नहीं पाए बल्कि मैकाले के अनुयायियों ने इसे शायद जानबूझकर बनने ही नहीं दिया गया
शायद कुछ ही लोग मेरे इस लेख का पूर्ण रूप से मंतव्य समझ पाये
कि जोधपुर में बैठे एक व्यक्ति की सोच मदुरै में बैठे व्यक्ति से क्यों नहीं मेल खाती है, जबकि दोनों शहरों में हिंदू बाहुल्य है
देश केवल भौगोलिक टुकड़े से नहीं बनता है बल्कि , देश के हर हिस्से के नागरिक के देश के लिए मर मिटने के जज्बे से देश का निर्माण होता है
और वो जज्बा देश के हर हिस्से में नहीं पाया जाना और उप राष्ट्रवाद का पनपना बल्कि पनपा हुआ ही था, देश के लिए शुभ संकेत नहीं है
आज जब देश किसी मामले में विफल रहता है तब कॉंग्रेस और उनके समर्थक ऐसे खुश होते हैं जैसे वो बीजेपी की हार है , जबकि हक़ीक़त में वो देश की सामुहिक हार होती है, भले ही देश में किसी भी दल की सरकार हो.
सरकारे तो बदलती रहती है
या फिर जब भारत का मंगल ग्रह मिशन असफ़ल हुआ तो कॉंग्रेस और उनके समर्थकों की खुशी यह दर्शाती है कि हम एक परिपक्व समाज और नागरिक के रूप में कितने असफ़ल साबित हुए हैं या फिर जब भारत की क्रिकेट टीम पाकिस्तान से हार गई थी और कुछ शरारती तत्वों ने पटाखे फोड़े तब बीजेपी समर्थकों का ही खून क्यों खोला
कॉंग्रेस के समर्थकों का क्यूँ नहीं
क्या यह देश उनका नहीं है
क्या देश का गौरव और आत्मसम्मान बीजेपी और कांग्रेस में बंट गया है

जब तक लोगों को देश और दल में फर्क समझ में आएगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और उस दिन शायद मेरी इस पोस्ट का पूर्ण रूप से मंतव्य समझ में आएगा लेकिन तब तक बीजेपी और कॉंग्रेस की राजनीति से हम इतने दूर जा चुके होंगे कि वापसी का कोई विकल्प भी नहीं रहेगा
No return ticket
यह पोस्ट पार्टी पालिटिक्स से बिल्कुल हटकर है और इसे आप यदि पार्टी के पूर्वाग्रह को छोड़कर यदि आप एक सच्चे भारतीय की तरह पढ़ेंगे और समझेंगे तभी ही आप इसको आत्मसात कर सकेंगे
अजित कोठारी 🇮🇳🇮🇳

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